BBC की India: The Modi Question ही नहीं, इन डॉक्यूमेंट्रीज ने भी मचाई भारी हलचल… जानें यहां

BBC की India: The Modi Question ही नहीं, इन डॉक्यूमेंट्रीज ने भी मचाई भारी हलचल… जानें यहां

नई दिल्ली: 2002 के गुजरात सांप्रदायिक दंगों (Communal Riots) पर बीबीसी की एक हालिया डॉक्यूमेंट्री ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ (India: The Modi Question) ने एक राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया है. मोदी सरकार (Modi Government) के इसे प्रतिबंधित करने के बावजूद कांग्रेस समेत वामपंथी और उनके अनुषांगिक संगठन खासकर आइसा और वामपंथी विचारधारा से प्रेरित एसएफआई और अन्य इसके प्रदर्शन को लेकर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक हंगामा मचाए हुए हैं. इसके जवाब में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) के मोर्चा खोल लेने से कानून-व्यस्था को कायम रखने की भारी चुनौती भी आन खड़ी हुई है. बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री (BBC Documentary) का एक हिस्सा गुजरात की सांप्रदायिक हिंसा (Communal Violence) को नियंत्रित करने में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) की कथित भूमिका की जांच करता है. हालांकि भारत में राजनीतिक तूफान या विवाद खड़ा करने वाली यह पहली डॉक्यूमेंट्री नहीं है. इससे पहले भी कई डॉक्यूमेंट्रीज ने भारी हलचल पैदा कर सरकार को प्रतिबंध लगाने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि रोचक बात यह है कि ज्यादातर डॉक्यूमेंट्रीज बीबीसी ने ही बनाई हैं. एक नजर ऐसी ही पांच डॉक्यूमेट्रीज पर.

फाइनल सॉल्यूशन
‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ 2002 के गुजरात दंगों पर बनी पहली डॉक्युमेंट्री नहीं है, जिसने विवादों को जन्म दिया. इसके आने के दशकों पहले आई थी ‘फाइनल सॉल्यूशन’. राकेश शर्मा द्वारा निर्देशित ‘फाइनल सॉल्यूशन’ का कथानक इस अवधारणा पर केंद्रित था कि गुजरात में सांप्रदायिक हिंसा समन्वित और नियोजित प्रयास था. यह सांप्रदायिक खाई के दोनों और खड़े लोगों यानी दंगों से बच निकले लोगों और गवाहों के साक्षात्कार पर आधारित थी. सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन ने डॉक्यूमेंट्री को उकसाऊ करार देकर इस पर प्रतिबंध लगा दिया था. सीबीएफसी का यह भी तर्क था कि इससे सांप्रदायिक हिंसा और कट्टरपंथ को और बल मिल सकता है. कथित तौर पर शर्मा ने कहा था कि तत्कालीन सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष अनुपम खेर ने भाजपा समर्थक के रूप में एनडीए शासन के दौरान इसे मंजूरी नहीं दी थी. हालांकि अक्टूबर 2004 में केंद्र में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के आने के बाद अंततः प्रतिबंध हटा लिया गया. यही नहीं, इस डॉक्यूमेंट्री ने गैर-फीचर फिल्म श्रेणी में विशेष जूरी पुरस्कार राष्ट्रीय पुरस्कार जीता था. इसके साथ ही कई अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में भी सम्मान बटोरे.

इंडियाज़ डॉटर
बीबीसी की इस एक और डॉक्यूमेंट्री ने 2015 में विवाद खड़ा कर दिया था. लेस्ली उडविन की ‘इंडियाज़ डॉटर’ बीबीसी की स्टोरीविल सीरीज का हिस्सा थी, जो दिल्ली के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या पर केंद्रित थी. बलात्कारियों में से एक मुकेश के साथ साक्षात्कार के कुछ हिस्सों सहित फिल्म के कुछ अंश प्रसारित किए जाने के बाद पुलिस को वृत्तचित्र के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए एक अदालती स्थगनादेश मिला. बीबीसी ने इसका अनुपालन करते हुए इसे भारत में प्रदर्शित नहीं किया. हालांकि विदेशों में प्रसारण के बाद यू ट्यूब के माध्यम से यह डॉक्यूमेंट्री भारत में उपलब्ध हुई, तो सरकार ने यूट्यूब से भारत में इसे ब्लॉक करने का निर्देश दिया. बीबीसी डॉक्यूमेंट्री पर व्यापक प्रतिबंध ने संसद में गरमागरम बहस छेड़ दी. विपक्षी सांसदों ने सरकार के कदम पर सवाल उठाया. तत्कालीन संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि ‘यह डॉक्यूमेंट्री भारत को बदनाम करने की साजिश थी.’ इसका राज्यसभा सांसद जावेद अख्तर ने भारी विरोध किया और कहा था, ‘अच्छा है कि यह डॉक्यूमेंट्री बनाई गई. यदि किसी को आपत्तिजनक लगती है, तो उसे अपनी मानसिकता बदल लेनी चाहिए.’

राम के नाम
आनंद पटवर्धन की ‘राम के नाम’ डॉक्यूमेंट्री को सबसे विवादास्पद माना जाता है. 1992 में फिल्माई गई डॉक्यूमेंट्री अयोध्या के राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व हिंदू परिषद के अभियान की जांच करती है. फिल्म को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर समीक्षकों द्वारा सराहा गया, तो सर्वश्रेष्ठ खोजी वृत्तचित्र के लिए राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार और सर्वश्रेष्ठ वृत्तचित्र के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार जीता. सभी प्रशंसात्मक समीक्षाओं के बावजूद सरकार ने दूरदर्शन पर वृत्तचित्र के प्रसारण पर प्रतिबंध लगा दिया क्योंकि इसे ‘धार्मिक भावनाओं के लिए खतरनाक’ माना गया था.

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