जिस बेटे को डॉक्टर बनाने के लिए भेजा था चीन, उसी देश की बीमारी ने उजाड़ दी दुनिया

नई दिल्ली: अंबेडकर अस्पताल में कोरोना से जंग हारने वाले रेजीडेंट्स डॉक्टर जोगिंदर चौधरी के किसान पिता राजेंन्द्र चौधरी इस घटना से पूरी तरह टूट से गए है। कुदरत ने उनके साथ कैसा खेल खेला जब परिवार वाले बहू ढूंढने जाने का सोच रहे थे, तब बेटे का तीसरा करने पर मजबूर होना पड़ रहा है। उनका सबकुछ लुट सा गया है। बड़े बेटे की मौत ने उन्हें तोड़कर रख दिया है। जोगिंदर को जब एमबीबीएस की पढ़ाई के लिए चीन भेजना था, तो पिता के पास इतने पैसे नहीं थे, इसलिए उन्होंने अपना घर ही बेचकर18 लाख रुपए में दिया था। इससे जो पैसा आया, उसी से बेटे का एमबीबीएस पूरा हो पाया था। घर बेचने के बाद परिवार गांव में ही किराये के घर में रहने लगा था। परिवार पर अभी भी करीब 7 लाख रुपए का कर्जा है। पहले जो पैसा जोड़ा था, वो सब बेटे की पढ़ाई में ही लग गया था।
पिता ने कहा, हमने सगाई की तारीख पहले ही तय कर दी थी, बेटा बीमार पड़ा तो सोचा तब तक ठीक हो जाएगा, लेकिन अनहोनी को कौन टाल सकता है। वह कोरोना से दूसरों को बचाते हुए खुद कोरोना से हार गया। उसकी ड्यूटी अंबेडकर अस्पताल के कोरोना वार्ड में लगी थी। पिता ने रोते हुए बताया कि बेटे ने 6 महीने पहले ही अंबेडकर अस्पताल में जॉइन किया था। जब उसने बताया कि वह कोरोना वार्ड में ड्यूटी कर रहा है, तो मन में हमेशा डर बना रहता था, लेकिन हमें फक्र भी था कि बेटा देश सेवा कर रहा है, लेकिन यह नहीं पता था कि वह इतनी जल्दी हमसे विदा ले लेगा। जून में उसकी शादी तय हुई थी।
पूरी तरह फिट थे जोगिंदर
अंबेडकर अस्पताल के एक डॉक्टर ने बताया कि डॉ. जोगिंदर पूरी से स्वस्थ थे। इन्हें कोई दूसरी बीमारी नहीं थी। सिर्फ बुखार लगा उसके बाद उनके गले में दिक्कत आने लगी। वे पूरी तरह से फिट थे। वे फुटबॉल खेलते थे जिम जाते थे। हमें भी उम्मीद था कि वे ठीक होकर वापस आ जाएंगे, लेकिन यह हमारे लिए भी बहुत दुख की बात है कि इतना फिट आदमी कोरोना से नहीं लड़ पाया।
एक माह से लड़ रहे थे कोरोना से
डा. जोगिंदर को 24 जून से ही बुखार आना शुरू हो गया था। कोविड की जांच की गई तो 27 जून को उसकी रिपोर्ट पॉजिटिव आई उसके बाद उसे एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती करवाया गया, लेकिन उनकी स्थिति में कोई सुधार नहीं हो रहा था। पिता राजेंद्र ने बताया कि मैंने एलएनजेपी अस्पताल से अनुरोध किया कि उसे दूसरे अस्पताल में भर्ती कराया जाए, लेकिन अस्पताल वालों ने कहा कि उसकी स्थिति अभी सही नहीं है। दूसरे अस्पताल में शिफ्ट करने में रिस्क है। ऐसे में इलाज एलएनजेपी में ही जारी रहा। वहां दिन पर दिन उनकी स्थिति बिगड़ती जा रही थी। उनका प्लाज्मा थेरेपी के जरिए भी इलाज किया गया लेकिन हालात में कोई सुधार नहीं हुआ। जब जोगिंदर की हालत काफी बिगड़ गई तो उन्हें जुलाई में गंगाराम अस्पताल में शिफ्ट करवाया। तब तक काफी देर हो चुकी थी।
साथी डॉक्टरों ने इलाज के लिए जुटाए थे पैसे
पिता ने बताया कि गंगाराम अस्पताल में प्रतिदिन का फीस 50 से 60 हजार रुपए थी। कई डॉक्टरों ने हमारी मदद की, बस मैं चाहता था कि मेरे बेटा किसी तरह से ठीक हो जाए। डॉक्टर बोल रहे थे कि धीरे-धीरे वह ठीक हो जाएगा, लेकिन शनिवार देर रात उसकी मौत हो गई। अपने दोस्त के इलाज के लिए अंबेडकर अस्पताल के डॉक्टरों ने पैसे जुटाए थे। इसके अलावा डॉक्टर के पिता ने गंगा राम अस्पताल प्रशासन को पत्र लिख कर इलाज में राहत देने की मांग की थी। जिस पर अस्पताल प्रशासन ने राहत देने की बात भी कही थी। उसके साथ दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री को भी पिता ने पत्र लिखकर आर्थिक मदद की मांग की थी। पिता ने बताया कि दिल्ली सरकार के तरह से कोई आर्थिक मदद नहीं मिली पाई थी। जोगिंदर मध्यप्रदेश के नीमच जिले के रहने वाले थे।