बेबसी: आंखों में आंसू और रोजी छिनने का गम, प्रवासी मजदूरों ने बयां किया अपना दर्द

युवा झींगरन और बुजुर्ग हरदेव सहनी की आंखों में आंसू और रोजी छिनने का गम साफ दिख रहा था। वो कहते हैं कि अब किसी तरह से घर पहुंच जाएं फिर देखेंगे कि क्या करना है। इस बीमारी ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा। पीड़ा बाहर निकली तो आंखों से आंसू टपकने लगे। उन्हीं से थोड़ी दूरी पर खड़े मोतिहारी निवासी धर्मेंद्र कहते हैं कि बाबू अब तो केहू के घर-बार छोड़कर दूर देश यानी दूसरे प्रदेश न जाना पड़े, बहुत दर्द झेला है। सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर पांव जवाब दे गया है। पुलिस के डंडे भी बरसे हैं।

वहीं स्टेशन पर खड़े कई मजदूर बस यही कहते रहे कि नीतिश बाबू हमें वहीं नौकरी दे देना, हम अब नहीं लौटेंगे। उत्तर प्रदेश के योगी को कितना धन्यवाद दें, जो हमारे परिवार से मिलाने के लिए रेलगाड़ी चलवा दिए।

बता दें कि शुक्रवार दोपहर एक बजे इन मजदूरों को लेकर स्पेशल ट्रेन सहारनपुर से रवाना की गई। प्रशासनिक और पुलिस के अधिकारियों के बीच अंबाला डिवीजन के अधिकारियों की मौजूदगी में सारे इंतजाम किए गए थे। सोशल डिस्टेंसिंग के घेरे में गोद में बच्चे को लिए महिलाओं से लेकर बुजुर्ग तक की कतारें लगी हुईं थीं। पीड़ा तो उनके चेहरे पर उस प्रवास को छोड़ने की भी थी, जहां वह वर्षों से अपना पसीना बहा रहे थे, लेकिन कोविड-19 के दौर में हालात ने इन्हें सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया।

हरियाणा के यमुनानगर, पंजाब के लुधियाना और जम्मू से चलकर पहुंचे बिहार के ये मजदूर राधा स्वामी सत्संग व्यास में आश्रय लिए हुए थे। रेलवे स्टेशन पर ट्रेन लगने के दौरान उन्हें घर जाने की खुशी थी। हर किसी को कोरोना के डर से अपने घर पहुंचने की जल्दी थी। लाइन में लगे बिहार के कामगारों का साफ कहना था कि वे अब नहीं लौटेंगे, अब बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार अपने प्रदेश में ही नौकरी दें, प्रवासी होकर तो बहुत दर्द मिला। वह उत्तर प्रदेश के योगी सरकार का आभार जताते हैं, जिन्होंने ट्रेन चलवाई। हमें भोजन मिला। टिकट मिला। विदा करने अफसर आए। ये सब कहते हुए कामगारों के आंखों में आंसू आ गए।

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