आसान नहीं है दिल्‍ली की हवा साफ करना, अध्यादेश के तहत नया आयोग बनाने की घोषणा ने जगी उम्‍मीद

आसान नहीं है दिल्‍ली की हवा साफ करना, अध्यादेश के तहत नया आयोग बनाने की घोषणा ने जगी उम्‍मीद

नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली को दमघोंटू वायु प्रदूषण से मुक्त कराने के लिए केंद्र सरकार द्वारा जारी अध्यादेश के तहत नया आयोग बनाने की घोषणा ने नई उम्मीद जगाई है। देश की राजधानी में साल दर साल घने होते वायु प्रदूषण ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है। ताज्जुब है कि 1998 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त ईपीसीए यानी पर्यावरण प्रदूषण बचाव एवं नियंत्रण प्राधिकरण जैसी संस्था भी दिल्ली में प्रदूषण पर रोक नहीं लगा पाई। इसकी वजह पानी और आबादी की तरह वायु प्रदूषण रोकने में भी दिल्ली का अन्य राज्यों पर निर्भर होना है। हालांकि दिल्ली में वाहनों की बहुलता प्रदूषण का स्थायी स्नोत है। इसके बावजूद दिल्ली में 20 फीसद प्रदूषण राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कारण फैलता है।

बहरहाल, अध्यादेश के जरिये जारी नए कानून के तुरंत प्रभाव से लागू होने से इसके तहत आयोग का गठन और उसके सदस्यों की नियुक्ति भी केंद्र सरकार जल्द करेगी। इस कानून की प्रमुख विशेषता इसका समावेशी ढांचा है जिसमें सभी प्रभावित राज्यों के अधिकारियों एवं जन प्रतिनिधियों को शामिल करने का प्रावधान है। अध्यादेश के तहत प्रदूषण फैलाने पर पांच साल तक जेल की सजा या एक करोड़ रुपये जुर्माने अथवा दोनों सजा साथ होने जैसे स्पष्ट दंडात्मक प्रावधान भी माहौल सुधारने में सहायक होंगे।

यह कानून दिल्ली और एनसीआर से जुड़े पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के उन इलाकों तक लागू होगा, जहां वायु प्रदूषण से संबंधित गतिविधियां जारी हैं। इसका कार्य दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र तथा संबद्ध क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता प्रबंधन करना है। आयोग में अध्यक्ष के अलावा 20 सदस्यों में केंद्र सहित इन सभी राज्यों के अधिकारी आदि होंगे। यह नियमों का कड़ाई से पालन करवाना सुनिश्चित करेंगे। आयोग में दो पूर्णकालिक सदस्य होंगे जो केंद्र सरकार के संयुक्त सचिव होंगे। इसके अलावा तीन पूर्णकालिक स्वतंत्र तकनीकी सदस्य होंगे, जिन्हें वायु प्रदूषण संबंधी वैज्ञानिक जानकारी होगी।

इनके साथ ही वायु प्रदूषण रोकथाम के अनुभवी स्वयंसेवी संगठन के भी तीन सदस्य आयोग में शामिल होंगे। आयोग जरूरत पड़ने पर सहयोगी सदस्यों को भी नियुक्त कर सकता है। आयोग में निगरानी और पहचान, सुरक्षा और प्रवर्तन तथा अनुसंधान और विकास में प्रत्येक से एक-एक के साथ तीन उप कमेटी होंगी। आयोग को वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) कानून 1981 और पर्यावरण (संरक्षण) कानून 1986 जैसे मौजूदा कानूनों के तहत निवारण के लिए मामलों का स्वत: संज्ञान लेने, शिकायतों पर सुनवाई, आदेश जारी करने का भी अधिकार होगा।

विशेषज्ञों के अनुसार यह कानून अमेरिका में कैलिफोíनया में व्याप्त वायु प्रदूषण समाप्त करने संबंधी उपायों से प्रेरित है।

गौरतलब है कि दिल्ली की तरह ही चीन की राजधानी बीजिंग, रूस की राजधानी मास्को सहित तमाम औद्योगिक महानगरों में वायु प्रदूषण भीषण समस्या बन गया है। ब्रिटेन की राजधानी लंदन भी पिछली सदी के सातवें दशक में दिल्ली की तरह वायु और जल प्रदूषण का शिकार था। ब्रिटेन ने उद्योगों को लंदन से हटा कर और पर्यावरण संरक्षण संबंधी कड़े कानून लागू करके दशक भर में इससे निजात पाई। दिल्ली इस मामले में अपवाद है, क्योंकि यहां वायु प्रदूषण के लिए इसके पड़ोसी राज्य भी काफी हद तक जिम्मेदार हैं।

इसीलिए साल 1997 से सार्वजनिक वाहनों में सीएनजी लगाने, उद्योगों को रिहायशी इलाकों से हटाने, मेट्रो रेल परियोजना सहित प्रदूषण नियंत्रण के लगातार उपायों के बावजूद वायु प्रदूषण बेकाबू है। सíदयों में यह दिल्ली एनसीआर के निवासियों का दम घोंट देता है। अक्टूबर में पंजाब-हरियाणा में पराली जलाने और फिर दीवाली के पटाखों का धुआं पूरी सर्दी तथा गíमयों में भी राजस्थान से आने वाली धूल भरी आंधी दिल्ली की हवा को बुरी तरह प्रदूषित करते हैं।

दिल्ली में आजकल बेहद प्रदूषित वायु सुíखयों में है और पांच राज्यों की बैठक में वायु प्रदूषण की स्थितियों से निपटने के लिए केंद्र और राज्यों ने प्रयास तेज कर रखे हैं। दिल्ली में एयर क्वालिटी इंडेक्स यानी वायु गुणवत्ता सूचकांक एक्यूआइ औसतन 250 तक है। एक्यूआइ 201 से 300 के बीच खराब, 301 से 400 के बीच बेहद खराब और 401 और 500 के बीच गंभीर श्रेणी में आता है। इंडेक्स से हवा में मौजूद कणीय पदार्थ यानी पीएम 2.5, पीएम 10, सल्फर डाई ऑक्साइड और अन्य प्रदूषक कणों का पता चलता है। ये हवा में तैरते सूक्ष्म कण हैं जो माइक्रोस्कोप में दिखते हैं, मगर जीव-जंतुओं की श्वसन प्रणाली का कबाड़ा कर देते हैं।

केंद्र सरकार के अनुसार इस मौसम में दिल्ली एनसीआर में वायु प्रदूषण केवल पड़ोसी राज्यों में पराली जलाने से नहीं, बल्कि वहां उद्योगों में प्रदूषण मानकों की अनदेखी से भी बढ़ता है। इससे निपटने को ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान लागू किया गया है। इसके तहत बड़े निर्माण, डीजल से चलने वाले जेनरेटर, कोयले के प्रयोग और तंदूरों पर रोक समेत अनेक पाबंदियां लगी हैं। ये पाबंदियां अगले साल 15 मार्च तक लागू रहेंगी। एकीकृत कार्ययोजना को लागू करने एवं निगरानी के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने 50 टीम तैनात की है। साथ ही, वायु प्रदूषण के अध्ययन और रोकथाम संबंधी अनुसंधान के लिए सीपीसीबी ने टेरी संस्थान को नियुक्त किया है।

अब दिल्ली एनसीआर के ढाई करोड़ लोगों के स्वास्थ्य का दारोमदार नए कानून में प्रस्तावित आयोग के हाथों में है। इसके जरिये पर्यावरण प्रदूषण की निगरानी सुप्रीम कोर्ट की निगाहों से हटाकर केंद्र सरकार ने अपने हाथों में ले ली है। उम्मीद है कि केंद्र और संबद्ध राज्य सरकार आयोग के सदस्य तय करते समय विशेषज्ञों की आशंकाओं के मद्देनजर पूरी एहतियात बरतेंगे।

पिछले लगभग पांच वर्षो से दिल्ली एनसीआर में सर्दियों के आरंभ में वायु प्रदूषण का स्तर काफी बढ़ जाता है जिस कारण जनसामान्य को स्वास्थ्य संबंधी अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। तमाम प्रयासों के बावजूद इस समस्या का स्थायी हल नहीं होने से सरकार ने इस संबंध में अध्यादेश जारी करते हुए कठोर नियम-कानून बनाए हैं। अब देखना होगा कि केंद्र सरकार इस नए उपयोगी कानून को कड़ाई से लागू करके दिल्ली की सांसें सामान्य करने में कितनी और कब तक कामयाब हो पाएगी

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