गंगोह [24CN] : शोभित विश्वविद्यालय गंगोह एवं हरिजन सेवक संघ द्वारा आयोजित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार सीरीज शनिवार को अंतिम सत्र के साथ ही संपन्न हो गई। इस संपूर्ण वेबिनार सीरीज का विषय बहुत हो व्यापक एवं आज के समय के लिए नितांत ही प्रासंगिक था। इस अंतरार्ष्ट्रीय वेबिनार सीरीज का विषय ” गांधीवादी विचारधारा की आदुनिक युग में प्रासंगिकता ” था। इस वेबिनार सीरीज में कुल सात सत्रों को सम्बोधित किया गया जिसमे महात्मा गाँधी की सात प्रमुख शिक्षाओं को सम्मिलित किया गया। संपूर्ण वेबिनार सीरीज के सभी सत्रों को अलग अलग वक्ताओं द्वारा सम्बोधित किया गया। इस श्रृंखला के अंतिम सत्र को प्रसिद्ध गाँधीवादी प्रोफ.(डॉ.) ऐन. राधाकृष्णन ने सम्बोधित किया। प्रो. राधाकृष्णन ने अपने असाधारण घटनापूर्ण जीवन और उपलब्धियों का सार प्रस्तुत किया: “बौद्धिकवाद और सक्रियता का एक दुर्लभ संयोजन, प्रो. राधाकृष्णन ने कई क्षेत्रों में अपनी पहचान बनाई है। एक शिक्षक, प्रशासक, कई शैक्षणिक संस्थानों के संस्थापक, चालीस से अधिक पुस्तकों के लेखक, पत्रकार के रूप में अहिंसा में युवाओं के प्रशिक्षक, रंगमंच विशेषज्ञ, अभिनेता, मानव अधिकार कार्यकर्ता और लोक कलाओं के शोधकर्ता, प्रो राधाकृष्णन दुनिया भर में विशेष रूप से अहिंसा में प्रशिक्षण के क्षेत्र में कई नवीन पहलों के लिए प्रेरणा का एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं

कार्यक्रम का आरम्भ डॉ. प्रशांत कुमार ने किया। तत्पश्चात शोभित विश्वविद्द्यालय के कुलपति प्रोफ.(डॉ.) रणजीत सिंह ने सभी महानुभावों का स्वागत किया एवं इस समस्त वेबिनार सीरीज की एक संक्षिप्त रिपोर्ट प्रस्तुत की। ततपश्चात कार्यक्रम की अध्यक्ष्यता कर रहे विश्वविद्यालय के माननीय कुलाधिपति श्री कुंवर शेखर विजेंद्र जी ने कार्यक्रम को सम्बोधित किया। उन्होंने अपने सम्बोधन में कहा की गाँधी जी के विचारों से जीवन में एक नयी दिशा एवं ऊर्जा मिलती है। उन्होंने अंतिम सत्र के विषय पर बोलते हुए कहा की अहिंसा सनातन संस्कृति एवं सभ्यता का अभिन्न अंग है।
उन्होंने आगे कहा की इस सृष्टि का सनातनः सत्यं यही है की अहिंसा ही परम धर्म है क्योंकि जब इस सृष्टि का प्रत्येक कण परब्रह्म का ही अंश है जिस प्रकार सुर्यदेव का अंश उनकी प्रकाश की किरणें होती है जो सुर्य की उपस्थिति की अनुभूति सदैव हमें कराती रहती है! कुलाधिपति महोदय ने आगे कहा की गांधी का सपना एक सपना बनकर ही रह गया। आज देश ही नहीं विश्व के अधिकांश देशों में हिंसा तेजी से फैल गई है। कहीं धर्म के नाम पर, कहीं जाति के नाम पर, कही क्षेत्रवाद के नाम पर, कहीं आर्थिक, कहीं राजनीतिक हिंसा हो रही हैं।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्या अतिथि प्रो. राधाकृष्णन ने कहा की मन में किसी का अहित न सोचना, किसी को कटुवाणी आदि के द्वार भी नुकसान न देना तथा कर्म से भी किसी भी अवस्था में, किसी भी प्राणी कि हिंसा न करना, यह अहिंसा है। जैन धर्म एवं हिन्दू धर्म में अहिंसा का बहुत महत्त्व है। जैन धर्म के मूलमंत्र में ही अहिंसा परमो धर्म: (अहिंसा परम (सबसे बड़ा) धर्म कहा गया है। गांधी ने आपसी भाईचारे को बरकरार रखने के लिए सत्य और अहिंसा पर जोर दिया था।
उन्होंने कहा, सत्य और अहिंसा को केवल व्यक्तिगत व्यवहार का मामला नहीं, बल्कि समूहों, सामाजिक और राष्ट्रों के भी व्यवहार का अंग बनाना होगा। मेरा मानना है अहिंसा आत्मा का स्वभाव है, इसलिए हर किसी को जीवन के हर क्षेत्र में इसको व्यवहार में लाना चाहिए। कार्यक्रम की संयुक्त रूप से अध्यक्ष्यता कर रहे हरी जान सेवक संघ के अध्यक्ष श्री शंकर कुमार सान्याल जी ने भी सम्बोधित किया एवं अहिंसा परमो धर्म की प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के अंत में शोभित विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. महिपाल सिंह ने सभी गणमान्य व्यक्तियों का धन्यवाद् ज्ञापित किया। कुलसचिव महोदय ने विशेषरूप से डॉ. प्रशांत कुमार एवं टेक्निकल टीम का का धन्यवाद किया की उनके अथक प्रयासों एवं लगन से ही यह कार्यक्रम सफल हो पाया।