23 जून को जगन्नाथ रथयात्रा, इन रहस्यों को जानकर अचंभित रह जाएंगे

जगन्‍नाथ यात्रा को लेकर हलचल

कोरोनाकाल के बीच अनलॉक 1.0 के तहत सरकार ने 8 जून से देश के सभी मंदिर और धार्मिक स्‍थलों को खोलने की इजाजत दे दी है। इस बीच उड़ीसा की पवित्र धार्मिक नगरी पुरी में हर साल होने वाली जगन्‍नाथ यात्रा को लेकर हलचल तेज हो गई है। माना जा रहा है कि 23 जून को बहुत सीमितजनों के साथ रथयात्रा का आयोजन होगा।

2/8ज्‍येष्‍ठ पूर्णिमा से शुरू होगी प्रक्रिया

जगन्‍नाथ यात्रा को लेकर तैयारियां करीब एक महीने पहले से ही शुरू हो जाती हैं। इस क्रम में कल ज्‍येष्‍ठ मास की पूर्णिमा को भगवान को विभिन्‍न तीर्थ स्‍थानों के 108 प्रकार के जल के 108 घटों से स्‍नान करवाया जाएगा। उसके बाद आषाढ़ मास की अमावस्‍या यानी 21 जून तक भगवान की बीमार बालक की भांति सेवा की जाती है। 14 दिन तक भगवान को आइसोलेशन में रखा जाता है। इस दौरान उन्‍हें काढ़ा पिलाया जाता है और विभिन्‍न जड़ीबूटियों से उनकी चिकित्‍सा की जाती है। उसके बाद आषाढ़ मास के शुक्‍ल पक्ष की द्वितीया को देश और दुनिया में इस भव्‍य यात्रा का आयोजन होता है।

मौसी के घर जाते हैं भगवान

 

रक्षयात्रा की तैयारी महीनों पहले शुरू कर दी जाती है। इस बार 23 जून को भगवान जगन्‍नाथ अपने बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर जाते हैं। तीनों के लिए अलग-अलग भव्‍य रथ तैयार किया जाता है। हर साल रथ के पीछे हजारों भक्‍तों की भीड़ चलती है। मगर इस साल कोरोना की वजह से यह नजारा नहीं देखने को मिलेगा। केवल कुछ प्रबंधकों और पुजारियों के साथ रथयात्रा निकाली जाएगी।

जगन्‍नाथजी की मूर्ति में छिपा है रहस्‍य

 

अपनी मौसी के घर गुंडीचा मंदिर में 9 दिन रहने के बाद भगवान वापस अपने मंदिर में लौटते हैं। भगवान जगन्‍नाथ की मूर्ति को हर 12 साल में बदल दिया जाता है। मान्‍यता है कि जगन्‍नाथ जी की मूर्ति में ब्रह्माजी विराजमान हैं। आइए जानते हैं कि क्‍या है मूर्ति का रहस्‍य और इसके पीछे क्‍या है पौराणिक कथा?

 

ब्रह्माजी थे कृष्‍ण के शरीर में

 

माना जाता है कि ब्रह्माजी भगवान कृष्‍ण के नश्‍वर शरीर में विराजमान थे, जब कृष्ण की मृत्‍यु हुई तो पांडवों ने उनका दाह संस्‍कार कर दिया। लेकिन उनका पिंड यानी दिल जलता ही रहा। माना जाता है कि चिता के जल जाने के बाद पांडवों ने इस पिंड को जल में प्रवाहित कर दिया। जल में जाकर इस पिंड ने लट्ठे का रूप ले लिया।

राजा इंद्रद्युम्‍न को मिल गया लट्ठा

 

पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि राजा इंद्रद्युम्‍न भगवान जगन्‍नाथ के परम भक्‍त थे। एक बार वन विहार करते हुए राजा को नदी में यह लट्ठा मिल गया। उन्‍होंने इसे लाकर भगवान जगन्‍नाथ की मूर्ति में स्‍थापित करवा दिया। उस दिन से आज तक वह लट्ठा भगवान जगन्‍नाथजी की मूर्ति के अंदर विद्यमान है।

हर 12 साल में बदल जाती है जगन्‍नाथजी की मूर्ति

 

बताते हैं कि हर 12 साल के अंतराल पर जगन्‍नाथजी की मूर्ति बदल दी जाती है और यह लट्ठा उसी मूर्ति में रहता है। इस लट्ठे को आज तक किसी ने देखा नहीं है। मंदिर के पुजारी जो इस मूर्ति को बदलते हैं उनकी आंखों और उनके हाथ पर पट्टी बांध दी जाती है, ताकि न ही वह लट्ठे को देख सकें और न ही महसूस कर सकें।

ऐसा होता है लट्ठा

 

ऐसा बताया गया है कि वह लट्ठा छूने में इतना मुलायम होता है कि मानो कोई खरगोश उनके हाथ में फुदक रहा हो। यहां के पुजारी बताते हैं कि यदि कोई भी इस मूर्ति में छिपे हुए ब्रह्माजी को देख लेगा तो तत्‍काल उसकी मृत्‍यु हो जाएगी। इसलिए जिस दिन मूर्ति को बदला जाता है उस दिन पूरे उड़ीसा की की बिजली आपूर्ति बाधित कर दी जाती है।