बसपा के पूर्व सांसद हाजी इकबाल की संपत्ति पर शिकंजा कसने की तैयारी में ईडी, जल्द हो सकती है कार्रवाई

खनन माफिया और बसपा के पूर्व एमएलसी मोहम्मद हाजी इकबाल की ग्लोकल यूनिवर्सिटी और मसूरी स्थित होटल को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) अटैच कर सकता है। विभागीय सूत्रों की मानें तो इसको लेकर प्रक्रिया तेजी से चल रही है। अगले एक महीने के भीतर कार्रवाई हो सकती है। यदि यह कार्रवाई होती है, तो पूर्व एमएलसी को तगड़ा झटका लगेगा।

दरअसल, मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत केस दर्ज होने और सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ईडी जांच कर रहा है। सीबीआई भी पूर्व एमएलसी के मामलों की जांच में जुटी है और कई बार छापा मार चुकी है।
अब विभागीय सूत्रों से पता चला है कि ईडी ने हाजी इकबाल के बेटे के बयान दर्ज किए हैं और सहारनपुर के बादशाहीबाग के निकट कई सौ एकड़ में बनी ग्लोकल यूनिवर्सिटी और मसूरी के होटल सहित पूरी संपत्ति का ब्यौरा जुटाया है। फिलहाल इन दोनों संपत्तियों को बेनामी मानते हुए ईडी अटैच करने की तैयारी में है।

मुखौटा कंपनियों के जरिये खरीदी थीं चीनी मिलें
उत्तर प्रदेश की बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदने के मामले में 2017 में लखनऊ के गोमतीनगर थाने में रिपोर्ट दर्ज हुई थी। जिन कंपनियों के नाम से मिलें खरीदी गई थीं, उनमें मैसर्स नम्रता कंपनी प्राइवेट लिमिटेड और मैसर्स गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड शामिल हैं।

इन कंपनियों में पद पर रहे राकेश शर्मा निवासी रोहिणी दिल्ली, धर्मेंद्र गुप्ता निवासी इंदिरापुरम गाजियाबाद, सौरभ मुकुंद निवासी साउथ सिटी सहारनपुर, मोहम्मद जावेद पुत्र मोहम्मद इकबाल निवासी मिर्जापुर, सुमन शर्मा निवासी रोहिणी दिल्ली, मोहम्मद नसीम अहमद निवासी मिर्जापुर, मोहम्मद वाजिद पुत्र मोहम्मद इकबाल निवासी मिर्जापुर के खिलाफ धोखाधड़ी, कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के आरोप में रिपोर्ट दर्ज हुई थी।

इकबाल के बेटे ने विश्वास के आरोप बताए झूठे
मैसर्स यमुना एग्रो फर्म में पार्टनर रहे विश्वास की तरफ से जनकपुरी थाने में दर्ज धोखाधड़ी और कूटरचित दस्तावेज तैयार करने के केस में हाजी इकबाल के बेटे जावेद और दूसरे आरोपी मोहम्मद अली ने 10 सितंबर को न्यायालय विशेष न्यायाधीश (एमपी/एमएलए) में प्रार्थनापत्र देकर आरोपों को झूठा बताया था। साथ ही केस की समस्त कार्यवाही समाप्त करने की मांग की गई।

उसमें कहा गया कि 2018 में दर्ज इस केस में अब तक सात विवेचक बदले जा चुके हैं, जबकि पूर्व में डीजीपी ने आदेश दिया था कि किसी भी केस में एक से ज्यादा बार विवेचक नहीं बदला जाएगा और बहुत जरूरत पड़ने पर डीआईजी स्तर के अधिकारी का अनुमोदन आवश्यक है।

कोर्ट में यह भी बताया गया कि पूर्व विवेचक ने आरोपों को गलत मानते हुए केस में एफआर लगा दी थी और मार्च 2018 में इस केस में कोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे भी मिला था। आरोप है कि राजनीतिक दबाव के कारण पुन: इस केस की विवेचना बदलवा दी गई है।

‘अटैच’ का मतलब
सहारनपुर बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अरविंद कुमार शर्मा ने बताया कि किसी संपत्ति को बेनामी मानते हुए सरकार उसे अपने कब्जे में ले लेती है, तो उस संपत्ति को अटैच करना कहा जाता है। यह संपत्ति सरकार में निहित हो जाती है। जब तक आरोपित व्यक्ति या कोई अन्य जांच एजेंसी को उस संपत्ति के वैध कागजात नहीं दिखाता, तब तक उस पर सरकार का कब्जा रहता है।

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