कुतुबुद्दीन ने मंदिरों को तोड़कर बनवाई थी कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद, 900 साल बाद खुलासा
नई दिल्ली। देश की राजधानी दिल्ली में कुतुबमीनार परिसर (qutub minar camus) में स्थित कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद के स्तंभों पर लगी देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियां और मंदिरों जैसी इसकी नक्काशी यह गवाही दे रही है कि मंदिरों को तोड़कर इसे बनाया गया था। मस्जिद के पिछले हिस्से में नाली के ऊपर लगी एक मूर्ति को लेकर यहां पूर्व में विवाद भी हो चुका है। जिसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (Archaeological Survey of India) ने लोहे के जाल से मूर्ति को ढक दिया है। यही नहीं मस्जिद के आसपास के क्षतिग्रस्त भाग से मूर्तियां भी निकली हैं।
6 साल में हुआ था निर्माण
विश्व धरोहर का दर्जा प्राप्त कुतुबमीनार के परिसर में यह मस्जिद स्थित है, जो कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का स्मारक है। इसका इतिहास बहुत पुराना है। इतिहासकारों के मुताबिक, इसका निर्माण दिल्ली पर कब्जा करने के बाद 1192 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने कराया था। इसका कार्य 1198 में पूरा हुआ।
हिंदू-जैन मंदिरों को तोड़ा गया था
पुरातात्विक दस्तावेजों में साफ तौर पर वर्णित है कि कुतुबुद्दीन ऐबक ने 27 हिंदू व जैन मंदिरों को तोड़कर इस मस्जिद का निर्माण करवाया था। इन्हीं मंदिरों के नक्काशीदार स्तंभों और अन्य वास्तुकला संबंधी खंडों से इसका निर्माण कराए जाने का दावा इतिहासकार करते हैं। इसके स्तंभों पर आज भी देवी-देवताओं की मूर्तियां देखी जा सकती हैं। इस मस्जिद का काफी हिस्सा ढह चुका है, मगर मस्जिद का जो हिस्सा शेष बचा है। वह पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है। इसमें अधिकतर मूर्तियों को क्षतिग्रस्त किया जा चुका है।
पूजा पाठ से वंचित करने की थी कवायद
कहा जाता है कि इन्हें यहां लगाए जाने के समय ही क्षतिग्रस्त कर दिया गया था, ताकि लोग यहां पूजा पाठ करना शुरू न कर दें। देवी देवताओं की इन मूर्तियों को लेकर कुछ साल पहले विवाद भी हो चुका है। उस समय कई हिंदू संगठन यहां पूजा-अर्चना करने पहुंच गए थे। उनकी सबसे अधिक आपत्ति इस मस्जिद के पीछे के भाग में लगी मूर्ति को लेकर थी। जिसे एक नाली के ऊपर लगाया गया है। इसके बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने इस मूर्ति के ऊपर लोहे का मोटा जाल लगवा दिया है।
अयोध्या की तरह ढांचा
पूर्व में इस स्तंभ के ऊपर प्लास्टर किया गया था, जो अब उतर गया है। कुतुबमीनार के पास ही एक चारदीवारी भी क्षतिग्रस्त हुई है। उसमें पत्थर की मूर्ति निकली है, जिसे वहीं रखवा दिया गया है। पुरातात्विक अभिलेखों के मुताबिक चार सौ वीं शताब्दी में राजा अनंगपाल यहां विष्णु पर्वत से विभिन्न धातु के बने विष्णु स्तंभ लेकर आए थे, जो आज भी इसी परिसर में स्थित हैं। इस स्तंभ पर गुप्तकाल की लिपि में संस्कृत में एक लेख है। जिसे पुरालेखीय दृष्टि से चतुर्थ शताब्दी का निर्धारित किया गया है। एएसआइ के पूर्व निदेशक डॉ. केके मुहम्मद ने भी अयोध्या मसले पर चर्चा के दौरान इस मस्जिद का जिक्र किया था। उनका कहना था कि अयोध्या में विवादित ढांचे के हालात भी दिल्ली स्थित कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद की तरह हैं।
हिंदू करते रहे हैं पूर्व में मंदिर का दावा
हिंदू संगठनों का दावा है कि जहां मस्जिद है, यहां पर भी पूर्व में मंदिर था। विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. विनोद बंसल कहते हैं कि यह पहला स्थान नहीं है, जहां मंदिर था। देश में 30 हजार ऐसे हिंदू स्थान हैं, जिन्हें तोड़कर मुस्लिम मान्यताओं को मानने वालों के केंद्र बनाए गए हैं। यह सब पूर्व के शासकों द्वारा हिंदुओं को दी गई पीड़ा है।
पुराने समय की गलतियों से आज के मुस्लिमों से क्या संबंध?
डॉ. के के मुहम्मद (पूर्व निदेशक, एएसआइ) के मुताबिक, यह बात सही है कि कुतुबमीनार स्थित कुव्वत-उल इस्लाम मस्जिद 27 हिंदू व जैन मंदिरों को तोड़कर बनाई गई है। पुराने समय में कुछ गलतियां हुई हैं, लेकिन इसके लिए आज के मुस्लिम जिम्मेदार नहीं हैं। अयोध्या में बाबरी मस्जिद के बारे में दिए बयान में मैंने इस इस मस्जिद का जिक्र केवल अपनी बात को सही तरह से समझाने के संदर्भ में किया है। इसे किसी दूसरे नजरिए से नहीं देखा जाना चाहिए।