कहां-कहां मोर्चा खोल रखा है इस्लामिक आतंकवादियों ने? समय निकाले अवश्य पढ़े…

कहां-कहां मोर्चा खोल रखा है इस्लामिक आतंकवादियों ने? समय निकाले अवश्य पढ़े…

दुनियाभर में यदि कहीं पर भी आतंकवाद है तो उसके पीछे इस्ला‍म की सुन्नी विचारधारा के अंतर्गत वहाबी और सलाफी विचारधारा को दोषी माना जाता है। इनका मकसद है जिहाद के द्वारा धरती को इस्लामिक बनाना। आतंकवाद अब किसी एक देश या प्रांत की बात नहीं रह गया है। यह अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठजोड़ कर चुका है और इसके समर्थन में कई मुस्लिम राष्ट्र और वामपंथी ताकतें हैं। सऊदी, सीरिया, इराक, अफगानिस्तान, कुर्दिस्तान, सूडान, यमन, लेबनान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, इंडोनेशिया और तुर्की जैसे इस्लामिक मुल्क इनकी पहानगाह हैं।

इस्लामिक आतंकवाद की समस्या व उसकी जड़ के असली पोषक तत्व सिर्फ सऊदी अरब, चीन, ईरान ही नहीं हैं। इनके समर्थक गैर-मुस्लिम मुल्कों में वामपंथ, समाजसेवी और धर्मनिरपेक्षता की खोल में भी छुपे हुए हैं। इनके कई छद्म संगठन भी हैं, जो इस्लामिक शिक्षा और प्रचार-प्रसार के नाम की आड़ में कार्यरत हैं।

अल कायदा, आईएस, तालिबान, बोको हराम, हिज्बुल्ला, हमास, लश्कर-ए-तोइबा, जमात-उद-दावा, तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत उल मुजाहिदीन, हरकत उल अंसार, हरकत उल जेहाद-ए-इस्लामी, अल शबाब, हिजबुल मुजाहिदीन, अल उमर मुजाहिदीन, जम्मू-कश्मीर इस्लामिक फ्रंट, स्टूडेंटस इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी), दीनदार अंजुमन, अल बदर, जमात उल मुजाहिदीन, दुख्तरान-ए-मिल्लत और इंडियन मुजाहिदीन जहां इस्लाम की एक विशेष विचारधारा से संबंध रखते हैं वहीं इस्लामिक मुल्कों को छोड़कर हर देश में कम्युनिस्ट या साम्यवादी विचारधारा की आड़ में भी ये संगठन पल और बढ़ रहे हैं।

एक और जहां मुस्लिम मुल्कों में हिन्दू, ईसाई, बौद्ध आदि अल्पसंख्‍यकों पर हमले करके उन्हें वहां से खदेड़ा जा रहा है वहीं दूसरी और गैर-मुस्लिम मुल्कों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में दहशत और आतंक का माहौल बनाकर वहां से भी गैर-मुस्लिमों, ईसाइयों, बौद्धों, शियाओं, अहमदियों आदि को खदेड़े जाने की साजिश पिछले कई वर्षों से जारी है।

इस साजिश में वामपंथ ने लगभग सभी आतंकवादी गुटों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन दे रखा। इस बात के कई सबूत पेश किए जा सकते हैं। भारत की बात करें तो पूर्वोत्तर, झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में ऐसे कई ग्रुप सक्रिय हैं जिन्हें नक्सलवादी, माओवादी या लेनिन-मार्क्सवादी लिबरेशन फ्रंट कहा जाता है। आओ जानते हैं कि दुनिया में कहां-कहां आतंकवादियों ने मोर्चा खोल रखा है…

फिलिस्तीन : इसराइल और फिलिस्तीन के बीच सदियों से गाजा और यरुशलम पर कब्जे को लेकर लड़ाई जारी है। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इसराइल से खदेड़े गए यहूदियों को पुन: इसराइल में बसाया गया और यह मुल्क उनके सुपुर्द कर दिया गया। इसके बाद आज तक यहूदियों की इस्लाम से जंग जारी है। 1948 में जब विभाजन हुआ तब इसराइल और फिलिस्तीन दो देश बने थे। गाजापट्टी, जो इजिप्ट के कब्जे में था और वेस्ट बैंक ये दोनों अलग-अलग हिस्से हैं, फिलिस्तीन का तब से ही संघर्ष चल रहा है।

यहूदी पश्चिम एशिया के उस इलाके में अपना हक जताते थे, जहां सदियों पहले यहूदी धर्म का जन्म हुआ था और जहां वे संख्‍या में बहुल थे। यही वो जमीन थी, जहां ईसाइयत का जन्म हुआ। इस्लाम का उदय होने के बाद इस क्षेत्र पर उनका कब्जा हो गया। आज जिसे गाजा कहते हैं, यहूदियों के दावे वाले इसी इलाके में मध्यकाल में अरब फिलिस्तीनियों की आबादी बस चुकी थी। इस गाजा पट्टी पर अपने अधिकार को लेकर जंग के लिए हमास नामक आतंकवादी संगठन का उदय हुआ।

‘हमास’ का मतलब है ‘हरकत उल मुकवामा अल इस्लामियास।’ यह फिलिस्तीन का सामाजिक-राजनीतिक आतंकवादी संगठन है, जो मुस्लिम ब्रदरहुड की एक शाखा के रूप में 1987 में स्थापित किया गया था। इस संगठन का जिहाद इसराइल के खिलाफ है और इसका मकसद इसराइल से फिलिस्तीन की आजादी को सुरक्षित रखना है। इसे आत्मघाती हमलों के लिए जाना जाता है। इस आतंकवादी संगठन को इसराइली सरकार और नागरिकों के खिलाफ अपने अभियान में हिजबुल्लाह का समर्थन भी हासिल है।

हिजबुल्लाह ईरान और सीरिया समर्थित लेबनानी आतंकवादी संगठन है, जो 1982 के लेबनानी गृहयुद्ध से उभरा था। हालांकि इस संगठन को इसराइल और सुन्नी अरब देशों का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है। कहते हैं कि इस संगठन को लेबनान की 41 फीसदी जनसंख्या का समर्थन हासिल है।

चेचन्या : चेचन्या रूस के दक्षिणी हिस्से में स्थित गणराज्य है, जो मुख्‍यत: मुस्लिम बहुल क्षेत्र है। स्थानीय अलगाववादियों और रूसी सैनिकों के बीच बरसों से जारी लड़ाई ने चेचन्या को बर्बाद कर दिया है। चेचन्या पिछले  लगभग 200 सालों से रूस के लिए मुसीबत बना हुआ है। रूस ने लंबे और रक्तरंजित अभियान के बाद 1858 में चेचन्या में इमाम शमील के विद्रोह को कुचला था लेकिन इसका असर ज्यादा समय तक नहीं रहा।

लगभग 60 साल बाद जब रूस में क्रांति हुई तो चेचन फिर रूस से अलग हो गए। यह आजादी कुछ ही समय तक बनी रही और 1922 में रूस ने फिर चेचन्या पर अधिकार कर लिया। दूसरे महायुद्ध के वक्त चेचन फिर रूस से अलग हो गए। लड़ाई थमते ही रूसी नेता स्टालिन ने चेचन अलगाववादियों पर दुश्मनों से सहयोग का आरोप लगाकर उन्हें साइबेरिया और मध्य एशियाई क्षेत्रों में निर्वासित कर दिया। 1957 मे ख्रुश्चेव जब सत्ता में आए तो चेचन अलगाववादी वापस आ पाए। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद चेचन्या के लोगों ने फिर से विद्रोह कर दिया। 1994 में रूस ने वहां सेना भेजी, मगर चेचन लोगों ने जोरदार विरोध किया जिसमें दोनों तरफ के लोग भारी संख्या में मारे गए।

अगस्त 1999 में चेचन विद्रोही पड़ोसी रूसी गणराज्य दागेस्तान चले गए और वहां एक मुस्लिम गुट के अलग राष्ट्र की घोषणा का समर्थन कर दिया, जो कि चेचन्या और दागेस्तान के कुछ क्षेत्रों को मिलाकर बनाया जा रहा था, लेकिन तब तक रूस में व्लादीमिर पुतिन प्रधानमंत्री बन चुके थे और उनकी सरकार ने सख्ती दिखानी शुरू कर दी। इसके तहत चेचन्या के लिए नए संविधान को मंजूरी दी गई और चेचन्या को और स्वायत्तता दी गई। मगर ये स्पष्ट कर दिया गया कि चेचन्या रूस का हिस्सा है, लेकिन चेचन्या के विद्रोही या आतंकवादी कहां मानने वाले थे इसलिए लड़ाई अभी जारी है और इस लड़ाई का कोई अंत नहीं। इससे चेचन्या के लोगों का ही नुकसान होता जाएगा।

लंदन के एक दिवसीय प्रवास के दौरान पुतिन ने स्पष्ट कर दिया कि पश्चिम को चेचन्या के मामले में हस्तक्षेप की अपेक्षा इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि यदि इस्लामी अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद को रोका नहीं गया तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। उन्होंने कहा कि यूरोपीय देशों को चाहिए कि वे चेचन्या में इसका सामना करने के लिए मॉस्को का साथ दें। लेकिन लगता है कि वे अपनी मुस्लिम अल्पसंख्यक आबादी को नाराज नहीं करना चाहते। उन्होंने बल देकर यह भी स्पष्ट किया कि रूस को यद्यपि यह स्वीकार नहीं होगा कि उसके एक क्षेत्र से उसकी संप्रभुता को चुनौती देने वाले स्वर उभरें। रूस का लक्ष्य चेचन्या को गुलामी की जंजीरों में जकड़ना नहीं है, बल्कि इसके लोगों को इस्लामी चरमपंथियों और आतंकवादियों से मुक्त कराना है।

शिनजियांग : चीन का प्रांत शिनजियांग एक मुस्लिम बहुल प्रांत है। जबसे यह मुस्लिम बहुल हुआ है तभी से वहां के बौद्धों, तिब्बतियों आदि अल्पसंख्‍यकों का जीना मुश्किल हो गया है। अब यहां छोटे-छोटे गुटों में आतंकवाद पनप चुका है, जो चीन से आजादी की मांग करते हैं। हालांकि हर वो चीज जिससे देश को खतरा महसूस हो, चीन उसे रोकने में देर नहीं लगाता, फिर चाहे उस पर दुनिया में कितना ही बवाल मचे या उसका विरोध हो। चीन ने जिस सख्ती के साथ वहां आतंकवाद को कुचला है उसकी कोई निंदा नहीं करता है।

हाल ही में हुए धर्म सम्मलेन में कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के जनरल सेक्रेटरी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने अपने देशवासियों को चेतावनी देते हुए कहा कि वे चीन की स्टेट पॉलिसी ‘मार्क्सवादी नास्तिकता’ का अनुसरण करें और इस्लामी विचारधारा का अनुसरण न करें। यह कितनी हास्यापद बात है कि पाकिस्तान ने उस चीन से हाथ मिला रखा है, जो ईश्वर को नहीं मानता है। ऐसा उसने सिर्फ इसलिए कर रखा है ताकि वह भारत से कश्मीर मामले में मुकाबला कर सके।

चीन के शिनजियांग प्रांत में रहने वाले उइगर समुदाय के लोग इस्लाम धर्म को मानते हैं। पिछले कुछ वर्षों के दौरान उइगरों द्वारा चीनी सरकार का विरोध काफी बढ़ा है। शिनजियांग की सीमा पाकिस्तान से लगती है, जहां से कट्टरपंथी इस्लामी शिक्षाओं का प्रसार होता है। चीन पहले ही पाकिस्तान को शिनजियांग में इस्लामी शिक्षाओं प्रचार-प्रसार को रोकने की चेतावनी देता रहा है। शिनजियांग में उइगर मुस्लिमों की आबादी 1 करोड़ से ज्यादा है जिन्हें तुर्किस्तान का मूल निवासी माना जाता है। चीन ईस्ट तुर्किस्तान इस्लामिक मूवमेंट को आतंकवादी संगठन मानता है।

उइगर मुस्लिम नेता डोल्कुन ईसा पर शिनजियांग में कट्टरवाद फैलाने के आरोप हैं। चीन के अनुसार यह नेता मुस्लिम बहुल जिनजियांग प्रांत में इस्लामिक आतंकवाद का समर्थक है। जर्मनी में रह रहे डोल्कुन ईसा को चीन एक आतंकी घोषित कर चुका है और उसकी मांग पर ईसा के खिलाफ रेड कॉर्नर नोटिस जारी है। सन् 1985-89 के बीच जिनजियांग यूनिवर्सिटी में छात्र नेता के रूप में डोल्कुन ने लोगों को भड़काने का कार्य शुरू किया था। 1997 में चीन की सख्‍ती के चलते वह यूरोप भाग गया और 2006 में उसे जर्मनी की नागरिकता मिल गई। वहां रहकर इसने चीन से बाहर रह रहे उइगर मुस्लिमों के ग्रुप wuc को ज्वॉइन किया और उसका महासचिव बन गया।

कश्मीर का आतंक : कश्मीर के हालात पहले ऐसे नहीं थे। 1988 के पहले तक आम कश्मीरी खुद को भारतीय मानता था। हालांकि कश्मीर विभाजन की टीस तो सभी में थी लेकिन कट्टरता और अलगाववाद इस कदर नहीं था, जैसा कि आज देखने को मिलता है। इसके पीछे कारण है पाकिस्तान और भारतीय वामपंथ द्वारा कश्मीरियों को भड़काकर आजादी की मांग करवाना।

26 अक्टूबर को 1947 को जम्मू और कश्मीर के तत्कालीन शासक महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत के भारत में विलय के लिए विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे। गवर्नर जनरल माउंटबेटन ने 27 अक्टूबर को इसे मंजूरी दी। विलय-पत्र का खाका हूबहू वही था जिसका भारत में शामिल हुए अन्य सैकड़ों रजवाड़ों ने अपनी-अपनी रियासत को भारत में शामिल करने के लिए उपयोग किया था। न इसमें कोई शर्त शुमार थी और न ही रियासत के लिए विशेष दर्जे जैसी कोई मांग। इस वैधानिक दस्तावेज पर दस्तखत होते ही समूचा जम्मू और कश्मीर, जिसमें पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाला इलाका भी शामिल है, भारत का अभिन्न अंग बन गया था।

भारत के इस उत्तरी राज्य के 3 क्षेत्र हैं- जम्मू, कश्मीर और लद्दाख। दुर्भाग्य से भारतीय राजनेताओं ने इस क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति समझे बगैर इसे एक राज्य घोषित कर दिया, क्योंकि ये तीनों ही क्षे‍त्र एक ही राजा के अधीन थे। सवाल यह उठता है कि आजादी के बाद से ही जम्मू और लद्दाख भारत के साथ खुश हैं, लेकिन कश्मीर खुश क्यों नहीं? क्योंकि कश्मीर एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र बन चुका था। हालांकि विशेषज्ञ कहते हैं कि पाकिस्तान की चाल में फिलहाल 2 फीसदी कश्मीरी ही आए हैं बाकी सभी भारत से प्रेम करते हैं।

लंदन के रिसर्चरों द्वारा पिछले साल राज्य के 6 जिलों में कराए गए सर्वे के अनुसार एक व्यक्ति ने भी पाकिस्तान के साथ खड़ा होने की वकालत नहीं की, जबकि कश्मीर में कट्टरपंथी अलगाववादी समय-समय पर इसकी वकालत करते रहते हैं, जब तक कि उनको वहां से आर्थिक मदद मिलती रहती है। वहीं से हुक्म आता है बंद और पत्थरबाजी का और उस हुक्म की तामील की जाती है।

भारत और पाकिस्तान का बंटवारा हो चुका था जिसमें क्षेत्रों का निर्धारण भी हो चुका था फिर भी जिन्ना ने परिस्थिति का लाभ उठाते हुए 22 अक्टूबर 1947 को कबाइली लुटेरों के भेष में पाकिस्तानी सेना को कश्मीर में भेज दिया। वर्तमान के पा‍क अधिकृत कश्मीर में खून की नदियां बहा दी गईं। इस खूनी खेल को देखकर कश्मीर के शासक राजा हरिसिंह भयभीत होकर जम्मू लौट आए। वहां उन्होंने भारत से सैनिक सहायता की मांग की, लेकिन सहायता पहुंचने में बहुत देर हो चुकी थी। नेहरू की जिन्ना से दोस्ती थी। वे यह नहीं सोच सकते थे कि जिन्ना ऐसा कुछ कर बैठेंगे। लेकिन जिन्ना ने ऐसा कर दिया जिसे आज तक भुगतना पड़ रहा है।

जारी है.. भारतीय सेना पाक अधिकृत कश्मीर को पुन: अपने कब्जे में लेने की लड़ाई लड़ ही रही थी…. यंहा क्लिक करे

 

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