बार कोटे से सिविल जज सीधे जिला जज नहीं बन सकते, प्रमोशन ही आधार : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को यह साफ कर दिया कि वकीलों के कोटे (बार कोटा) से सिविल जज को जिला जज नियुक्त नहीं किया जा सकता। सिविल जज सिर्फ प्रमोशन के आधार पर ही जिला जज बन सकते हैं। शीर्ष अदालत ने कहा, जिला जजों पर सीधी भर्ती के लिए न्यूनतम सात वर्ष वकालत का अनुभव रखने वाले वकील ही योग्य हैं। यानी सिर्फ बार के सदस्य ही इसके लिए आवेदन कर सकते हैं।
जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस एस रविंदर भट्ट की पीठ ने आदेश में कहा, जिला जज के लिए होने वाली नियुक्ति परीक्षा में सात वर्ष वकालत का अनुभव रखने वाले वकील ही बैठ सकते हैं।
संविधान के अनुच्छेद-233 का हवाला देते हुए पीठ ने कहा कि कहा कि भले ही सिविल जज जूनियर डिविजन (न्यायिक अधिकारी) बनने से पहले उनके पास सात वर्ष वकालत का अनुभव हो लेकिन वह जिला जज पद पर होने वाली सीधी भर्ती के लिए आयोजित परीक्षा में नहीं बैठ सकते। अनुच्छेद 234 और 309 के प्रावधानों के तहत सिविल जज सिर्फ पदोन्नति के आधार पर जिला जज बन सकते हैं।
गौरतलब है कि वर्ष 2018 में जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मोहन एम शांतानागौदार की खंडपीठ ने अनुच्छेद 233 में जटिलता को देखते हुए इसे बड़ी पीठ के पास व्याख्या करने के लिए भेज दिया था। वास्तव में दिल्ली, यूपी समेत देश के कई प्रांतों के न्यायिक अधिकारियों ने अलग-अलग समय में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जिला जज के लिए होने वाली भर्ती परीक्षा में बैठने की इजाजत मांगी थी। करीब छह वर्ष से यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित था।
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