‘धर्मांतरण को खुद से गंभीर मानकर, जमानत देने से मना नहीं कर सकते’, सुप्रीम कोर्ट की इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार

‘धर्मांतरण को खुद से गंभीर मानकर, जमानत देने से मना नहीं कर सकते’, सुप्रीम कोर्ट की इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार

मानसिक रूप से विक्षिप्त नाबालिग लड़के को इस्लाम में धर्मांतरित करने वाले आरोपी मौलवी को जमानत देने से मना करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि जमानत देना विवेक का मामला है. इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि जज अपनी मर्जी से ही धर्मांतरण को बहुत गंभीर मान लें और जमानत देने से मना कर दें.

सुप्रीम कोर्ट की दो सदस्यीय पीठ (जस्टिस जेबी पारदावीला और जस्टिस आर महादेवन) ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने जमानत देने से मना कर दिया और हम ये बात समझ सकते हैं. क्योंकि ट्रायल कोर्ट शायद ही कभी जमानत देने की हिम्मत जुटा पाएं फिर चाहे वह कोई भी अपराध हो. हालांकि, कम से कम हाईकोर्ट से इतनी उम्मीद की जा सकती है कि वे हिम्मत जुटाकर अपने विवेक का न्यायिक ढंग से इस्तेमाल कर सकें.

दोनों पक्षों ने दी ये दलीलें

सुप्रीम कोर्ट ने मौलवी सैयद शाद खजमी उर्फ मोहम्मद शाह के रिहाई का आदेश दिया. शाद 11 माह से जेल में था. कानपुर शहर में उसके खिलाफ केस दर्ज है. सर्वोच्च अदालत ने कहा कि ये मामला असल में उनके पास तक नहीं पहुंचना चाहिए था. सरकार की ओर से पेश हुए वकील ने बताया कि उन्होंने अधिकतम 10 साल तक के कारावास वाले अपराध में आरोपी को गिरफ्तार किया था. इसके अलावा, बचाव पक्ष ने दलील दी कि लड़के को बेसहारा सड़क पर छोड़ दिया गया था. मानवीय आधार पर नाबालिग को उसने आश्रय दिया.

‘जमानत से इनकार करने का कोई उचित कारण नहीं’

दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा कि, ‘जमानत देने से इनकार करने का हाईकोर्ट के पास कोई ठोस कारण नहीं था. आरोपी पर हत्या, बलात्कार, डकैती जैसे गंभीर अपराध के आरोप नहीं है. उच्च न्यायालय इस बात को समझने में विफल रही कि अगर इसे रिहा कर दिया जाता तो अभियोजन पक्ष को क्या नुकसान हो जाता. मामले की सुनवाई चलेगी और अगर अभियोजन पक्ष अपना पक्ष साबित कर पाया तो आरोपी को दंडित किया जाएगा.’

सुप्रीम कोर्ट में भी बढ़ रहे जमानत के आवेदन-SC

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, ‘ट्रायल जजों को यह समझाने के लिए साल भर कितने सारे कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं कि कैसे जमानत याचिका पर अपने विवेक से उन्हें विचार करना चाहिए. जब कभी हाईकोर्ट ऐसे मामलों में जमानत देने से मना कर देते हैं तो ऐसा लगता है कि उन्होंने जमानत के सिद्धांतों की अनदेखी की है. इसी वजह से दुर्भाग्य है कि हाईकोर्ट के साथ-साथ देश के सर्वोच्च अदालतों में आवेदन की बाढ़ आ गई है.’


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