मोहन भागवत का बयान: “हमने किसी को नकारा नहीं, सभी को स्वीकार किया है”
नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने एक कार्यक्रम के दौरान यह बात जोर देकर कही कि संघ की परंपरा किसी को नकारने की नहीं है, बल्कि सभी विचारों को स्वीकार करने की है। उन्होंने यह भी कहा कि पिछले 2000 वर्षों में जितने भी विचार और प्रयोग हुए, चाहे वह आस्तिक दर्शन हो या नास्तिक दर्शन, हमने सभी को स्वीकार किया है। भागवत का यह बयान दुनिया में हो रहे भौतिक विकास और इसके नकारात्मक परिणामों को लेकर आया है।
“भौतिक विकास से मानवता का विनाश”
मोहन भागवत ने कहा कि आज भौतिक विकास अपने चरम पर है, लेकिन इसके कदम मानवता को विनाश की ओर ले जा रहे हैं। उन्होंने कहा, “पिछले 2000 वर्षों में भौतिक विकास के कई प्रयोग हुए, लेकिन ये जीवन में सुख और शांति लाने में असफल रहे हैं। अब इस दुनिया के सभी विचारक यह मान रहे हैं कि यह विकास हमें विनाश की ओर धकेल रहा है। इसका उत्तर हमारी परंपरा में है, जिसमें हमने किसी को नकारा नहीं, बल्कि सभी को स्वीकार किया है।”
“संघर्ष के बिना जीवन नहीं, लेकिन समन्वय जरूरी”
भागवत ने इस बात पर भी जोर दिया कि जीवन में संघर्ष का होना अवश्यंभावी है, लेकिन इस संघर्ष में समन्वय भी महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “हम सबने अनुभव किया है कि जीवन में संघर्ष के बिना कुछ नहीं है, लेकिन इस संघर्ष में छिपे हुए समन्वय को मूर्त करना ही महत्वपूर्ण है। दुनिया इस समन्वय को नहीं समझ पाई है और इसी वजह से 2000 वर्षों से अधूरे विचारों पर जीवन चलता आ रहा है।”
“विविधता और एकता को स्वीकार करना ही सही रास्ता”
विविधता को लेकर उन्होंने कहा, “दुनिया को जबरन एक करने का रास्ता सही नहीं है। हम पहले से ही एक हैं, लेकिन यह एकता विविधता में छिपी है। हमारी परंपरा इस विविधता को स्वीकार करती है और इसे मिटाने की बजाय, इसमें छिपी एकता को समझने की दिशा में काम करती है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि विविधता और एकता को एक साथ स्वीकार करके ही हम सही दिशा में बढ़ सकते हैं।
दीनदयाल उपाध्याय का उदाहरण
आरएसएस प्रमुख ने बीजेपी के कार्यकर्ताओं को दीनदयाल उपाध्याय का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके आदर्श आज भी प्रासंगिक हैं। उन्होंने कहा, “आज की पीढ़ी के कार्यकर्ताओं को दीनदयाल उपाध्याय की कहानी सुनकर लगता है कि यह असंभव है। लेकिन हमें उनके आदर्शों से प्रेरणा लेकर अगर उनके तेज का शतांश भी मिल जाए, तो हम देश में उजाला फैला सकते हैं।”
भागवत के इस बयान ने एक बार फिर संघ की विचारधारा को स्पष्ट किया है, जिसमें विविधता को स्वीकार कर, एकता की दिशा में बढ़ने की बात कही जाती है।