बेटियों ने मजबूरी में अपनी ही मां को बनाया बंधक, वजह जानकार कांप जाएगी आपकी रुह

बेटियों ने मजबूरी में अपनी ही मां को बनाया बंधक, वजह जानकार कांप जाएगी आपकी रुह

छतरपुर: बुंदेलखंड में नाबालिग बच्चों द्वारा अपनी मां को जंजीरों में जकड़कर रखने का मामला सामने आया है। आखिर ऐसा क्या हुआ कि इन बेबस नाबालिग बच्चों को जन्म देने वाली अपनी ही सगी मां को जंजीरों में जकड़कर रखना पड़ रहा है और इसके लिए कोई इन्हें गलत नहीं कह रहा और न ही कोई आरोप लगा रहा है। इन नाबालिग बच्चों ने पिछले 4-5 दिनों से खाना नहीं खाया है और न ही किसी ने इनकी भूख मिटाने में मदद की है घर में रखे सूखे चावल खाकर गुजर कर रहे हैं।

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मामला मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले शहर मुख्यालय का है, जहां 48 वर्षीय शीला कुशवाहा को उसकी ही नाबालिग बेटियों ने जंजीरों और रस्सियों से हाथ-पैरों को बांधकर रखा हुआ है। यह इन बेटियों की बेबसी है कि जन्म देने वाली को मजबूरन इस प्रताड़ना का शिकार होना पड़ रहा है।
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यह है पूरी कहानी…
जानकारी के मुताबिक छतरपुर शहर के सिटी कोतवाली थानांतर्गत रहने वाली 48 वर्षीय शीला कुशवाहा के पति का स्व. हलकाईं कुशवाहा 10 माह पहले बीमारी के चलते देहांत हो गया था। जिसके बाद से परिवार की सारी जिम्मेदारी शीला के ही कंधों पर आ गई थी और वह मेहनत मजदूरी कर जैसे-तैसे अपने बच्चों और बूढ़ी सास का भरण पोषण कर रही थी। लेकिन पिछले कुछ महीनों में उसकी तबीयत बिगड़ने लगी और वह विक्षिप्तों की तरह व्यवहार करने लगी। आखिरकार बच्चों ने पड़ोसियों की मदद से उसके हाथ पाव बांध दिए ताकि वह खुद को कोई चोट न पहुंचा सके।

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कोई नहीं कर रहा मदद, वाकये से जनप्रतिनिधि नकारा साबित हुए…
यह वीभत्स और दिल को झकझोर देने वाला नज़रा सिर्फ एक दिन का नहीं प्रति दिन का है। बाबजूद इसके इन मां बेटियों की मदद के लिए कोई भी नेता, अधिकारी, समाजसेवी, संस्थाएं, जनप्रतिनिधि आगे आ रहा है बल्कि जानबूझकर अनदेखा कर रहे हैं।

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भूखमरी की कगार पर परिवार…
वहीं उसके परिवार में उसकी 80 वर्षीय बूढ़ी सास हरबाई कुशवाहा, तीन नाबालिग बेटियां 16 वर्षीय कविता, 14 वर्षीय मंजू, 8 वर्षीय कल्पना और 12 वर्षीय एक बेटा चंचल हैं। जबकि दो बड़ी बालिग बेटियों की शादियां हो चुकीं हैं जो अब अपने ससुराल में रह रहीं हैं। वृद्ध सास कुछ करने लायक नहीं, नाबालिग बच्चे कुछ कर नहीं सकते जिससे इन बच्चों और बूढ़ी सास के भरण-पोषण, दवा-दारू, पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी सिर्फ और सिर्फ शीला कुशवाहा की रह जाती है। लेकिन वह खुद इस हालत में हो गई तो ऐसे में कोई भी एक पैसे से इनकी मदद करने वाला नहीं है।
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लॉक डाउन से काम बंद हुआ तो सांसें भी थमने लगीं…
यहां बता दें कि पिछले कई महीनों से लॉक डाउन के चलते काम-काज बंद होने से शीला मेहनत मजदूरी को भी नहीं जा पा रही जिससे परिवार के भूखे रहने की नौबत तक आ गई। बच्चों का लालन-पालन, पढ़ाई-लिखाई, बूढ़ी सास का रख-रखाव, ईलाज़ और बेटियों के भविष्य की चिंता जैसे उसे खाये जा रही थी। इसी चिंता ने शीला को मानसिक परेशान कर दिया। जिससे वह अपना आपा खो बैठी और विक्षिप्तों जैसा व्यवहार करने लगी। अपने आप में बड़बड़ाते रहना कई दिनों से दिन-रात जागते रहना और खुद को नुकसान पहुंचाना उसकी दिनचर्या हो गई। यहां यह सब बेबस और नाबालिग बच्चे चुपचाप देखते रहते और जैसे जो बन पड़ता खुद को और अपनी मां को सहेजते, संभालते रहते।

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दिन गुजरने पर इस तरह मां की विक्षिप्तता और बढ़ गई और अब उसने अपना कच्चा मकान छप्पर गिराना शुरू कर दिया और गिरा भी दिया जिसमें वह खुद भी चोटिल हो गई। जिसके चलते अब बच्चों ने पड़ोसियों से हाथ जोड़कर मदद मांगी और मां को जंजीरों से जकड़ दिया ताकि वह खुद को और किस को नुकसान न पहुंचा सके। यहां इसी तरह बांधे हुए बच्चे अपनी मां को खाना-पानी देते नित्य क्रिया करते और यह अब उनका रोजाना का कार्य बन गया था। मां के काम पर न जाने से परिवार की माली हालत और बिगड़ गई सबके भूखों रहने की नौबत आ गई। जहां अब बच्चे घर में रखे सूखे चावल खाकर गुजर बसर कर रहे हैं।

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वहीं इस मामले में सारे मोहल्ले में बोलने बताने को सब तैयार थे पर मदद के लिए कोई नहीं। लोगों का कहना था कि हम खुद गरीब है रोजाना कमा खाकर गुजर बसर कर रहे हैं, इनकी कैसे मदद करें जो जिम्मेदार हैं शासन, प्रशासन, नेता, समाजसेवी, जनप्रतिनिधि कोई आगे नहीं आ रहा यहां नेता सिर्फ चुनाव में वोट मांगने आते हैं मदद करने नहीं, जो भी जीता जहां दोबारा नहीं आया। आया तो सिर्फ पांच साल बाद वो भी वोट मांगने अथवा कतई नहीं।

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