बिहार उपचुनाव परिणाम: लालू-नीतीश की दोस्ती फेल, परंपरागत वोटर्स की नई गोलबंदी

बिहार उपचुनाव परिणाम: लालू-नीतीश की दोस्ती फेल, परंपरागत वोटर्स की नई गोलबंदी

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के कोर वोटर्स में भी भारी बदलाव देखा गया है. मोकामा में धानुक मतदाताओं की संख्या तकरीबन 40 हजार हैं, जिनमें 35 से चालीस फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया है.

लालू और नीतीश की जोड़ी के एक साथ आने के बाद पहला चुनाव बिहार को दो विधानसभा में हुआ लेकिन दोनों दलों के एक साथ आने का फायदा गोपालगंज और मोकामा में दिखाई नहीं पड़ा है. साल 2015 में विधानसभा चुनाव में आरजेडी और जेडीयू ने बीजेपी की कमर तोड़कर रख दी थी लेकिन इस बार जेडीयू के साथ आने का असर गोपालगंज और मोकामा में कोई खास नजर नहीं आया है. इतना ही नहीं इस उपचुनाव में सभी दलों के परंपरागत वोटर्स भी नए दल के साथ जाते हुए दिखाई पड़े हैं. ज़ाहिर है बदलते दौर के साथ वोटर्स में नए तरह की गोलबंदी दिखाई पड़ी है लेकिन साल 2015 की तरह मजबूत महागठबंधन इस उपचुनाव में नहीं दिखाई पड़ा है.

अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी की जीत महागठबंधन की जीत नहीं बल्कि अनंत सिंह की लोकप्रियता और बाहुबल की जीत मानी जा रही है. कहा जा रहा है कि बाहुबली लगातार सात दफा चुनाव जीतने की वजह से बाहुबली के साथ रॉबिनहुड का शक्ल अख्तियार कर चुका है. आकंड़ों पर गौर फरमाएं तो पिछले चुनाव में आरजेडी के प्रत्याशी अनंत सिंह को 78 हजार 7 सौ 21 वोट मिले थे वहीं इस उपचुनाव में 79 हजार एक सौ 46 वोट अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को प्राप्त हुए हैं. मतलब साफ है पिछली दफा से इस बार वोटों में इजाफा तकरीबन 3 सौ 25 वोटों का है.

नीतीश कुमार का तिलिस्म क्या अब टूट चुका है?

जाहिर है मोकामा से चुनाव लड़ने वाले अनंत सिंह या उनका परिवार सातवीं बार एमएलए बना है और उनके वोटों में नीतीश कुमार का योगदान कहीं भी नजर नहीं आया है. ध्यान देने वाली बात यह है कि कभी बाढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने वाले नीतीश कुमार का यह इलाका रहा है लेकिन वोटों की संख्या को देखकर कहा जा सकता है कि अनंत सिंह के मोकामा नहीं आने और महागठबंधन में शामिल होने से अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी को कोई फायदा नहीं पहुंचा है.

गोपालगंज में आरजेडी ने मोहन गुप्ता को मैदान में उतारा था. तेजस्वी यादव की चाल सटीक थी और तारापुर विधानसभा की तरह तेजस्वी यादव बीजेपी के वोट बैंक में सेंधमारी करना चाह रहे थे. तेजस्वी यादव इसमें बहुत हद तक कामयाब तो हुए लेकिन उनकी चाल उपचुनाव जीत में तब्दील नहीं हो सकी. नीतीश कुमार दोनों जगहों पर ऐसा कोई असर नहीं दिखाई पड़ा है. बीजेपी के दिवंगत नेता साल 2020 में 77 हजार 1 सौ 93 वोट लाने में कामयाब रहे थे वहीं इस बार

बीजेपी अकेले चुनाव मैदान में डंटी थी और पार्टी 70 हजार वोट लाने में कामयाब रही. मतलब साफ है कि पिछली दफा सुभाष यादव और कांग्रेस के मुस्लिम प्रत्याशी होने की वजह से दोनों को मिलाकर तकरीबन 76 हजार वोट मिले थे और साधु यादव 36 हजार से चुनाव हार गए थे. आरजेडी के एक बड़े नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा कि दोनों दलों के कार्यकर्ताओं में समन्वय का साफ अभाव था और जेडीयू कार्यकर्ताओं की उदासीनता मोकामा से लेकर गोपालगंज में ज़मीन पर दिखाई पड़ रही थी.

परंपरागत वोटर्स का भटकाव पार्टियों के लिए चिंता

नीतीश कुमार के कोर वोटर्स में भी भारी बदलाव देखा गया है. मोकामा में धानुक मतदाताओं की संख्या तकरीबन 40 हजार हैं, जिनमें 35 से चालीस फीसदी मतदाताओं ने बीजेपी के पक्ष में मतदान किया है. इतना ही नहीं बीजेपी मोकामा से 27 साल बाद चुनावी मैदान में उतरी थी लेकिन लाभार्थियों के एक बड़े वर्ग ने जाति पाति की सीमाओं को तोड़कर केन्द्र सरकार द्वारा चलाई गई योजनाओं की वजह से बीजेपी के पक्ष में मतदान करती दिखाई पड़ी हैं.दरअसल धानुक जाति के वोटर्स नीतीश कुमार के परंपरागत वोटर्स माने जाते रहे हैं.

राजनीतिक विश्लेषक अरुण कुमार पांडे कहते हैं बिहार में बीजेपी नीतीश कुमार के कंधे पर राजनीति करती रही है लेकिन इस उपचुनाव में आठ दलों के विरोध के बावजूद एक सीट पर बीजेपी की जीत और 27 साल बाद मोकामा में बीजेपी का चुनावी मैदान में उतरना और अनंत सिंह की पत्नी को जोरदार टक्कर देना ये बताता है कि उपचुनाव में आरजेडी को जेडीयू के गठबंधन से कोई फायदा नहीं हुआ है.

वैसे मोकामा में भूमिहार जाति के तकरीबन 80 हजार वोटर्स बताए जाते हैं जिनमें पचास फीसदी मतदाताओं का वोट अनंत सिंह के पक्ष में गया है. दरअसल अनंत सिंह की पत्नी की जीत उनकी निजी जीत के तौर पर देखी जा रही है और अनंत सिंह सात बार से जेडीयू या आरजेडी से विधायक चुने जाते रहे हैं. ऐसे में उनकी जीत का अंतर कम होना बीजेपी की बढ़ती लोकप्रियता के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन गोपालगंज और मोकामा में बनिया और भूमिहार का बड़ा वर्ग आरजेडी के पक्ष में भी मतदान किया है जो काफी सालों से बीजेपी का परंपरागत वोटर्स रहा है.

क्यों आठ पार्टी मिलकर भी गोपालगंज में नहीं पटक सकी बीजेपी को?

जेडीयू का असर वाकई होता तो विधानसभा में इसका असर आरजेडी के रूप में दिखाई पड़ सकता था. आरजेडी के लिए एमवाई समीकरण गोपालगंज में जीत का सीधा कारक हो सकता था लेकिन असुदद्दीन ओवैसी की पार्टी द्वारा मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी और साधु यादव द्वारा वोटों में सेंधमारी से आरजेडी को हार का सामना करना पड़ा है. दरअसल गोपालगंज में जाति के आधार पर मतदाताओं की संख्या देखें तो सबसे ज्यादा वहां मुस्लिम मतदाता हैं . यहां मुसलमानों की संख्या 55 से साठ हजार बताई जाती है. मुस्लिम मतदाताओं के बाद यादव पचास हजार,राजपूत 40 हजार,बनिया 30 से 35 हजार और दलित बीस हजार बताए जाते हैं.

जाति के आधार पर माई समीकरण गोपालगंज में मजबूत दिखाई पड़ता है और आरजेडी से बनिया जाति के उम्मीदवार बनाए जाने पर बनिया जाति में सेंधमारी आरजेडी की जीत का कारक हो सकता था, लेकिन दलित विरादरी की 20 हजार मतदाताओं संख्या और ईबीसी के मतदाताओं ने महागठबंधन का वैसा साथ नहीं दिया इसलिए भी बीजेपी चुनाव जीतने में कामयाब रही है. राजनीतिक विश्लेषक डॉ संजय कुमार कहते हैं कि गोपालगंज और मोकामा में बीजेपी ने सात -आठ पार्टियों के गठबंधन के साथ अकेली लड़ी है जिसमें गोपालगंज की जीत और मोकामा में कम मार्जिन से हारना उपचुनाव का नतीजा बीजेपी की मजबूत स्थितियों की गवाही देता है.

दरअसल, बीजेपी पहली बार मोकामा में 63 हजार के आंकड़े को छू सकी है. पिछले 27 सालों में अनंत सिंह की जीत का फासला 30 हजार से ऊपर रहा है लेकिन इस दफा जीत का अंतर सोलह हजार के आसपास होने की वजह महादलित और अतिपिछड़ों के वोटों में बिखराव का होना बताया जा रहा है. गोपालगंज में ओवैसी की पार्टी 12 हजार के आसपास और साधू यादव 8 हजार वोट ले सकेंगे इसका अनुमान आरजेडी को नहीं था. इतना ही नहीं आरजेडी के स्थानीय नेता रियाजुल हक पर भितरघात का आरोप है लेकिन ओवैसी के प्रदर्शन और साधु यादव की भूमिका से साफ हो गया है महागठबंधन के लिए आने वाले दिनों में एआईएमआईएम मुश्किल पैदा कर सकती है.

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