इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को दिए निर्देश, किसानों को ब्याज समेत करे भुगतान

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकार को दिए निर्देश, किसानों को ब्याज समेत करे भुगतान

प्रदेश के लाखों गन्ना किसानों को राहत देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि वह किसानों के सभी बकाए का एक माह में ब्याज सहित भुगतान करवाएं। कोर्ट ने सामान्य समादेश जारी करते हुए प्रदेश के मुख्य सचिव और गन्ना आयुक्त उप्र को इस आदेश का अनुपालन करने के लिए कहा है।

यह आदेश न्यायमूर्ति शशिकांत गुप्ता तथा न्यायमूर्ति एसएस शमशेरी की खंडपीठ ने किसान जयपाल सिंह और अन्य की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने भुगतान में विलंब के लिए जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त टिप्पणी की है।

कोर्ट ने कहा है कि कंट्रोल ऑर्डर के तहत गन्ना खरीद से 14 दिन के भीतर गन्ना मूल्य का भुगतान किए जाने की बाध्यता है। यदि 14 दिन में भुगतान नहीं होता तो 15 प्रतिशत की दर से ब्याज देना होगा। इस सख्त नियम के बावजूद किसानों को गन्ना मूल्य के लिए कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ रहे हैं।

जिम्मेदार अफसर को सोने की अनुमति नहीं

कोर्ट ने अधिकारियों के रवैये की आलोचना करते हुए कहा कि जिन अधिकारियों पर गन्ना भुगतान की जिम्मेदारी है, उनको सोते रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती। गन्ना मूल्य का भुगतान न करना न केवल किसानों का उत्पीड़न है, बल्कि उनको अनावश्यक मुकदमेबाजी में धकेलना भी है। अधिकारियों और गन्ना मिलों के कदाचार को रोकने के लिए बकाए गन्ना मूल्य का तुरंत भुगतान कराया जाना जरूरी है।

कोर्ट ने चेतावनी देते हुए कहा है कि यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता तो इसके जवाबदेह अधिकारी की कोर्ट के प्रति जवाबदेही होगी। कोर्ट ने महानिबंधक को आदेश की प्रति मुख्य सचिव और गन्ना आयुक्त लखनऊ को उपलब्ध कराने का आदेश दिया है।

याचीगण को 15 दिन में भुगतान का आदेश

कोर्ट ने सभी गन्ना किसानों को एक माह में, जबकि याचिका दाखिल करने वाले किसानों को बकाए का भुगतान मय ब्याज के 15 दिन में किए जाने का निर्देश दिया है। याची किसानों का एक लाख 60 हजार 660 रुपये और एक लाख एक हजार 814 रुपये चीनी मिल पर बकाया है। किसानों को भुगतान नहीं किया गया और किसानों द्वारा बैंक से लिए गए लोन की वसूली का दबाव डाला जा रहा है।

जिसपर उन्होंने गन्ना मूल्य बकाए के भुगतान के लिए हाई कोर्ट की शरण ली थी। याचिका पर वीबी यादव और गन्ना समितियों की तरफ से अधिवक्ता रवीन्द्र सिंह, जबकि राज्य सरकार की तरफ से आलोक सिंह ने पक्ष रखा ।

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