दिल्ली में फिर आया भूकंप, IIT कानपुर की स्टडी में जताई गई है बड़े भूकंप की आशंका

दिल्ली में फिर आया भूकंप, IIT कानपुर की स्टडी में जताई गई है बड़े भूकंप की आशंका

 

  • दिल्ली से बिहार के बीच आ सकता है 8.5 तीव्रता का बड़ा भूकंप
  • IIT कानपुर के सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रफेसर ने जताई आशंका
  • 500 साल में गंगा के मैदानी क्षेत्र में कोई बड़ा भूकंप रेकॉर्ड नहीं किया गया
  • 2001 के भुज भूकंप ने 300 किमी दूर अहमदाबाद तक मचाई थी तबाही

कानपुर
दिल्ली-एनसीआर में लॉकडाउन के दौरान शुक्रवार को पांचवीं बार भूकंप के झटके महसूस किए गए हैं। रिक्टर स्केल पर इसकी तीव्रता 4.6 और केंद्र हरियाणा के रोहतक में था। ये भूंकप ऐसे समय में आने शुरू हुए हैं जब हाल ही में आईआईटी कानपुर के अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि दिल्ली से बिहार के बीच बड़ा भूकंप आ सकता है। इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 7.5 से 8.5 के बीच होने की आशंका है। शुक्रवार को भूकंप आने के बाद इस अध्ययन की चर्चा एक बार फिर शुरू हो गई। आइए समझते हैं कि IIT कानपुर ने किस खतरे की आशंका जाहिर की है।

सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रफेसर जावेद एन मलिक के अनुसार, इस दावे का आधार यह है कि पिछले 500 साल में गंगा के मैदानी क्षेत्र में कोई बड़ा जलजला रेकॉर्ड नहीं किया गया है। रामनगर में चल रही खुदाई में 1505 और 1803 में भूकंप के अवशेष मिले हैं।

भूकंप का डिजिटल ऐटलस
प्रफेसर जावेद ने बताया कि 1885 से 2015 के बीच देश में सात बड़े भूकंप दर्ज किए गए हैं। इनमें तीन भूकंपों की तीव्रता 7.5 से 8.5 के बीच थी। 2001 में भुज में आए भूकंप ने करीब 300 किमी दूर अहमदाबाद में भी बड़े पैमाने पर तबाई मचाई थी। शहरी नियोजकों, बिल्डरों और आम लोगों को जागरूक करने के लिए केंद्र सरकार के आदेश पर डिजिटल ऐक्टिव फॉल्ट मैप ऐटलस तैयार किया गया है। इसमें सक्रिय फॉल्टलाइन की पहचान के अलावा पुराने भूकंपों का रेकॉर्ड भी तैयार हुआ है। ऐटलस से लोगों को पता चलेगा कि वे भूकंप की फॉल्ट लाइन के कितना करीब हैं और नए निर्माण में सावधानियां बरती जाए।

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सक्रिय फॉल्टलाइन की पहचान के अलावा पुराने भूकंपों का रेकॉर्ड भी तैयार हो रहा है।


रामनगर में मिल रहे प्रमाण

इस ऐटलस को तैयार करने के दौरान टीम ने उत्तराखंड के रामनगर में जमीन में गहरे गड्ढे खोदकर सतहों का अध्ययन शुरू किया था। जिम कॉर्बेट नैशनल पार्क से 5-6 किमी की रेंज में हुए इस अध्ययन में 1505 और 1803 में आए भूकंप के प्रमाण मिले। रामनगर जिस फॉल्ट लाइन पर बसा है, उसे कालाडुंगी फॉल्टलाइन नाम दिया गया है। प्रफेसर जावेद के अनुसार, 1803 का भूकंप छोटा था, लेकिन मुगलकाल के दौरान 1505 में आए भूकंप के बारे में कुछ तय नहीं हो सका है। जमीन की परतों की मदद से इसे निकटतम सीमा तक साबित करना बाकी है।

उनका दावा है कि कुछ किताबों में भी इसके प्रमाण मिले हैं। सैटलाइट से मिली तस्वीरों के अध्ययन से यह भी पता चला है कि डबका नदी ने रामनगर में 4-5 बार अपना अपना ट्रैक बदला है। अगले किसी बड़े भूकंप में यह नदी कोसी में मिल जाएगी। बरेली की आंवला तहसील के अहिच्छत्र में 12वीं से लेकर 14वीं शताब्दी के बीच भूकंपों के अवशेष मिले हैं।

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आईआईटी कानपुर में सिविल इंजिनियरिंग विभाग के प्रफेसर जावेद एन मलिक

दूर तक होगा असर
प्रफेसर मलिक कहते हैं कि मध्य हिमालयी क्षेत्र में भूकंप आया तो दिल्ली-एनसीआर, आगरा, कानपुर, लखनऊ, वाराणसी और पटना तक का इलाका प्रभावित हो सकता है। किसी भी बड़े भूकंप का 300-400 किमी की परिधि में असर दिखना आम बात है। इसकी दूसरी बड़ी वजह है कि भूकंप की कम तीव्रता की तरंगें दूर तक असर कर बिल्डिंगों में कंपन पैदा कर देती हैं। गंगा के मैदानी क्षेत्रों की मुलायम मिट्टी इस कंपन के चलते धसक जाती है।

इंडियन और तिब्बती (यूरेशियन) प्लेटों की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए फॉल्टलाइनों के करीब 20 स्थायी जीपीएस स्टेशन लगाए गए हैं। सरकार चाहे तो भूकंप संभावित क्षेत्रों में सेस्मोमीटर भी लगाए जा सकते हैं।

ज्यादा प्रतिबद्धता की जरूरत
नैशनल इन्फर्मेशन सेंटर ऑफ अर्थक्वेक इंजिनियरिंग के संयोजक प्रफेसर दुर्गेश सी राय ने बताया था कि भूकंप से निपटने के लिए कहीं कोई प्रतिबद्धता नहीं दिख रही है। कुछ प्राइवेट बिल्डरों को छोड़ दिया जाए तो स्थानीय निकाय और सरकारी तंत्र ने अपना रवैया नहीं बदला है। 2015 के नेपाल भूकंप के बाद बिल्डिंग कोड सख्त हुआ, लेकिन लगता है कि अब तक पुराने बिल्डिंग कोड का ही पालन नहीं हुआ है। प्रचार अभियान चलाकर लोगों को संभावित खतरे के प्रति आगाह करना होगा।

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