फसल अवशेष प्रबंधन के प्रति किसानों को जागरूक करने का अभियान शुरू

  • पर्यावरण प्रदूषण से अस्थमा, डायबिटीज के मरीजों को साँस लेना दूभर

सहारनपुर [24CN]: सर्दी में प्रदूषण को लेकर अभी से सक्रियता दिखने लगी है। प्रदूषण के स्तर में कुछ हद तक कमी आई है, हालांकि ये पर्याप्त नहीं है। अलबत्ता इससे ये जरूर पता चलता है कि जो कार्रवाई की जा रही है, उसका असर हो रहा है। ऐसा होना मानव शरीर के लिए जरूरी है। फसल अवशेष प्रबंधन के लिए प्रशासन ने सख्त कदम उठाने शुरू कर दिये है। गांव-गांव जाकर अधिकारी खुद लोगों को समझा रहे हैं। जिले के किसानों को जागरूक करने के लिए अभियान चलाया जा रहा हैं। पराली जलाने वालों से जुर्माना वसूलने के साथ उनके खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराई जा रही है। आरोपियों की गिरफ्तारी भी की जा रही है।

प्रशासन के इतना सब करने के बावजूद कतिपय किसान पराली जलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। आलू और गेहूं की बुवाई को बेताब किसान खेत खाली करने की जल्दबाजी में पराली जलाने में जुटे हैं। जिले के आला अफसर किसानों से सीधे संवाद कर उन्हें पराली जलाने से होने वाले नुकसान और दंडात्मक कार्रवाई के बारे में जानकारी दे रहें है। पिछले दो दिनों के दौरान सहारनपुर मण्डल के 17 किसानों के खिलाफ कार्रवाही करते हुए 45 हजार रूपए जुर्माने के रूप में वसूले गये। अकेले सहारनपुर में एक महिला सहित आठ किसानों के विरूद्ध प्रथम सूचना रिपोर्ट जारी की गई तथा पंचायत सचिवों को भी कारण बताओं नोटिस जारी किये गये है। प्रशासन से सख्ती करते हुए पराली जलाने वाले गांवों के ग्राम प्रधान के विरूद्ध भी कार्रवाही की निर्देश दिए गए है।

कृषि एवं पर्यावरण विशेषज्ञ का कहना है कि पराली जलाने से पैदा हुआ धुआं लोगों के श्वसन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि धुएं से कोरोना वायरस का असर और घातक हो सकता है। एक टन पराली जलाने से हवा में तीन किलो कार्बन कण, 1513 किग्रा कार्बन डाइऑक्साइडए 92 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइडए 3.83 किग्रा नाइट्रस ऑक्साइडए 0.4 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइडए 2.7 किग्रा मीथेन और 200 किलो राख घुल जाती है। इससे मानव शरीर पर प्रतिकूल असर पड़ता है। इसस भूमि की ऊपजाऊ क्षमता लगातार घटती जा रही है। इस कारण भूमि में 80 प्रतिशत तक नाइट्रोजन, सल्फर और 20 प्रतिशत अन्य पोषक तत्वों में कमी आ रही है। पराली जलाने से भूमि के मित्र कीट नष्ट होने से शत्रु कीटों का प्रकोप बढ़ जाता है जिससे फसलों में तरह-तरह की बीमारियाँ हो रही हैं। मिट्टी की ऊपरी परत कड़ी होने से जलधारण क्षमता में भी कमी होती है। पराली को जलाने से पर्यावरण के प्रदूषित कण शरीर के अन्दर जाकर खाँसी को बढ़ाते हैं। अस्थमा, डायबिटीज के मरीजों को साँस लेना दूभर हो जाता है। फेफड़ों में सूजन सहित टॉन्सिल्स, इन्फेक्शन, निमोनिया और हार्ट की बीमारियाँ जन्म लेने लगती हैं। खासकर बच्चों और बुजुर्गों को ज्यादा परेशानी होती है। कोरोना वायरस संक्रमण का मूल ही सांस पर आधारित है धुएं के होने से कोविड-19 जैसे माहमारी भी विकराल रूप धारण कर सकती है।
पर्यावरणविदों व अमेरिका के इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट में हुई स्टडी में दावा किया गया है कि पराली जलाने से होने वाले धुएं और प्रदूषण की वजह से भारत को हर साल 30 बिलियन यूएस डॉलर यानी 21 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। साथ ही पराली जलाने की वजह से बच्चों में फेफड़ों से संबंधित बीमारियों का खतरा भी कई गुना बढ़ गया है। पिछले मार्च में इस स्टडी के नतीजे जारी किए गए हैं। स्टडी में दावा किया गया है कि पराली जलाने और इससे होने वाले प्रदूषण प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले लोग खास तौर पर 5 साल से छोटे बच्चों में इसकी वजह से एक्यूट रेस्पिरेट्री इंफेक्शन (एआरआई) का खतरा कहीं ज्यादा है। यह स्टडी इसलिए भी खास है क्योंकि उत्तर भारत में पराली जलाने से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को लेकर पहली बार इस प्रकार का आकंलन सामने आया है।
स्टडी में लगे अनुसंधानकर्ताओं ने दावा किया है कि पराली जलाने से होने वाले प्रदूषण की वजह से करीब 21 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की चपेट में एनसीआर, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली हैं। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले हर एज ग्रुप के करीब 2 लाख 50 हजार लोगों के स्वास्थ्य संबंधित डेटा और नासा की सैटलाइट से मिली पराली जलाने की घटनाओं के आधार पर यह स्टडी की गई है। अमेरिका के इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टिट्यूट की इस रिपोर्ट में पटाखों, गाड़ियों आदि से होने वाले प्रदूषण का आंकलन भी किया गया है। स्टडी में दावा किया गया है कि सर्दियों में पराली जलाने की वजह से कुछ दिनों तक एआरआई जैसी बीमारियों का खतरा पराली जलने वाली जगहों पर रहने वाले लोगों में 3 गुना अधिक होता है।

प्रदेश सरकार ने जिलाधिकारियों, पुलिस व नगर निकायों को आदेश दिए है कि पराली जलाने की कार्रवाई पर अंकुश लगाएँ। इसी कड़ी में जिला कृषि अधिकारियों को यह निर्देश दिए गए है कि किसानों के बीच जाकर वह जागरूकता कार्यक्रम चलाएँ। सरकार के निर्देश पर पराली प्रबन्धन के लिए किसानों को जागरूक करने करने के लिए कृषि विभाग के द्वारा जागरूकता शिविरों का आयोजन किया जा रहा है। अग्रणी किसानों के माध्यम से भी किसानों को जागरूक किया जा रहा है। ग्राम पंचायतों में मुनादी करायी जाने के साथ ही ग्राम पंचायातों में वाल पेन्टिंग करायी जा रही है। आॅनलाइन क्लासों में शिक्षा विभाग द्वारा पराली के संबंध में विद्यार्थियों को जानकारी दी जा रही है। यही नहीं एनजीटी ने एनसीआर क्षेत्र में कई दिनों तक धुन्ध छाई रहने के बाद मामले का संज्ञान लेते हुए दस अक्टूबर 2015 को आदेश दिये थे कि कृषि अपशिष्ट जलाने से पर्यावरण को जो क्षति पहुँचती है उसका हर्जाना वसूला जाए। इसके तहत दो एकड़ खेत से ढाई हजार, दो से पाँच एकड़ क्षेत्रफल से पाँच हजार और पाँच एकड़ से अधिक क्षेत्रफल के खेत मालिक से 15 हजार रुपए हर्जाना लिये जाने के आदेश दिए है। पराली जलाने पर किसानों से जुर्माना वसूलने के साथ-साथ आजीवन कारवास का प्राविधान है।

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