लखनऊ । उत्तर प्रदेश सरकार ने नए मदरसों को अनुदान देने के अब सभी रास्ते बंद कर दिए हैं। वर्ष 2016 में अखिलेश सरकार द्वारा मदरसों को अनुदान देने के लिए लागू की गई नीति को योगी सरकार ने खत्म कर दिया है। मंगलवार को हुई कैबिनेट बैठक में अल्पसंख्यक कल्याण विभाग के इस प्रस्ताव को पास कर दिया गया है। इस नीति के आधार पर ही मदरसा प्रबंधक अनुदान प्राप्त करने के लिए न्यायालय की शरण में जाते थे।

दरअसल, वर्ष 2003 तक मान्यता पाने वाले मदरसों को अनुदान देने के लिए तत्कालीन सपा सरकार में नीति बनाई गई थी। नीति के तहत 100 मदरसों को अखिलेश सरकार में अनुदान दिया गया। योगी सरकार 1.0 में एक भी मदरसे को अनुदान नहीं दिया गया था। आलिया स्तर के मदरसों को अनुदान देने के लिए सपा सरकार में बनी नीति का हवाला देते हुए कई मदरसा प्रबंधक हाई कोर्ट चले गए थे। दलील थी कि जब वे मानक पूरे कर रहे हैं तो उन्हें भी नीति के तहत अनुदान क्यों नहीं दिया जा रहा है?

मऊ के एक मदरसे के मामले में हाई कोर्ट ने सरकार को अनुदान देने पर विचार करने के लिए कहा था। सरकार ने जब इस मदरसे के मानकों की जांच कराई तो इसकी मान्यता ही फर्जी दस्तावेजों के आधार पर निकल गई। वहीं, न्यायालय ने एक अन्य मामले में सरकार से गोरखपुर के मदरसा नूरिया खैरिया बगही पीपीगंज को भी नीति के तहत अनुदान देने पर विचार करने के लिए कहा था। मंगलवार को जब यह प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष आया तो मऊ के मदरसे से सीख लेते हुए इसके भी मानकों की फिर से जांच करवाने का निर्णय लिया गया।

बुंदेलखंड और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के ठेकेदारों को बड़ी राहत : बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे और गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे के निर्माणकर्ता ठेकेदारों को राज्य सरकार ने बड़ी राहत दी है। कोरोना काल में आर्थिक दिक्कतों को देखते हुए उनके अनुबंध में किया गया शिथिलीकरण अब 31 अक्टूबर तक के लिए बढ़ा दिया गया है। अर्थात इस अवधि तक उन्हें एक-एक किलोमीटर का निर्माण हो जाने के बाद भुगतान मिल जाएगा। कोरोना से पहले हर तीन किमी के बाद भुगतान की व्यवस्था थी। कोरोना काल के दौरान उप्र एक्सप्रेसवे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) द्वारा निर्माणकर्ताओं के साथ हुए अनुबंध का शिथिलीकरण 31 मार्च, 2022 तक के लिए किया गया था। मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में अवस्थापना एवं औद्योगिक विकास विभाग की ओर से प्रस्ताव रखा गया कि दोनों एक्सप्रेसवे का निर्माण कर रहे ठेकेदार इस राहत का विस्तार चाहते हैं। इसे कैबिनेट ने स्वीकृति दे दी। तर्क दिया गया है कि इस निर्णय से परियोजनाएं समय से पूरी की जा सकेंगी और रोजगार सृजन भी संभव होगा। यह भी स्पष्ट किया है कि यह राहत दिए जाने से केंद्र या राज्य सरकार पर कोई अतिरिक्त व्यय भार संभावित नहीं है।

लखनऊ सिविल अस्पताल में बढ़ेंगे चार सौ बेड, बनेगा नया ओपीडी भवन : डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी (सिविल) अस्पताल में जल्द 400 बेड और बढ़ेंगे। इन नए बेड बढ़ने के बाद अस्पताल में बेडों की संख्या बढ़कर 800 हो जाएगी। अभी 760 बेड वाला बलरामपुर अस्पताल प्रदेश में सबसे बड़ा अस्पताल है। अब सिविल अस्पताल सर्वाधिक बेड वाला अस्पताल होगा। मंगलवार को कैबिनेट की बैठक में अस्पताल के विस्तारीकरण व आधुनिकीकरण के लिए निष्प्रयोज्य भवनों के ध्वस्तीकरण को मंजूरी दे दी गई है। राजधानी में स्थित सिविल अस्पताल के बगल में सूचना विभाग से मिली जमीन पर पांच मंजिला भवन बनाने की तैयारी है। इस भवन में यूरोलाजी, न्यूरोलाजी, नेफ्रोलाजी, गैस्ट्रोइंट्रोलाजी और कैथ लैब की सुविधा होगी।

कोविड काल में 10वीं व 12वीं की रिजल्ट प्रक्रिया पर मुहर : माध्यमिक शिक्षा परिषद (यूपी बोर्ड) की ओर से 2021 में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षाएं कोरोना संक्रमण के विकट दौर में नहीं कराई जा सकी। सभी छात्र-छात्राओं को फार्मूला बनाकर अगली कक्षा में प्रोन्नत कर दिया गया। मुख्यमंत्री के सैद्धांतिक अनुमोदन पर शासनादेश जारी हुआ था। अब उसी पर कैबिनेट ने मुहर लगा दिया है। कैबिनेट ने करीब एक वर्ष बाद कोविड काल के दौरान यूपी बोर्ड की 10वीं व 12वीं की परीक्षाएं निरस्त होने के बाद बदले फार्मूले से परीक्षाफल तैयार करने की प्रक्रिया पर मुहर लगा दिया है। ज्ञात हो कि माध्यमिक शिक्षा परिषद की वर्ष 2021 की 10वीं व 12वीं की बोर्ड परीक्षा में पंजीकृत छात्रों के परीक्षाफल को तैयार करने व परीक्षाफल में अंक देने वाली प्रक्रिया व आधारों के संबंध में शासनादेश में जारी किया गया था। उस समय कैबिनेट से अनुमोदन के लिए समय नहीं था। इसलिए शासनादेश पर अब अनुमोदन लिया गया है।