नई दिल्ली। शिवसेना में वर्चस्व की लड़ाई के कारण महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार पर संकट के बाद छाए हुए हैं। महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे की सरकार का जाना तय माना जा रहा है। ऐसे में उद्धव ठाकरे ने वहीं दांव खेला है, जो लगभग 30 साल पहले 1992 में उनके पिता उद्धव ठाकरे ने चला था। तब शिवसेना के अस्तित्व पर आए संकट को ताल दिया गया था। अब देखना है कि उद्धव ठाकरे इस संकट को टाल पाते हैं या नहीं।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने बुधवार की रात सरकारी आवास वर्षा को छोड़ दिया है और वह लौट कर मातोश्री आ गए हैं। इससे पहले उद्धव ठाकरे ने शिवसेना में मचे बवाल और एकनाथ शिंदे समेत सभी बागी विधायकों को से कहा कि वह मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए तैयार हैं अगर कोई विधायक उनके सामने आकर ये बात कहता है। हालांकि, एकनाथ शिंदे ने अभी तक मुख्यमंत्री बनने की इच्छा जाहिर नहीं, लेकिन माना ऐसा ही जा रहा है।
महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी सरकार पर संकट के बादल लगभग एक सप्ताह पहले छाए थे, जब एकनाथ शिंदे कुछ विघायकों को लेकर गुजरात के सूरत स्थिति एक होटल में जाकर बैठ गए थे। इसके बाद से अब तक उद्धव ठाकरे ने कुछ नहीं कहा था, लेकिन बुधवार को वह कोरोना से संक्रमित होने के कारण फेसबुक लाइव के जरिए आमजनता से जुड़े और वही तेवर दिखाए, जो 1992 में उनके पिता बाला साहेब ठाकरे ने दिखाए थे। उद्धव ने साफ कहा कि उनके पार्टी पहले है और मुख्यमंत्री पद का मोह उन्हें नहीं है।
शिवसेना में 1992 में बाला साहेब ठाकरे के ही एक साथी माधव देशपांडे ने कई आरोप लगाए थे। उन्होंने उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की पार्टी में दखलंदाजी को बड़ा मुद्दा बनाया था। ऐसे में बाला साहेब ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख लिखा था। इस लेख में बाला साहेब ने कहा था कि अगर कोई भी शिवसैनिक उनके सामने आकर यह बात कहता है कि उसने ठाकरे परिवार के कारण पार्टी छोड़ी है, तो वह उसी वक्त अध्यक्ष पद छोड़ देंगे। इसके साथ ही उनका पूरा परिवार शिवसेना से हमेशा के लिए अलग हो जाएगा।
सामना में बाला साहेब ठाकरे का ये लेख पढ़ने के बाद लाखों शिवसेना कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए थे। कुछ कार्यकर्ता अपनी जान देने की धमकी भी देने लगे थे। मातोश्री के बाहर हजारों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। इसके बाद तो शिवसेना के सभी अधिकारी बाला साहेब को मनाने में जुट गए। माधव देशपांडे के लगाए आरोपों को भी सभी ने दरकिनार कर दिया। जल्द ही ये मामला शांत हो गया और इसके बाद बाला साहेब ठाकरे और उनके परिवार पर कभी किसी ने सवाल नहीं उठाया। अब उद्धव ठाकरे भी उसी नक्शेकदम पर चलते नजर आ रहे हैं। हालांकि, 1992 के बाला साहेब ठाकरे के समय और अब के वक्त में बहुत अंतर है। इसलिए ये कह पाना बड़ा मुश्किल होगा कि उद्धव ठाकरे के इन तेवर का क्या असर देखने को मिलेगा।