अयोध्या: मुस्लिम पक्ष की बड़ी दलीलों पर यह बोला कोर्ट

अयोध्या: मुस्लिम पक्ष की बड़ी दलीलों पर यह बोला कोर्ट
  • राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया
  • अदालत ने अपने फैसले में विवादित जगह को रामलला का बताया, सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक जमीन
  • डे टू डे सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन और अन्य वकीलों द्वारा रखी गई कई दलीलों पर स्पष्ट मत से फैसला

अयोध्या: अयोध्या में राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति यानी 5-0 से ऐतिहासिक फैसला सुनाया। अदालत ने अपने फैसले में विवादित जगह को रामलला का बताया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद निर्माण के लिए वैकल्पिक जमीन दी जाए। फैसले के वक्त कोर्ट में डे टु डे सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन और अन्य वकीलों द्वारा रखी गई कई दलीलों पर भी स्पष्ट मत से फैसला सुनाया। वहीं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की रिपोर्ट को आधार मानते हुए यह भी कहा कि अयोध्या में मस्जिद किसी खाली स्थान पर नहीं बनाई गई थी।

अयोध्या मामले की सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष ने यह दलील दी थी कि विवादित स्थल पर लगातार नमाज ना पढ़ने और मस्जिद के अस्तित्व पर सवाल कभी नहीं उठाया जा सकता। मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा कि अयोध्या में मंदिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनवाई गई बल्कि खाली जगह पर मस्जिद बनवाई।

खाली जमीन पर नहीं बनी थी मस्जिद: SC
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम ASI की खुदाई से निकले सबूतों की अनदेखी नहीं कर सकते हैं। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट का फैसला पूरी पारदर्शिता से हुआ है। कोर्ट ने कहा है कि बाबरी मस्जिद खाली जमीन पर नहीं बनी थी। कोर्ट ने कहा कि मस्जिद के नीचे विशाल संरचना थी। एएसआई ने 12वीं सदी का मंदिर बताया था। कोर्ट ने कहा कि कलाकृतियां जो मिली थीं, वह इस्लामिक नहीं थीं। विवादित ढांचे में पुरानी संरचना की चीजें इस्तेमाल की गईं। मुस्लिम पक्ष लगातार कह रहा था कि ASI की रिपोर्ट पर भरोसा नहीं करना चाहिए। हालांकि कोर्ट ने कहा कि नीचे संरचना मिलने से भी हिंदुओं के दावे को माना नहीं माना जा सकता। कोर्ट ने ASI की रिपोर्ट पर भरोसा जताते हुए कहा कि इस पर शक नहीं किया जा सकता। उसके निष्कर्षों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

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1856 से पहले नमाज पढ़ते थे यह साबित नहीं कर पाए मुस्लिम
मुस्लिम पक्ष ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया था कि वहां विवादित स्थल पर 1934 से 1949 तक नमाज पढ़ी जाती थी। हालांकि, कोर्ट ने उसके इस दावे को नहीं माना। दूसरी तरफ हिंदू पक्ष यह साबित करने में कामयाब रहा कि बाहरी चबूतरे पर लगातार हिंदुओं का कब्जा था और वे वहां पूजा किया करते थे।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकील राजीव धवन ने कहा था कि विवाद भगवान के जन्मस्थान को लेकर है कि आखिर जन्मस्थान कहां हैं। धवन ने दलील दी कि धर्म शास्त्र के बारे में खुद से परिकल्पना नहीं की जा सकती है ये गलत होगा। जन्मस्थान की दलील विश्वास और आस्था पर आधारित है और अगर इस दलील को स्वीकार कर लिया गया तो इसका व्यापक असर होगा।

अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का विरोध नहीं: SC
कोर्ट ने कहा है कि ASI नहीं बता पाया कि मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनी थी। अयोध्या में राम के जन्मस्थान के दावे का किसी ने विरोध नहीं किया। विवादित जगह पर हिंदू पूजा करते रहे थे। गवाहों के क्रॉस एग्जामिनेशन से हिंदू दावा गलत साबित नहीं। हिंदू मुख्य गुंबद को ही राम जन्म का सही स्थान मनाते हैं। रामलला ने ऐतिहासिक ग्रंथों के विवरण रखे। हिंदू परिक्रमा भी किया करते थे। चबूतरा, सीता रसोई, भंडारे से भी दावे की पुष्टि होती है। आपको बता दें कि ऐतिहासिक ग्रंथ में स्कंद पुराण, पद्म पुराण का जिक्र किया गया था।

‘मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं’
शिया बनाम सुन्नी केस में एक मत से फैसला आया है। शिया वक्फ बोर्ड की अपील खारिज कर दी गई है। उन्होंने कहा कि मस्जिद कब बनी, इससे फर्क नहीं पड़ता। 22-23 दिसंबर 1949 को मूर्ति रखी गई। एक व्यक्ति की आस्था दूसरे का अधिकार न छीने। नमाज पढ़ने की जगह को हम मस्जिद मानने से मना नहीं कर सकते। जज ने कहा कि जगह सरकारी जमीन है।

 

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