अयोध्या मामलाः एएसआई के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद ने कहा, फैसले से दोषमुक्त महसूस कर रहा हूं

अयोध्या मामलाः एएसआई के पूर्व निदेशक केके मोहम्मद ने कहा, फैसले से दोषमुक्त महसूस कर रहा हूं

नई दिल्ली: भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के पूर्व निदेशक व पद्मश्री केके मुहम्मद ने कहा कि वह अब खुद को दोष मुक्त महसूस कर रहे हैं क्योंकि मंदिर की बात करने पर उन्हें कुछ समूहों ने धमकी दी थी।

उन्होंने कहा कि अयोध्या मामले में पुरातात्विक व ऐतिहासिक साक्ष्य पूरी तरह हिंदुओं के पक्ष में रहे। मुहम्मद वर्ष 1976-77 में पुरातत्वविद प्रो. बीबी लाल के नेतृत्व में अयोध्या में खुदाई करके साक्ष्य इकट्ठा करने वाली  टीम के सदस्य भी रहे हैं।

उन्होंने दावा किया कि कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने लोगों को बरगलाया, जिससे मामला पेचीदा होता गया। मुहम्मद कहते हैं, 70 के दशक में और उसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश से हुई खुदाई में अयोध्या में मंदिर के अवशेष मिले। अवशेष बताते हैं कि विवादित परिक्षेत्र में कभी भव्य विष्णु मंदिर था।

वे मानते हैं कि जिस तरह से मुसलमानों के लिए मक्का -मदीना का महत्व है, उसी तरह से आम हिन्दु के लिए राम व कृष्ण जन्मभूमि महत्वपूर्ण है।

ऐतिहासिक साक्ष्य भी हिंदुओं के पूजा स्थल के 

मुहम्मद कहते हैं कि अलग-अलग  कालखंडों में लिखे गए ग्रंथ भी हमें किसी नतीजे पर पहुंचाने में मदद करते हैं। मुगल सम्राट अकबर के कार्यकाल(1556-1605 ईस्वी) में अबुल फजल ने ‘आइने अकबरी’ लिखी। तब मस्जिद वजूद में आ चुकी थी।

अबुल फजल लिखते हैं कि वहां चैत्र माह में बड़ी तादाद में हिंदू श्रद्दालु पूजा करने आते थे। जहांगीर के कार्यकाल (1605-1628) में अयोध्या आए ब्रिटिश यात्री विलियम फींस ने भी अपने यात्रा वृतांत में लिखा कि वहां विष्णु के उपासक पूजा करने आते थे।

हालांकि इस वृतांत में मस्जिद को लेकर उन्होंने कुछ नहीं लिखा है। इसके काफी  बाद 1766 में पादरी टेलर ने भी इस स्थल पर हिंदुओं के पूजा-अर्चना करने का जिक्र किया है, जबकि नमाज के बारे में कुछ नहीं लिखा।

अयोध्या से न पैगंबर, न खलीफा का संबंध

मुहम्मद कहतें हैं कि पैगंबर मोहम्मद का अयोध्या से कोई संबंध नहीं मिला। उसके बाद हुए चार खलीफा हजरत अबु बकर, हजरत उमर, हजरत उस्मान और हजरत अली भी कोई संबंध सामने नहीं आया।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती और निजामुद्दीन औलिया या अन्य किसी औलिया का भी संबंध नहीं मिला। सिर्फ एक मुगल राजा का नाम ही अयोध्या से जुड़ा है, जो मुसलमानों के लिए उतनी आस्था का विषय नहीं हो सकता, जितना हिंदुओं के लिए राम का नाम जुड़ा होने के कारण।

हबीब, थापर और शर्मा ने बढ़ाई मुश्किल

विवाद बढ़ाने के लिए मुहम्मद कम्युनिस्ट इतिहासकार एएमयू के इरफान हबीब और जेएनयू की रोमिला थापर और दिल्ली विवि के आरएस शर्मा को जिम्मेदार ठहराते हैं। कहते हैं कि अयोध्या की खुदाई में मानवीय गतिविधियों का कार्यकाल 1200-1300 ईसा पूर्व मिला है।

हो सकता है कि अन्य इलाकों की खुदाई से कार्यकाल और भी ज्यादा पीछे चला जाए। लेकिन, कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने इसी के आधार पर यह साबित करने की कोशिश की कि अयोध्या में मानवीय गतिविधियों के सुबूत ही नहीं मिलते।

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