अदालत को ऐसा कोई निर्देश नहीं देना चाहिए जो वास्तविकता से परे हो : सुप्रीम कोर्ट

अदालत को ऐसा कोई निर्देश नहीं देना चाहिए जो वास्तविकता से परे हो : सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यापक जनहित को देखते हुए सरकार अपनी नीतियों में बदलाव करने के लिए स्वतंत्र है। भले ही नई नीति के लिए सरकार ने अपने वायदों को तोड़ा ही क्यों नहीं हो। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि अदालत द्वारा सरकार को ऐसा कोई निर्देश नहीं दिया जाना चाहिए जो वास्तविकता से परे हो।

जस्टिस एन नागेश्वर राव और जस्टिस हेमंत गुप्ता की पीठ ने ये टिप्पणी केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को दरकिनार करते हुए की जिसमें सरकार को अर्क (देशी शराब) पर पाबंदी के बाद आजीविका खोने वाले बड़ी संख्या में मजूदरों को रोजगार मुहैया कराने के लिए कहा था। एक अप्रैल, 1996 में राज्य में देशी शराब पर प्रतिबंध लगाया गया था।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हम हाईकोर्ट के निष्कर्ष से कतई सहमत नहीं हैं। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा प्रतिबंध के बाद रोजगार खोने वाले सभी कामगारों को रोजगार मुहैया करने का निर्देश देना और इसे संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन जीने का अधिकार) के साथ जोड़ने से वह कतई सहमत नहीं है।

बता दें कि हाईकोर्ट ने यह निर्देश इस पर गौर करते हुए दिया था कि इस व्यवसाय से जुड़े लोगों द्वारा पुनर्वास को लेकर धरना-प्रदर्शन के बाद सरकार ने उन्हें पुन: रोजगार उपलब्ध कराने का वादा किया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है, ‘हाईकोर्ट द्वारा सरकार को आजीविका खो चुके मजदूरों को रोजगार मुहैया कराने का निर्देश देना वास्तविकता से परे है। नौकरी की कमी को देखते हुए हाईकोर्ट का यह निर्देश का पालन असंभव है।’ सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हाईकोर्ट को इस तरह का निर्देश नहीं देना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि व्यापक जनहित का ख्याल रखते हुए सरकार द्वारा नीतियों में बदलाव करने को अतिशय या असंगत नहीं कहा जा सकता।

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