महाराष्ट्र: अजित पवार का दुस्साहस या चाचा शरद पवार ने चली थी चाल, शायद ही खुले राज!

महाराष्ट्र: अजित पवार का दुस्साहस या चाचा शरद पवार ने चली थी चाल, शायद ही खुले राज!
  • शरद पवार ने अपने राजनीतिक कौशल और सूझबूझ से महाराष्ट्र में पलटी बाजी
  • एक महीने की सियासी रस्साकशी के बाद विजेता बने, अजित पवार भी घर लौटे
  • अब शिवसेना, एनसीपी और कांग्रेस की बनेगी सरकार, उद्धव ठाकरे होंगे सीएम
  • पवार ने बीजेपी विरोधी गठबंधन से डबल क्रॉस के संदेहों को झूठा साबित किया

मुंबई/नई दिल्ली: शरद पवार ने साबित कर दिया है कि महाराष्ट्र का किला फतह करने के लिए एक महीने से लड़ रहे ग्लैडिएटरों के बीच वही असल मराठा सरदार हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का नतीजा आने के बाद से चल रही रस्साकशी और जोड़तोड़ में से पवार मंगलवार को विजेता की तरह सामने आए। उनकी राजनीतिक सूझबूझ ने शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस के अस्वाभाविक माने जा रहे गठबंधन को आकार दे दिया और दिल्ली से चल रहे बीजेपी के जवाबी वार को भोथरा कर दिया। इस पूरे सियासी घटनाक्रम में एक राज यह भी है कि अजित पवार ने बगावत का दुस्साहस किया या फिर यह चाचा शरद पवार की सियासी चाल थी।

चाचा ने कई चालें चलने के लिए अजित को उतारा?
मंगलवार को मुंबई में मिला ताज पवार की दिल्ली का ताज भी किसी दिन अपने नाम करने की पुरानी महात्वाकांक्षा को हवा दे सकता है। हालांकि यह रहस्य शायद ही खुले कि अजित पवार का दूसरे पाले में जाना उनका दुस्साहस था या उनके चाचा ने एकसाथ कई चालें चलने के लिए उन्हें विरोधी खेमे में उतार दिया था। ऐसा इसलिए क्योंकि जहां एक ओर एनसीपी चीफ ने अजित के फैसले को निजी बताया वहीं दूसरी ओर उनके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की। परिवार और पार्टी के लोग भी लगातार उनसे बात करते रहे। अजित पवार ने फडणवीस के साथ शपथ तो ली लेकिन तीन दिनों के दौरान कार्यभार नहीं संभाला। बीजेपी की पूरी बाजी अजित पर टिकी हुई थी। वहीं, अचानक उनकी घर वापसी से बीजेपी का प्लान धरा का धरा रह गया।

अजित पवार को रिवर्स स्विंग पर किया मजबूर
पवार ने अपने दोस्तों और दुश्मनों को यह भी दिखा दिया कि संकट में आए सियासी वजूद को बचाने के लिए किस तरह की महारत की जरूरत होती है। पिछले 40 वर्षों में उनके सामने यह तीसरा बड़ा संकट रहा, जिसे उन्होंने बौना साबित कर अपनी लीडरशिप की चमक दिखाई है। एनसीपी के किले को पिछले चार दिनों में बीजेपी के चौतरफा आक्रमणों से उन्होंने किसी अनुभव जनरल की तरह बचाए रखा। उन्होंने अब ऐंटी-करप्शन ब्यूरो से पाक-साफ करार दिए जा चुके अपने भतीजे अजित पवार को रिवर्स स्विंग करने पर मजबूर कर दिया और उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली महाविकास आघाडी (शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस) सरकार का रास्ता साफ कर दिया।

‘सोए शेर से छेड़छानी बहुत बड़ी गलती’
पवार ने बीजेपी विरोधी गठबंधन से ‘डबल क्रॉस’ करने के अपने बारे में जताए गए संदेहों को झूठा साबित किया। उनके बारे में इस तरह के संदेह 1978 से बार-बार जताए जाते रहे हैं, जब उन्होंने अपने मेंटर यशवंत राव चव्हाण से किनारा कर जनता पार्टी का दामन थामा और 34 साल की उम्र में राज्य के मुख्यमंत्री बन गए थे। ताजा मामले में पवार का कौशल उन लोगों का मुंह भी बंद कर देगा, जो बार-बार उन्हें कांग्रेस के गांधी परिवार का भरोसेमंद नहीं बताता रहा है। एनडीए के एक सीनियर सांसद ने कहा, ‘सोए शेर से छेड़खानी करना बहुत बड़ी गलती साबित हुई।’

संकट में धीरज-चतुराई का कौशल
पवार की सियासत पर नजर रखने वालों का कहना है कि संकट की हर घड़ी से वह इसी तरह के धीरज और चतुराई से उबरते रहे हैं। युवा पवार के सामने पहला बड़ा संकट 1980 में आया था, जब दोबारा सत्ता में आईं पीएम इंदिरा गांधी ने उनकी सरकार को बर्खास्त कर दिया था। उनकी मुश्किल तब और बढ़ गई थी, जब कांग्रेस ने 1980 में विधानसभा चुनाव जीता और ए आर अंतुले की सरकार बनी। अंतुले सरकार ने तुरंत ही पवार के 58 में से करीब 50 विधायक तोड़ लिए थे। पवार ने तब विपक्षी नेताओं, खासतौर से चंद्रशेखर और प्रकाश सिंह बादल के जरिए विपक्षी खेमे में अपनी जमीन बचाए रखी।

हालांकि इंदिरा गांधी की हत्या और उसके बाद सहानुभूति लहर ने 1985 में कांग्रेस को अभूतपूर्व जीत दिलाई और राजीव गांधी सरकार बनी। पवार का खेल फिर खराब हो गया। उनकी पार्टी कांग्रेस एस से बड़ी संख्या में लोग कांग्रेस में चले गए। पवार जल्द ही राजीव गांधी की अगुआई वाली कांग्रेस में शामिल हो गए और एक बार फिर सीएम बने।

तीसरी बड़ी बाजी भी मराठा सरदार के नाम
सोनिया गांधी से नाता तोड़ने और इसके बावजूद 2014 तक महाराष्ट्र में 15 सालों तक कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन चलाने और दिल्ली में 10 साल तक यूपीए के साथ बने रहने वाले पवार के सामने तीसरा बड़ा संकट हालिया विधानसभा चुनाव में आया जब मोदी सरकार और फडणवीस सरकार ने उनको घेर लिया। उनके खिलाफ ईडी ने करप्शन के आरोप लगाए। बीजेपी ने एनसीपी के 20 से ज्यादा सीनियर नेताओं को तोड़ लिया और बारामती का उनका किला ढहाने के लिए ‘मिशन 2024’ का नारा दिया था। यह सब वाजपेयी सरकार के दौर से उलट था। वाजपेयी शासन में विपक्ष में रहने पर भी पवार को नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट कमिटी का चेयरमैन बनाकर कैबिनेट रैंक का ओहदा दिया गया था।

बाल ठाकरे ने प्रमोद महाजन को क्या लिखकर दिया था?
हालांकि इस बार पवार ने जिस तरह अपनी स्टेमिना, सांगठनिक कौशल और मराठा समुदाय में अपनी साख का इस्तेमाल किया और विधानसभा चुनाव में दमदार ढंग से अपनी पार्टी को आगे ले गए, उससे बीजेपी का चुनावी गणित हिल गया।

 


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