श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव: कौन हैं गोटबाया राजपक्षे, भारत के लिए उनकी जीत के क्या हैं मायने

श्रीलंका राष्ट्रपति चुनाव: कौन हैं गोटबाया राजपक्षे, भारत के लिए उनकी जीत के क्या हैं मायने

खास बातें

  • गोटबाया की जीत के साथ फिर से सत्ता में राजपक्षे परिवार
  • महिंदा राजपक्षे शासनकाल में बढ़ी थी चीन से नजदीकियां
  • चुनाव परिणाम का भारत-चीन संबंधों पर पड़ सकता है असर

श्रीलंका में हुए राष्ट्रपति चुनाव में विपक्षी उम्मीदवार गोटबाया राजपक्षे ने सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार सजीत प्रेमदास को बड़े अंतर से हराते हुए जीत हासिल की है। गृह युद्ध काल में विवादित रक्षा सचिव रहे गोटबाया देश के नए राष्ट्रपति होंगे। भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गोटबाया राजपक्षे को जीत की बधाई दी है।

गोटबाया की जीत का असर भारत पर भी पड़ सकता है। कारण कि गोटाबाया, राजपक्षे परिवार से हैं, जिसका झुकाव चीन की ओर रहा है। गोटबाया की जीत के साथ श्रीलंका की राजनीति में शक्तिशाली माना जाने वाला राजपक्षे परिवार एक बार फिर सत्ता में वापसी कर रहा है।

कौन हैं गोटबाया राजपक्षे

गोटबाया राजपक्षे श्रीलंका के पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के छोटे भाई हैं। महिंदा राजपक्षे पिछले चुनाव में आश्चर्यजनक रूप से हार गये थे। महिंदा ने तमिल अलगाववादी युद्ध को खत्म करने में अहम भूमिका निभाई थी, जिसके कारण वह सिंहली बौद्ध बहुल समुदाय के प्रिय बन गए थे। गोटबाया उनके शीर्ष रक्षा मंत्रालय अधिकारी थे, जिन्होंने लिट्टे के खिलाफ सैन्य अभियान की निगरानी की थी।

गोटबाया की जीत राजपक्षे परिवार को फिर से देश की सत्ता में ले आई है। पिछले साल विवादों में फंसे महिंदा राजपक्षे के प्रधानमंत्री पद से इस्तीफे के बाद इसी पद से बर्खास्त किए गए रानिल विक्रमसिंघे दोबारा प्रधानमंत्री बनाए गए थे। अब गोटबाया की जीत के बाद श्रीलंका के प्रधानमंत्री रानिल विक्रमसिंहे के पद से हटने की संभावना है।

मालूम हो कि मौजूदा संसद को कम के कम अगले साल फरवरी से पहले भंग नहीं किया जा सकता। विक्रमसिंघे को तब तक पद से हटाया नहीं जा सकता, जब तक वह इस्तीफा नहीं दे देते। ऐसा माना जा रहा है कि विक्रमसिंघे के इस्तीफे के बाद गोटबाया राजपक्षे अपने बड़े भाई महिंदा राजपक्षे को प्रधानमंत्री नियुक्त करेंगे।

गोटाबाया राजपक्षे के जीतने से भारत-चीन संबंध पर असर

पर्यवेक्षकों के अनुसार चीन समर्थक राजपक्षे के मैदान में होने के कारण भारत इन चुनाव परिणाम पर नजदीक से नजर रख रहा था, क्योंकि इसके परिणाम का हिंद प्रशांत क्षेत्र में देश की मौजूदगी पर असर पड़ेगा, जहां चीन तेजी से अपनी पहुंच बढ़ा रहा है।

कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि राजपक्षे का जीतना भारत के लिए झटका साबित हो सकता है। मीडिया और भारत के विदेश संबंधों पर शोध कर चुके डॉ. निरंजन कुमार का कहना है कि राजपक्षे चीन समर्थक माने जाते हैं। दूसरी तरफ इस चुनाव में हारने वाले उम्मीदवार सजीथ प्रेमदासा पहले चीन के आलोचक थे। हालांकि पिछले कुछ समय से उनके सुर में नरमी देखी जा रही थी।
राजपक्षे काल में बढ़ी थी चीन से नजदीकियां

महिंदा राजपक्षे के सत्ता में रहते चीन और श्रीलंका करीब आए थे। साल 2014 में राजपक्षे ने दो चीनी सबमरीन को उनके वहां खड़ा करने की इजाजत तक दी थी। डॉ. निरंजन मानते हैं कि महिंदा के भाई गोटबाया के जीतने के बाद श्रीलंका और चीन की नजदीकियां फिर बढ़ सकती हैं।

इस स्थिति में चीन हिंद महासागर पर अपनी पकड़ ज्यादा मजबूत कर सकता है। चीन लंबे वक्त से इसकी कोशिशों में लगा है। ऐसे में उनकी जीत का असर भारत-चीन संबंध पर पड़ सकता है।

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