बेकाबू न होने पाए कोरोना की दूसरी लहर, बचने के लिए सावधानी बरतने के अलावा और कोई आसान उपाय नहीं
- यदि हर नागरिक यह ठान ले कि वह बेवजह बाहर नहीं निकलेगा और मास्क लगाने के साथ शारीरिक दूरी का ध्यान रखने के साथ अपनी सेहत की परवाह करेगा तो हालात बदले जा सकते हैं। यदि हालात नहीं सुधरे तो मजबूरी में लॉकडाउन लगाना पड़ सकता है।
कोरोना वायरस से उपजी महामारी कोविड-19 की दूसरी लहर ने भारत को झकझोर कर रख दिया है। नए साल के आगमन पर भारतीयों को लग रहा था कि महामारी से राहत मिल गई है। फरवरी आते-आते तक आम जनता से लेकर नेता-नौकरशाह और यहां तक कि तमाम डॉक्टर भी यह मानने लगे कि महामारी की व्यापकता से भारत ने पार पा लिया है। जब देश कोरोना काल से पहले की स्थिति बहाल होता हुआ देख रहा था, तब संक्रमण ने नए सिरे से सिर उठाना शुरू कर दिया और देखते-देखते ही प्रतिदिन कोरोना मरीजों की संख्या दो लाख के आंकड़े को पार कर गई।
चरमारते स्वास्थ्य ढांचे को संभाला नहीं गया तो हालात और अधिक बेकाबू हो सकते हैं
आज हालत यह है कि बड़े शहरों में भी कोरोना मरीजों को न तो अस्पताल में बेड मिल रहे हैं, न वेंटीलेटर। ऑक्सीजन और जरूरी दवाओं का भी अभाव देखने को मिल रहा है। कोरोना से होने वाली मौतों के कारण श्मशान गृहों और कब्रिस्तान में शवों के आने का सिलसिला टूट नहीं रहा है। यदि चरमारते स्वास्थ्य ढांचे को संभाला नहीं गया तो हालात और अधिक बेकाबू हो सकते हैं।
कोरोना की दूसरी लहर पहली से घातक, स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों से हुई चूक
कोविड महामारी ने बीते साल के आरंभ में ही भारत में दस्तक दे दी थी। मार्च में जब कोरोना के करीब पांच सौ मरीज ही थे, तभी लॉकडाउन लगा दिया गया था। यह संपूर्ण लॉकडाउन मई तक चला, फिर धीरे-धीरे रियायत दी जाने लगी। इससे लोगों की आवाजाही बढ़ने लगी और आर्थिक-व्यापारिक गतिविधियां भी चलने लगीं। हालांकि इस दौरान भी कोरोना मरीज बढ़ते रहे, लेकिन स्वास्थ्य ढांचे पर जो दबाव आया, उस पर थोड़ी मुश्किलों के बाद काबू पा लिया गया। परिणाम यह हुआ कि लोगों ने बाजार जाना शुरू कर दिया और स्कूल-कॉलेज, सिनेमाहॉल भी खुलने लगे। हालांकि यह वह दौर था, जब यूरोप, अमेरिका आदि कोरोना की दूसरी-तीसरी लहर से दो-चार हो रहे थे, फिर भी भारत में किसी ने यह नहीं सोचा कि ऐसा यहां भी हो सकता है। आम जनता, नेताओं और नौकरशाहों न सही, स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों को तो यह पता होना ही चाहिए था कि कोरोना की दूसरी लहर आ सकती है और वह पहली से घातक हो सकती है। आखिर उन्होंने देश को और खासकर सरकारी-गैर सरकारी स्वास्थ्य तंत्र के लोगों को आगाह क्यों नहीं किया? वे तो देश के साथ दुनिया में कोरोना के हालात की निगरानी कर रहे थे। आखिर उनसे चूक कैसे हो गई?
कोरोना की दूसरी लहर तेज होने के पीछे लोगों ने बरती असावधानी
कोरोना की दूसरी लहर तेज होने के पीछे एक वजह तो लोगों की ओर से पर्याप्त सावधानी न बरतना है और दूसरी, कोरोना वायरस के प्रतिरूप पैदा हो जाना। कोरोना के बदले रूप कहीं अधिक तेजी से संक्रमण फैलाने के साथ अपेक्षाकृत कम आयु वालों को भी अपनी चपेट में ले रहे हैं। कोरोना के बदले हुए जो प्रतिरूप ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील आदि में पनपे, वे भारत भी आ चुके हैं। यह भी स्पष्ट है कि कोरोना वायरस के कुछ प्रतिरूप भारत में पनप गए हैं। ये ब्रिटेन, दक्षिण अफ्रीका, ब्राजील आदि से आए कोरोना प्रतिरूप के नए प्रतिरूप यानी डबल वेरिएंट भी हो सकते हैं। फिलहाल कहना कठिन है कि कोरोना वायरस का कौन सा प्रतिरूप कितना घातक साबित हो रहा है, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि उन पर लगाम लगती नहीं दिख रही है।
भारत में अब तक 12 करोड़ से अधिक लोगों का हो चुका टीकाकरण
भारत में अब तक स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं सफाई कर्मियों के साथ 45 साल से ऊपर के 12 करोड़ से अधिक लोगों का टीकाकरण हो चुका है। यह एक बड़ी संख्या है, लेकिन भारत की बड़ी आबादी को देखते हुए कम है। यद्यपि कोवैक्सीन और कोविशील्ड के बाद रूस में बनी वैक्सीन स्पुतनिक को भी हरी झंडी देने के साथ कुछ अन्य वैक्सीन के लिए रास्ता साफ कर दिया गया है, लेकिन उनके भारत में बनने या आयात होने में समय लगेगा। यह ध्यान रहे कि कई राज्यों ने कोरोना वैक्सीन की कमी की बात कही है। चूंकि भारत एक युवा आबादी वाला देश है, इसलिए आवश्यकता इसकी भी है कि 45 साल से कम आयु वालों का भी टीकाकरण शुरू हो। जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक सभी को सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि जहां टीके की दूसरी खुराक के 10-12 दिन बाद ही शरीर प्रतिरोधक क्षमता से अच्छी तरह लैस हो पाता है, वहीं कोरोना वायरस के बदले प्रतिरूप हवा के जरिये फैलने लगे हैं।
कोरोना की दूसरी लहर के चलते पीएम मोदी ने की कुंभ मेले को प्रतीकात्मक तौर पर मनाने की अपील
कोरोना की दूसरी लहर के कारण त्राहिमाम की जो स्थिति है, उसकी अनदेखी किसी को भी नहीं करनी चाहिए। शायद इसी कारण प्रधानमंत्री ने कुंभ मेले को प्रतीकात्मक तौर पर मनाने की अपील की है। इस अपील पर सभी को गौर करना चाहिए। जैसे पिछले साल सभी समुदायों के लोगों ने अपने पर्व-त्योहार संयम से मनाए थे, वैसे ही इस बार भी करना होगा। इन दिनों सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र की हर समस्या का समाधान करने के लिए तत्परता दिखा रही है। वह टीका उत्पादन क्षमता बढ़ाने के साथ आक्सीजन आपूर्ति की व्यवस्था मजबूत कर रही है, लेकिन इसके बावजूद न तो अस्पतालों पर दवाब कम होने वाला है और न ही स्वास्थ्य क्षेत्र की कमियों से तत्काल छुटकारा मिलने वाला है।
स्वास्थ्य क्षेत्र के लोगों को कमर कसनी होगी
इन कमियों से पार पाने के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र के लोगों को कमर कसनी होगी और केंद्र एवं राज्य सरकारों को यह देखना होगा कि स्वास्थ्य क्षेत्र की जरूरतें प्राथमिकता के आधार पर पूरी हों। यह समय राजनीतिक रोटियां सेंकने का नहीं, लेकिन कुछ नेता और खासकर राहुल गांधी यही करने में लगे हुए हैं। यदि उनके पास समस्या के समाधान का कोई कारगर उपाय नहीं तो बेहतर होगा कि वह सरकार की खिल्ली उड़ाने से बाज आएं। कम से कम उन्हें मुश्किल हालात से आनंदित होने का आभास तो नहीं ही कराना चाहिए।
कोरोना की दूसरी लहर से बचने के लिए सावधानी बरतनी होगी
अगर कोरोना की दूसरी लहर से बचना है तो पहले से ज्यादा सावधानी बरतने के अलावा और कोई आसान उपाय नहीं। कोरोना की दूसरी लहर इतनी घातक नहीं होती, यदि लोगों ने मास्क लगाने और शारीरिक दूरी के पालन के प्रति सर्तकता बरती होती। यदि हर नागरिक यह ठान ले कि वह बेवजह बाहर नहीं निकलेगा और मास्क लगाने के साथ शारीरिक दूरी का ध्यान रखने के साथ अपनी सेहत की परवाह करेगा तो हालात बदले जा सकते हैं। राज्य सरकारों की ओर से रात के कर्फ्यू लगाने जैसे जो कदम उठाए जा रहे हैं, वे लोगों के लिए चेतावनी हैं। इस चेतावनी को समझा जाना चाहिए। इसी के साथ यह भी समझा जाना चाहिए कि यदि हालात नहीं सुधरे तो मजबूरी में लॉकडाउन लगाना पड़ सकता है। अगर ऐसा हुआ तो आम आदमी की मुश्किलें और बढ़ेंगी।