सुप्रीम कोर्ट करेगा पूजा स्थलों की सुरक्षा और 1991 के कानून पर सुनवाई

सुप्रीम कोर्ट करेगा पूजा स्थलों की सुरक्षा और 1991 के कानून पर सुनवाई

देश के विभिन्न हिस्सों में पूजा स्थलों को लेकर विवादों में वृद्धि के बीच सुप्रीम कोर्ट ने 1991 में बने पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून और पूजा स्थलों की सुरक्षा से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई का निर्णय लिया है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद के सर्वेक्षण के बाद हिंसा की घटनाओं के बीच इस मुद्दे ने और अधिक महत्व प्राप्त कर लिया है।

सुनवाई की तारीख

सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर आगामी 4 दिसंबर को सुनवाई करेगा। यह सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ द्वारा की जाएगी।

जजों की पीठ

इस मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में तीन न्यायाधीशों की बेंच का गठन किया गया है। इसमें मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के साथ जस्टिस पी. नरसिम्हा और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।

याचिकाकर्ता और उनके वकील

इस केस में याचिकाकर्ता के रूप में जमीअत उलमा-ए-हिंद और गुलजार अहमद नूर मोहम्मद आजमी का नाम शामिल है। इनका पक्ष सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील एजाज मकबूल द्वारा रखा जाएगा।

1991 का पूजा स्थल कानून: क्या कहता है?

1991 में पारित पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) कानून यह सुनिश्चित करता है कि भारत में 15 अगस्त 1947 को मौजूद पूजा स्थलों का स्वरूप उसी रूप में बरकरार रखा जाए।

  • धारा 3: किसी भी धार्मिक स्थल के स्वरूप को बदलने या उसे किसी अन्य धार्मिक स्थल में परिवर्तित करने पर रोक लगाती है।
  • अपवाद: इस कानून में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को एकमात्र अपवाद के रूप में रखा गया था।

इस कानून का उद्देश्य धार्मिक स्थलों से जुड़े विवादों को समाप्त करना और सांप्रदायिक सौहार्द को बनाए रखना है।

महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि

यह मामला हाल के समय में तब और महत्वपूर्ण हो गया जब विभिन्न पूजा स्थलों को लेकर विवादों में बढ़ोतरी देखी गई। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट की यह सुनवाई कानून की प्रासंगिकता और पूजा स्थलों की सुरक्षा के लिए नए मानक तय कर सकती है।

यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या निर्णय लेता है और यह फैसला देश में धार्मिक सौहार्द और कानूनी संतुलन पर क्या प्रभाव डालेगा।


विडियों समाचार