‘…तो मुस्लिम होने का घोषणापत्र देना होगा’, SC में केंद्र ने कहा- वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्‍सा नहीं

‘…तो मुस्लिम होने का घोषणापत्र देना होगा’, SC में केंद्र ने कहा- वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्‍सा नहीं
नई दिल्ली। वक्फ संशोधन कानून पर अंतरिम रोक के मुद्दे पर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बहस पूरी कर ली है। सरकार ने कानून पर अंतरिम रोक लगाने का जोरदार विरोध किया है।केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने वक्फ कानून में वक्फ करने वाले के लिए प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की अनिवार्यता के प्रविधान को सही ठहराते हुए कहा कि शरिया कानून में भी अगर कोई मुस्लिम पर्सनल ला का लाभ लेना चाहता है तो उसे भी मुस्लिम होने का घोषणापत्र देना होगा। इस कानून में भी यही है बस पांच साल के प्रैक्टिसिंग मुस्लिम होने की बात कही गई है।

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, पुराने कानून में भी था कि वक्फ करने वाला मुसलमान होगा, लेकिन 20213 के संशोधन में मुसलमान शब्द हटा कर कोई भी व्यक्ति कर दिया गया था। इस नए संशोधित कानून में उसे बदला गया है।

उन्होंने कहा कि वक्फ तो मुसलमान ही करेगा। और अगर कोई हिंदू वक्फ को दान करना चाहता है तो अभी भी कर सकता है उस पर कानून में कोई रोक नहीं है। अगर हिंदू किसी मस्जिद को बनवाना चाहता है ऐसा कर सकता है एक ट्रस्ट के जरिए ऐसा किया जा सकता है।

सॉलिसिटर जनरल ने ट्राइबल एरिया में यानी शिड्यूल एरिया में वक्फ नहीं हो सकता इस प्रविधान को सही ठहराते हुए कहा कि संवैधानिक रूप से एसटी शिड्यूल एरिया को संरक्षित किया गया है। उन्हें वैध कारणों से संरक्षित किया गया है। उन्होंने कहा कि यह प्रविधान ऐसा नहीं है कि इसके आधार पर कानून पर अंतरिम रोक लगा दी जाए।

सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून पर लंबित हैं याचिकाएं

सुप्रीम कोर्ट में बहुत सी याचिकाएं लंबित हैं, जिसमें वक्फ संशोधन कानून 2025 की वैधानकिता को चुनौती दी गई है। प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और एजी मसीह की पीठ आजकल याचिकाओं में कानून पर अंतरिम रोक लगाने की मांग पर सुनवाई कर रही है। याचिकाकर्ताओं की बहस के बाद केंद्र सरकार ने अपना पक्ष रख दिया है। इसके बाद याचिकाकर्ता फिर प्रतिउत्तर में बहस कर रहे हैं।

‘वक्फ इस्लाम का अनिवार्य हिस्‍सा नहीं’

केंद्र सरकार की ओर से बुधवार को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलीलें रखते हुए कहा था कि कानून वक्फ के धार्मिक मामलों में दखल नहीं देता, यह सिर्फ वक्फ संपत्तियों के प्रशासनिक प्रबंधन की धर्मनिरपेक्ष गतिविधियों के संबंध में है।उन्होंने कहा था कि वक्फ एक इस्लामी धारणा है इसमें कोई विवाद नहीं है, लेकिन यह इस्लाम का एक अनिवार्य हिस्सा नहीं है। जब तक यह साबित नहीं होता तब तक बाकी दलीलें विफल हैं।

क्‍यों कहा- दान हर धर्म का हिस्सा?

मेहता ने सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व फैसले का हवाला देते हुए कहा,’ दान हर धर्म का हिस्सा है लेकिन कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि यह धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है। हिंदुओं में दान की व्यवस्था है, ईसाइयों में चैरिटी है, सिखों में है, लेकिन ये धर्म का अनिवार्य हिस्सा नहीं है।’उन्होंने कहा कि अगर वक्फ बोर्ड का कार्य देखा जाए तो ये वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन सुनिश्चित करता है यानी लेखा जोखा उचित है, खातों का ऑडिट किया जाता है, आदि ये कार्य पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष हैं।

मेहता ने कहा कि वक्फ बोर्ड में सिर्फ दो गैर मुस्लिम सदस्यों के होने से क्या फर्क पड़ जाएगा इससे क्या इसका चरित्र बदल जाएगा। वक्फ बोर्ड वक्फ की किसी भी धार्मिक गतिविधि को नहीं छू रहा है।