रुड़की निकाय चुनाव: 19 साल बाद भी नहीं टूटा मिथक, मेयर की कुर्सी तक पहुंचा ये प्रत्याशी
खास बातें
- एक बार फिर रुड़की के मतदाताओं ने निर्दलीय को बैठाया मेयर की कुर्सी पर
- राज्य गठन के बाद वोटरों ने नहीं किया है दलीय प्रत्याशियों पर कभी भरोसा
रुड़की नगर निगम के मतदाताओं ने चुनावी मिथक को बरकरार रखते हुए एक बार फिर से भाजपा के बागी निर्दलीय प्रत्याशी को अपना मेयर चुना है। इस तरह से भाजपा, कांग्रेस और बसपा इस बार भी नगर निगम के चुनाव में मतदाताओं का विश्वास जीतने में नाकामयाब रहीं।
राज्य गठन के बाद से आज तक यह सीट किसी भी दलीय प्रत्याशी के खाते में नहीं गई है। यह अलग बात है कि जीतने के बाद मेयर और पूर्व में नगरपालिका अध्यक्षों ने कांग्रेस का दामन थाम लिया था।
वर्ष 2000 में उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश से अलग होकर अलग राज्य के रूप में अस्तित्व में आया था। इन दिनों रुड़की नगर पालिका हुआ करती थी। राज्य गठन के बाद पहला चुनाव वर्ष 2003 में हुआ। इस चुनाव में निर्दलीय दिनेश कौशिक ने भाजपा के प्रमोद गोयल को शिकस्त दी थी।
इसके बाद नगर पालिका रुड़की को नगर निगम का दर्जा मिल गया। वर्ष 2013 में नगर निगम का पहला चुनाव हुआ तो निर्दलीय यशपाल राणा और बीजेपी प्रत्याशी महेंद्र काला में टक्कर हुई। इस चुनाव में भी निर्दलीय यशपाल राणा पर शिक्षानगरी के लोगों ने विश्वास जताते हुए भाजपा समेत तमाम पार्टियों के प्रत्याशियों को नकार दिया।
निर्दलीय यशपाल राणा नगर निगम के पहले मेयर बने। इस बार नगर निगम के चुनाव में भाजपा के मयंक गुप्ता, कांग्रेस के रिशू राणा और बसपा प्रत्याशी राजेंद्र बाडी के ऊपर इस मिथक को तोड़ने की चुनौती थी, लेकिन मतदाताओं ने पार्टी प्रत्याशियों को नकारते हुए भाजपा के बागी एवं निर्दलीय गौरव गोयल को मेयर का ताज सौंप दिया।