अनूठी है नकुड की रामलीला, नकुड मे मनाया जाता रामजन्मोत्सव

- अष्टमी को नारद मोह के मंचन से शुरू होती है रामलीला
- रावण दहन को माना जाता है अहम का प्रतीक
नकुड [24CN] : नकुड मे रामलीला मंचन की पंरपरा अनूठी है। वैसे तो इस नगर का इतिहास ही अनोखा है। जानकार बताते है कि गोड बंगाल से आये नैनराज ने विक्रम संवत 375 मे बसाया था। यानि यह नगर आज से 1705 वर्ष पूर्व बसाया गया था। यानि नकुड का इतिहास इस्लाम के उदय से भी पुराना है। यह भी कहा जाता है कि चैथे नंबर के पंाडव नकुल के नाम पर ही इस नगर का नाम नकुल पडा जो बाद में अपभ्रंश होकर नकुड हो गया। विश्व भर मे रामलीला का मंचन दशहरे पर होता है। भगवान राम ने विजयदशमी पर लंका के राजा रावण का वध किया थां । भगवान राम के विजयोत्सव के रूप मे पूरे विश्व भर में मे विजय दशमी पर रामलीला का मंचन करने की परंपरा है। परतु नकुड की रामलीला इसकी अपवाद है। नकुड मे रामलीला का मंचन विजयदशमी पर न होकर चैत्र मास मे अष्ठमी से शुरू होता है बताया जाता है कि नकुड मे लोग लंका पर भगवान राम की विजय का विजयोत्सव मनाने के बजाये भगवान राम का जन्मोत्सव मनाते है। यही वजह है कि नगर मे रामलीला का मंचन रामनवमी से पूर्व चैत्र मास की अष्टमी से शुरू पंदरह दिनो तक चलता है।
नगर मे सैंकडो वर्षो से इस पंरपरा का निर्वाह किया जा रहा है। रामनवमी नजदीक आते ही रामलीला के मंचन का पं्रबध करने वाली रामलीला कमेटी सक्रिय हो जाती है। रामनवमी से पूर्व अष्टमी पर नारद मोह के मंचन के साथ रामलीला के मंचन का श्रीगण्ेाश हो जाता है। जानकार बताते है कि रामलीला का मंचन नारद मोह से शुरू करने की भी एक महत्वपूर्ण वजह है। रामलीला के मचंन मंे भगवान विष्णु के रामावतार लेने का महत्वपूर्ण कारण दर्शाने के लिये नारद मोह के साथ ही रामलीला का मंचन शुरू किया जाता है। गौरतलब है कि बाल्मिकी रामायण के अनुसार नारद ने भगवान विष्णु को पत्नी वियोग में भटकने का शाप दिया था। नवमी को श्रीराम के जन्मोत्सव का मंचन किया जाता है। पंदरह दिनेा तक चलने वाली रामलीला नगर मे एक उत्सव के रूप मे मनायी जाती है। हालाकि रामलीला के मचन के लिये नगर मे विशाल रामलीला भवन मौजुद है परंतु श्रीराम का विवाह तथा श्रीराम के वन से वापस आने की लीला का मंचन दिन के समय मे रामलीला भवन से बाहर जनक बाजार के बीचो बीच किया जाता है। दोनो ही प्रसंगो श्रीराम की बारात व भरत मिलाप के समय नगर मे निकलने वाली भव्य शोभायात्राओ मे पूरा नगर शामिल हो राममय हो जाता है।
नगर मे रामनवमी पर रामलीला का आयोजन करने का भी एक मजबूत तर्क है। विगत बीस वर्षो से रामलीला से जुडे श्रवण त्यागी व रामलीला कमेटी के प्रधान भुपेंद्र गुप्ता, महामंत्री वरूण मिततल का कहना है कि नकुड को छोडकर अन्य स्थानो पर रामलीला का मंचन श्रीलकंा पर श्रीराम की विजय व रावण वध के प्रतीक के रूप मे किया जाता है, ंपरतु नकुड मे रामलीला का मंचन भगवान श्रीराम के जन्मोत्सव के रूप मे किया जाता है। बताया कि नकुड मे रामलीला की पंरपरा सैकडो वर्ष पुरानी है। बताया जाता है कि पुराने समय मे मंचदरे पर रामलीला का मंचन किया जाता था। वृदावन से रामलीला के कलाकारो को बुलाया जाता था। बाद मे 1960 तक रामलीला का मंचन महादेव मंदिर मे होता रहा। तब लाला गुरूबख्श राय रामलीला के सरपरस्त थे। रामलीला के लिये जगह कम पडने पर गुरूबख्श राय ने रामलीला के लिये महादेव मंदिर के बराबर मे जगह देकर रामलीला भवन के लिये मार्ग प्रशस्त किया।
रामलीला भवन बनने के बाद रामलीला का मंचन रामलीला भवन मे होने लगा। बीच मे ऐसा समय भी आया जब रामलीला कमेटी मे विवाद हुआ । सामांतर कमेटी बनी। एक कमेटी रामनवमी पर तो दुसरी दशहरे पर रामलीला का मंचन कराती । परतु कुछ समय बाद ही दोनो कमेटियो मे सुलह हो गयी। जिसमे तय किया गया कि रामलीला का मंचन रामनवमी पर ही होगा। तब से लगातार रामनवमी पर ही रामलीला का मंचन होता रहा है। एक समय मे प0 दीपचंद, कृष्णचंद कौशिक राजेंद्र प्रसाद ,सुभाष सर्राफ व धर्मवीर त्यागी जैसे लोग रामलीला कमेटी से सक्रिय रूप जुडे रहे। पुरानी पीढी के बाद नये लोग कमेटी मे आते रहे।
गौरतलब है कि जब पूरे विश्व मे विजयदशमी पर रावण के पुतले का दहन किया जाता है परतु नकुड मे रावण दहन नही किया जाता। यहंा लोगो का मानना है कि रावण के पुतले के दहन से श्रीलंका पर श्रीराम की विजय पर अहम का भाव उत्पन्न होता है। इसलिये यहंा रावण के पुतले का दहन करने की पंरपरा नहंी है। रामालीला कमेटी के मंत्री अनिल गोयल का कहना है कि भगवान श्रीराम के प्रति श्रद्धा भाव के चलते उनका जन्मोत्सव मनाने की पंरपरा है। हांलाकि अब कुछ युवा अति उत्साह मे दशहरे पर रावण का पुतला जलाने लगे है।
रामलीला कमेटी के महामंत्री वरूण मिततल का कहना है कि वर्तमान टीवी संस्कृति ने रामलीला मंचन की विधा को भारी नुकसान पंहुचाया है। वर्तमान समय मे रामलीला मंचन मे लोगो की रूचि कम हो गयी है। धीरे धीरे दर्शको की संख्या भी पहले से कम हुई है। हालाकि रामलीला मे दर्शको से शुल्क नही लिया जाता । परतु लोगो की रूचि कम होने के चलते रामलीला मंचन की व्यवस्था के लिये धन की कमी पडने लगी है। कुछ लोग रामलीला जैसे धार्मिक आयोजनो मे फिल्मी गानो पर नृत्य को फुहड बताकर इसकी आलोचना भी करते है। परंतु रामलीला मंचन की इस प्राचीन विधा को बचाये रखना अब एक चुनौती से कम नही है। पैसे की कमी व आमजन की उपेक्षा के समय मे स्थानीय कलाकारो व कमेटी के समर्पित प्रयास से इस चुनौती का मुकाबला किया जा रहा है।