सुप्रीम कोर्ट जिस ‘अफसर’ के ‘दुस्साहस’ पर इतना नाराज, उसके आदेश का मंत्री-सचिव को पता ही नहीं
नाराज सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि अफसर का यह दुस्साहस, हमारा कोई महत्व ही नहीं? कोर्ट ने यह भी पूछा कि हमारे आदेश को रोकने वाले अफसर पर अब तक कोई कार्रवाई क्यों नहीं? खास बात यह है कि अपने अफसर के आदेश के बारे में मंत्री और सचिव को पता ही नहीं था।
पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि, क्या सुप्रीम कोर्ट का कोई महत्व नहीं है। इन कंपनियों ने एक पैसे का भुगतान नहीं किया है और एक डेस्क अधिकारी ने दुस्साहस करते हुए अदालत के आदेश पर रोक लगा दी। सरकार ने उस अफसर पर क्या कार्रवाई की। यह बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।
मेहता ने जब यह कहा कि वह इस पूरे प्रकरण को देखेंगे तो जवाब में जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा कि उस अधिकारी के काम पर रोक लगाई जानी चाहिए थी। पीठ ने मेहता से कहा, आप सॉलिसिटर जनरल हैं। क्या आपने डेस्क ऑफिसर को वह आदेश वापस लेने के लिए कहा? हम इस तरीके से काम नहीं कर सकते। आखिर इन सभी को प्रायोजित कौन कर रहा है। मुझे अपनी चिंता नहीं है। आप मुझे नहीं समझते, एक इंच भी नहीं।
गत वर्ष 24 अक्तूबर को सुप्रीम कोर्ट ने इन कंपनियों को 90 दिनों के भीतर बकाया 92,000 करोड़ रुपये जमा करने का निर्देश दिया था। कंपनियों पर एजीआर और ब्याज को मिलकर रकम बढ़कर करीब 1.47 लाख करोड़ रुपये हो गई है। गत 16 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने कंपनियों द्वारा दायर पुनर्विचार याचिकाओं को भी खारिज कर दिया था।
डीओटी के वित्त सदस्य की मंजूरी से डेस्क अफसर ने दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट के निशाने पर आए दूरसंचार विभाग (डीओटी) के डेस्क अफसर मंदार देशपांडे भारतीय लेखा एवं वित्त सेवा अधिकारी हैं। मंदार ने कहा था कि बकाये की रकम नहीं चुका पाने वाली कंपनियों पर कोई कार्रवाई न की जाए। अफसर ने यह आदेश विभाग में वित्त सदस्य की मंजूरी के बाद जारी किया था। देशपांडे ने जब आदेश जारी किया था तो वह उस वक्त विभाग में लाइसेंसिंग वित्त नीति शाखा में निदेशक थे। शीष कोर्ट ने विभाग के निदेशक अंकुर कुमार पर भी अवमानना कार्रवाई की चेतावनी दी है।
पर दूरसंचार मंत्री-सचिव को कंपनियों पर नरमी के आदेश का नहीं था पता
डीओटी द्वारा एजीआर न देने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई न करने का आदेश दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद और डीओटी सचिव से मंजूरी लिए बिना 23 जनवरी को जारी किया गया था। यह जानकारी एक अधिकारी ने उसका नाम न छापने की शर्त पर दी। सूत्रों ने बताया कि मामले में जो भी दोषी पाया जाएगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
अब कोर्ट में ए-4 साइज के पेपर में भी दाखिल हो सकेंगे दस्तावेज
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण के हितों को देखते हुए आखिरकार ए-4 साइज के पेपर पर दस्तावेज दाखिल करने की इजाजत दे दी। इतना ही नहीं पेपर के दोनों तरह प्रिंट हो सकते हैं। अब तक अदालत में सिर्फ लीगल साइज पेपर पर ही दस्तावेज दाखिल होते थे और वह भी पेपर पर एक ही तरह प्रिंट होता था। सुप्रीम कोर्ट की एक कमेटी की सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन और सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट ऑन रिकार्ड एसोसिएशन केपदाधिकारियों के साथ हुई बैठक के बाद यह निर्णय लिया गया है। इस बारे में बृहस्पतिवार को ही सर्कुलर जारी कर दिया गया।