लखनऊ :  सबसे अधिक जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश में सीमित परिवार की अवधारणा को कानूनी जामा पहचाने की दिशा में बड़ा कदम बढ़ाया गया है। उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने उत्तर प्रदेश जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण व कल्याण) विधेयक 2021 का प्रारूप सोमवार को मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया, जिसमें एक बच्चे वाले सीमित परिवार को अतिरिक्त लाभ दिए जाने की अहम सिफारिशें भी शामिल हैं।

दो बच्चों वाले परिवार को सब्सिडी समेत अन्य योजनाओं के लाभ से लेकर पदोन्नति की हिमायत की गई है, जबकि दो से अधिक बच्चे पैदा करने वालों के लिए सरकारी नौकरी में आवेदन से लेकर पदोन्नति में प्रतिबंध होगा। ऐसे लोग स्थानीय निकाय का चुनाव भी नहीं लड़ सकेंगे। सुझावों पर मंथन के बाद आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति एएन मित्तल के निर्देशन में प्रारूप को अंतिम रूप दिया गया है। राज्य सरकार मानसून सत्र में जनसंख्या नियंत्रण कानून के विधेयक को विधान मंडल में ला सकती है।

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग ने कहा है कि वर्ष 2001-2011 के दशक में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 20.23 फीसद बढ़ी है। तुलनात्मक अध्ययन में अकेले गाजियाबाद में 25.82 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इसके अलावा लखनऊ, मुरादाबाद, सीतापुर व बरेली में जनसंख्या वृद्धि 23 से 25.82 फीसद के मध्य रही है। आने वाली पीढ़ी को बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा व अन्य सुविधाएं देने के लिए जनसंख्या पर नियंत्रण बेहद जरूरी है। राजस्थान, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़ व उत्तराखंड में लागू जनसंख्या कानून में दो से अधिक बच्चों वालों के स्थानीय निकाय का चुनाव लड़ने पर रोक है।

उत्तर प्रदेश राज्य विधि आयोग का मत है कि दो बच्चों के परिवार की नीति का पालन करने वालों को प्रोत्साहित करने के साथ ही नीति का पालन न करने वालों के लिए राज्य कल्याणकारी योजनाओं, जिला पंचायत व स्थानीय निकाय के चुनाव लडऩे पर प्रतिबंध जरूरी है। कहा गया है कि सर्वोच्च न्यायालय ने अपने कई निर्णयों में यह साफ किया है कि परिवार को दो बच्चों तक सीमित करने की नीति न तो अनुच्छेद 21 के प्राण और दैहिक स्वतंत्रता के विपरीत है और न ही अनुच्छेद 25 के अंत:करण की और धर्म के अबाध रूप से मानने, आचरण व प्रचार करने की स्वतंत्रता के विपरीत है। दो बच्चों की राष्ट्र हित में है और देश के सर्वांगीण विकास के लिए जरूरी है

सुझावों पर मंथन के बाद हुए बदलाव भी : आयोग ने विधेयक का प्रारूप तैयार कर उस पर सुझाव मांगे थे। करीब 8500 सुझाव में 99.5 फीसद लोगों ने कानून बनाने के पक्ष में मत दिया। सुझावों पर मंथन के बाद कुछ बदलाव भी किए गए।

ये की नईं सिफारिशें

  • दो बच्चे वालों को ग्रीन व एक बच्चे वालों को गोल्ड कार्ड दिया जाए, जिससे योजनाओं का लाभ लेने के संबंधित प्रपत्र बार-बार न दिखाने पड़ें।
  • 45 वर्ष की आयु तक एक ही बच्चा रखने वाली सभी महिलाओं को एक लाख रुपये की विशेष प्रोत्साहन राशि।
  • ट्रांसजेंडर बच्चे को दिव्यांग के रूप में देखा जाए। यानी दो बच्चों में एक के ट्रांसजेंडर होने की दशा में भी परिवार को एक बच्चे के दिव्यांग होने की भांति ही तीसरे बच्चे की छूट होगी।
  • दंपती में तलाक के बाद जो बच्चा पति या पत्नी की कस्टडी में रहेगा, वह उसकी यूनिट में ही जोड़ा जाएगा।
  • नसबंदी कराने की कोई पाबंदी नहीं होगी। यदि एक परिवार में महिला की उम्र 45 वर्ष है और उसके सबसे छोटे बच्चे की उम्र 10 वर्ष है तो ऐसे दंपती के लिए नसबंदी की आवश्यकता नहीं होगी।
  • किसी को प्रेरित कर उसकी स्वेच्छा से नसबंदी कराने की दशा में संबंधित आशा वर्कर को अतिरिक्त मानदेय दिया जाएगा।

यह भी खास

  • एक संतान वाले दंपती को सरकारी नौकरी में चार इन्क्रीमेंट तक मिल सकते हैं।
  • एक बच्चा होने पर उसकी शिक्षा के लिए मिलेंगे अतिरिक्त लाभ। बेटी होने पर उच्च शिक्षा के लिए स्कालरशिप भी।

यह होगी कटौती

  • दो से अधिक बच्चे वालों को सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में अध्यक्ष या प्रबंध निदेशक या कोई अन्य प्रबंधन से जुड़ा पद नहीं मिलेगा।
  • स्थानीय प्राधिकरण में भी सदस्य या किसी अन्य पद पर नामित नहीं किए जा सकेंगे।
  • सरकारी सेवा के लिए नहीं कर सकेंगे आवेदन।
  • सरकारी सेवा में पदोन्नति पर भी होगी रोक।
  • सरकार को कानून लागू कराने के लिए राज्य जनसंख्या कोष बनाना होगा।
  • स्कूल के पाठ्यक्रम में जनसंख्या नियंत्रण का भी अध्याय होगा।
  • केवल चार यूनिट तक सीमित होगा राशनकार्ड।