नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को मजदूर के बेटे अतुल कुमार को एक बड़ा राहत भरा फैसला सुनाया। आईआईटी-धनबाद में समय पर फीस जमा न कर पाने के कारण अतुल की सीट रद्द हो गई थी। कोर्ट ने संस्थान को निर्देश दिया कि अतुल को बीटेक इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम में फिर से प्रवेश दिया जाए। अतुल, जो उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से हैं, समय सीमा के भीतर 17,500 रुपये की फीस जमा नहीं कर सके थे।
‘मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता’ – सुप्रीम कोर्ट
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा, “हम एक प्रतिभाशाली छात्र को अवसर से वंचित नहीं कर सकते। उसे बीच मझधार में नहीं छोड़ा जा सकता है।”
संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत लिया फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी असाधारण शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए आईआईटी-धनबाद को निर्देश दिया कि अतुल कुमार को बीटेक पाठ्यक्रम में उसी बैच में प्रवेश दिया जाए, जिसमें उनका मूल रूप से होना था। कोर्ट ने कहा कि अतुल जैसे मेहनती और प्रतिभाशाली छात्र, जो समाज के हाशिए पर हैं, को शिक्षा के इस अवसर से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।
फीस समय पर नहीं जमा कर पाए मजदूर के पिता
अतुल कुमार के माता-पिता, जो दिहाड़ी मजदूर हैं, 24 जून की समय सीमा तक 17,500 रुपये की फीस जमा करने में असमर्थ रहे। हालांकि, उनके पिता ने कई प्रयास किए और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग से लेकर झारखंड विधिक सेवा प्राधिकरण और मद्रास उच्च न्यायालय तक का दरवाजा खटखटाया, परंतु कहीं से राहत नहीं मिली।
गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन
अतुल उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के टिटोरा गांव से हैं और उनका परिवार गरीबी रेखा से नीचे (BPL) श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने न केवल अतुल के भविष्य को बचाया, बल्कि यह भी दिखाया कि देश के शीर्ष न्यायालय ने प्रतिभा और परिश्रम को सम्मान देने का काम किया है।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को एक ऐतिहासिक कदम के रूप में देखा जा रहा है, जिससे शिक्षा में समानता और न्याय सुनिश्चित किया जा सके।