ऐसा था ‘आपातकाल’ का वो दर्द, याद कर सिहर उठते हैं लोग, सुनाई 45 साल पहले की आपबीती

हर तरफ पुलिस की दहशत थी। सरकार के खिलाफ बोलने वालों को जबरन जेल भेजा जा रहा था। जेल में यातनाएं दी जा रही थीं। आपातकाल के दौरान जेल में बिताए उन दिनों को याद कर आज भी सिहर उठते हैं प्रदीप कंसल। वह कहते हैं कि जेल में बंद लोगों की बुरी हालत थी। दिन रात सभी को परेशान किया जाता था। इसके बाद भी सरकार का विरोध करने वाले लोग अपनी मांगों पर अड़े रहे। वह 12 फरवरी 1977 को जेल से छूटे। उसके कुछ दिनों बाद ही देश से आपात काल हट गया।

मेरठ में सरकार का विरोध करने वाले कई लोगों को भेजा गया था जेल  
26 जून 1975 से 21 मार्च 1977 (21 माह) तक देश में रहे आपातकाल के गवाह लोग उसे स्वतंत्र भारत का सबसे विवादित समय मानते हैं। वह एक काला अध्याय है। तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान की धारा 352 की उप धारा के तहत प्राप्त शक्तियों का प्रयोग कर आपात काल की घोषणा की थी। इसके साथ ही देश में सरकार का विरोध शुरू हो गया। इसमें मेरठ के युवाओं ने भी अहम भूमिका अदा की। 45 साल बाद भी लोग उस काल को लोकतंत्र की हत्या का काल मानते हैं।

इमरजेंसी का खूब हुआ था विरोध
उस वक्त मेरठ कॉलेज में लॉ के छात्र रहे 21 वर्ष के अमित अग्रवाल भी इसका हिस्सा बने। वह बताते हैं कि आपातकाल में उन्हें भी जेल भेज दिया गया था। नवंबर में पैरोल पर छूटे। दो माह बाद दोबारा वारंट जारी हो गया। वह तत्कालीन हरदोई विधायक श्रीष चंद्र अग्रवाल के यहां रहे। बैक पेपर देने के लिए डीएसपी से अनुमति लेनी पड़ी थी।

जेल में मनी होली-दीवाली
आपातकाल के दौरान मेरठ कॉलेज से एलएलबी कर रहे अरुण वशिष्ठ भी 19 माह जेल में रहे। सत्याग्रह के दौरान उनके खिलाफ पांच मुकदमे दर्ज हुए। हाथ न आने के कारण उनके घर की कुर्की हुई। इसके बाद भी वह आंदोलन में सक्रिय रहे। 16 जुलाई को गिरफ्तारी हुई। छूटने के बाद दोबारा आंदोलन किया। दोबारा गिरफ्तार होने के बाद आठ मार्च 1977 को जेल से छूटे। होली, दीवाली, दशहरा सब जेल में ही मनाया था।

महिलाओं ने दी थी गिरफ्तारी
सिविल लाइन के मानसरोवर में किराये पर रहने वाली कृष्ण कान्ता तोमर अपने पांच वर्षीय पुत्र धर्मेन्द्र तोमर और अपनी मकान मालिक कृष्णा वत्स के साथ नारेबाजी करती हुईं बेगमपुल पहुंच गईं। वहां से लालकुर्ती थाने पहुंच गईं तो पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। कृष्ण कान्ता और कृष्णा वत्स को जेल भेज दिया। एक माह बाद उनकी रिहाई हुई।

45 साल बीते मगर वो समय नहीं भूले
मेरठ में पल्हैड़ा निवासी लोकतंत्र सेनानी 75 वर्षीय जन्मेजय चौहान कहते हैं, 45 साल बीत गए, लेकिन आज तक वो समय नहीं भूले। उनके छोटे भाई शीलेंद्र चौहान ने बताया कि हमारी बेगमपुल पर रेडियो रिपेयरिंग की दुकान थी। नौ दिसंबर 1975 को भाई जन्मेजय चौहान तीन लोगों के साथ जेल गए थे। उन्हें बहुत यातनाएं दी गईं। छह माह बाद उनकी जमानत हुई। इसके बाद भी उन्होंने संघ के लिए काम करना जारी रखा। उनके पीछे सीआईडी लगी थी। खूनी पुल से संघ के नगर प्रचारक रामलाल और वीरेंद्र के साथ उन्हें दोबारा गिरफ्तार कर लिया गया। इमरजेंसी खत्म होने के बहुत दिनों बाद उन्हें रिहाई मिली।

 

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