लोकसभा चुनाव में क्यों लगा भाजपा को इतना बड़ा झटका? कहीं ये कारण तो नहीं?

लोकसभा चुनाव में क्यों लगा भाजपा को इतना बड़ा झटका? कहीं ये कारण तो नहीं?

नई दिल्ली/सहारनपुर: लोकसभा चुनाव परिणाम के रुझानों में एनडीए को सरकार बनाने का बहुमत मिल गया है, लेकिन भाजपा को बड़ा झटका लगा है। उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, हरियाणा, और राजस्थान में भाजपा को बड़ा नुकसान हुआ है। वहीं, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी सहित विपक्ष के कई दलों ने जबरदस्त वापसी की है। आइए जानते हैं कि आखिर किन वजहों से भाजपा उम्मीद के मुताबिक सीटें हासिल करने से चूक गई।

कौर वोटर की उपेक्षा
स्वर्ण समाज को भाजपा का कोर वोटर माना जाता है। भाजपा ने 2014 से 2024 तक पूर्ण बहुमत की सरकार चलाई, लेकिन अपने 10 वर्षों के शासन काल में मोदी सरकार ने अपने कोर वोटर की पूरी तरह उपेक्षा की। कोई भी सरकारी योजना कोर वोट बैंक को ध्यान में रखकर नहीं बनाई। प्रधानमंत्री आवास योजना, उज्जवला, राशन वितरण, सहित सभी सरकारी योजनाओं में अपने वोट बैंक के लिए कोई प्रावधान नहीं किया। हद तो तब हो गई जब आयुष्मान कार्ड के लिए 6 यूनिट का प्रावधान कर दिया गया। अर्थात सरकार ने जानबूझकर उन लोगों को अधिक फायदा पँहुचाना चाहा जिन परिवारों में अधिक बच्चे है। मोदी सरकार द्वारा आयुष्मान कार्ड योजना में जोड़े गए इस प्रावधान की चर्चा गाँव-गाँव हुई। भाजपा के कोर वोटर को समझ आ गया कि मोदी सरकार भी अन्य सरकारों की तरह एक वर्ग विशेष को ही खुश करना चाहती है। यह बहुत गलत संदेश गया। भाजपा के वॉटर्स अक्सर कहते सुने गए कि यह सरकार तो हमारी जेब से निकालकर विशेष लोगों की जेबे भरने में लगी। सरकार हम बनवाते है और लाभ विरोधियों को मिलता है। इस बार इस वर्ग में निराशा थी।

मिहिर भोज गौरव यात्रा ने किया बड़ा नुकसान
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक जाती विशेष द्वारा निकाली गई मिहिर भोज गौरव यात्रा ने बड़ा नुकसान किया। इस यात्रा को भाजपा के कई स्थानीय विधायकों व सांसदों का मौन समर्थन प्राप्त था। स्थानीय सांसद पुत्र व विधायक प्रतिनिधि ने इस यात्रा में भाग भी लिया जिस कारण भाजपा का कोर वोटर समझा जाने वाला एक वर्ग नाराज हुआ। टिकट वितरण में इस वर्ग के सांसदों के टिकट काटे जाने से यह वर्ग आग बबूला हो गया और राजस्थान से लेकर उत्तर प्रदेश तक इस वर्ग की नाराजगी ने बड़ा नुकसान किया।

उचित गन्ना मूल्य नहीं देना भी बड़ा कारण
पश्चिमी उत्तर प्रदेश को गन्ना बेल्ट कहा जाता है। यहाँ की अर्थव्यवस्था गन्ना आधारित है। प्रदेश सरकार द्वारा कम गन्ना मूल्य वृद्धि करना भी किसानों की नाराजगी का एक कारण रहा। किसानों को चुनावी वर्ष में उचित गन्ना मूल्य वृद्धि की उम्मीद थी लेकिन राज्य सरकार ओवर कॉन्फिडेंस का शिकार हो गई। चुनावी वर्ष में गन्ना मूल्य वृद्धि को बहुत हल्के ले लिया।

बड़े मुद्दों पर भाजपा के वोटर्स की नाराजगी
कई बड़े मुद्दों पर भाजपा को अपने ही वोटर्स की नाराजगी झेलनी पड़ी। अग्निवीर और पेपर लीक जैसे मुद्दे साइलेंट तौर पर भाजपा के खिलाफ काम करते रहे। वोटर्स के बीच सीधा मैसेज गया कि सेना में चार साल की नौकरी के बाद उनके बच्चों का भविष्य क्या होगा? पेपर लीक के मुद्दे पर युवाओं की नाराजगी को समझने में भाजपा ने चूक की। पुलिस भर्ती परीक्षा के मुद्दे पर यूपी के लखनऊ में हुआ भारी विरोध प्रदर्शन इसका गवाह है। पार्टी के नेता ये मान बैठे थे कि केवल नारेबाजी से वो अपने समर्थकों और वोटर्स को खुश कर सकते हैं।

केवल मोदी मैजिक के सहारे रहना
पिछले दो महीनों में भाजपा और एनडीए में उसके सहयोगी दलों का चुनाव प्रचार देखें, तो एक बात साफ तौर पर नजर आती है कि इन्होंने केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा। चुनावी रैलियों और सभाओं में पार्टी के छोटे-बड़े सभी नेता स्थानीय मुद्दों से बचते हुए नजर आए। पूरा प्रचार केवल और केवल पीएम मोदी के करिश्मे पर टिका था। भाजपा के प्रत्याशी और कार्यकर्ता भी जनता से कनेक्ट नहीं हो पाए, जिसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ा। दूसरी तरफ, विपक्ष लगातार महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों के जरिए सरकार के प्रति नाराजगी को जोर-शोर से उठाता रहा। भाजपा का चुनाव प्रचार केवल रेलियों तक सीमित रहा मतदाता तक प्रत्याशी या स्थानीय भाजपा नेता, कार्यकर्ता पँहुचे ही नहीं।

स्थानीय नाराजगी का नुकसान
बीजेपी को इस चुनाव में स्थानीय स्तर पर भी भारी नाराजगी झेलनी पड़ी। कई सीटों पर टिकट बंटवारे की नाराजगी मतदान की तारीख तक भी दूर नहीं हो पाई। कार्यकर्ताओं के अलावा सवर्ण मतदाताओं का विरोध ले डूबा। कुल मिलाकर कहा जाए तो बीजेपी इस चुनाव में केवल उन मुद्दों के भरोसे रही, जो आम जनता से कोसों दूर थे।

महंगाई
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि महंगाई के मुद्दे ने इस चुनाव पर बहुत ही गहरा असर डाला। पेट्रोल-डीजल, टोल-टैक्स से लेकर खाने-पीने की चीजों पर लगातार बढ़ रही महंगाई ने सरकार के खिलाफ एक माहौल पैदा किया। विपक्ष इस मुद्दे के असर को शायद पहले ही भांप गया था, इसलिए उसने हर मंच से गैस सिलेंडर सहित रसोई का बजट बढ़ाने वाली दूसरी चीजों की महंगाई को मुद्दा बनाया। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बढ़ती महंगाई के लिए आर्थिक नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर सीधा हमला बोला। दूसरी तरफ, बीजेपी नेता और केंद्र सरकार के मंत्री महंगाई के मुद्दे पर केवल आश्वासन भरी बातें करते हुए नजर आए।

टिकट देने में गड़बड़ी, सिर्फ मोदी के नाम पर ही नहीं जीत सकते!
चुनाव नतीजे और रुझानों में बीजेपी के लिए एक बड़ा संदेश छिपा है कि सिर्फ नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव नहीं जीता जा सकता। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सीट वाराणसी पर पिछली बार के मुकाबले काफी कम अंतर से चुनाव जीत पाए हैं। लोकल स्तर पर उम्मीदवारों के खिलाफ जनता में नाराजगी शायद भाजपा पर भारी पड़ी है। स्थानीय स्तर पर सांसदों के प्रति जनता की नाराजगी को कम करने के लिए भाजपा ने कई सिटिंग एमपी के टिकट जरूर काटे लेकिन बड़ी तादाद में दलबदलुओं को भी टिकट दिया। बीजेपी का हर चौथा उम्मीदवार दलबदलू था। शायद पार्टी को ये महंगा पड़ा।

 


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