सीसीटीवी कैमरे से खुला इंस्पेक्टर लक्ष्मी सिंह का राज, जांच में मिले कई अहम सबूत

सीसीटीवी कैमरे से खुला इंस्पेक्टर लक्ष्मी सिंह का राज, जांच में मिले कई अहम सबूत

खुद की लगाई तीसरी आंख ही इंस्पेक्टर लक्ष्मीसिंह चौहान के लिए गले की फांस बन गई है। इसी फुटेज को सीओ साहिबाबाद ने विवेचना में मुख्य आधार बनाया है। बताया गया कि जिस चौराहे पर यह सीसीटीवी कैमरे लगे थे, वह इंस्पेक्टर का मुख्य चेकिंग प्वाइंट बना था। वहीं से सारा खेल चलता था। सीओ (विवेचक) ने एक महीने की फुटेज वहां से ली, जिसकी बारीकी से मॉनिटरिंग की गई। सबूत पर सबूत मिलते गए और जांच रिपोर्ट में सीओ ने इंस्पेक्टर को मुख्य आरोपी बनाया।

70 लाख को डकारने वाली इंस्पेक्टर लक्ष्मीसिंह चौहान लिंक रोड थाने की कोतवाल थी। थाने से चंद कदम की दूरी पर मेट्रो चौराहा है। जहां से चेकिंग की आड़ में लक्ष्मीसिंह की कोतवाली चलती थी। इस चौराहे पर इंस्पेक्टर ने सीसीटीवी कैमरे लगाए थे। ताकि पुलिस की सुरक्षा और अपराधियों की गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। इंस्पेक्टर ने कभी सोचा न होगा कि चौराहे पर खुद के लगाए सीसीटीवी कैमरे उनकी गले की फांस बन जाएंगे। इंस्पेक्टर पर लगे गबन के आरोपों की जांच सीओ साहिबाबाद आरके मिश्रा को दी गई है। मामले की गंभीरता को देखते हुए तत्कालीन एसपी सिटी गाजियाबाद श्लोक कुमार (आईपीएस) ने बारीकी से मॉनिटरिंग की। चौराहे पर लगे कैमरे की फुटेज एक महीने की देखी गई। कैमरे में नोटो से भरा बैग प्राइवेट गाड़ी से उतारकर इंस्पेक्टर की सरकारी गाड़ी में रखा गया था। इसको मुख्य तौर पर सबूत मानकर विवेचक ने विवेचना में शामिल कर लिया।

थाने के मुख्य चौराहे से बदलती थी ड्यूटी

मेरठ कोर्ट में सरेंडर करने आई आरोपी इंस्पेक्टर लक्ष्मीसिंह चौहान ने बताया कि मेट्रो चौराहा लिंक रोड का यह मुख्य चौराहा है। वहां से कुछ दूरी पर साहिबाबाद थाने का क्षेत्र भी शुरू होता है। शाम को सिपाही-दरोगा की ड्यूटी बदलती थी तो वहीं पर सिपाही व दरोगा पहुंचते थे। उसके बाद ड्यूटी बदलती थी। भ्रष्टाचार करना होता तो मैं वहां खुद सीसीटीवी कैमरे क्यों लगवाती? विवेचना में फुटेज को आधार बनाया गया है, लेकिन बैग में 70 लाख रुपये थे। इसको पुलिस साबित करे। मैं बेकसूर हूं।

एसपी सिटी, सीओ ने फंसाया 
इंस्पेक्टर लक्ष्मीसिंह चौहान ने तत्कालीन एसपी सिटी गाजियाबाद और सीओ साहिबाबाद पर आरोप लगाया है। कहां कि मुझे साजिश के तहत फंसाया गया है। आरोपियों से मारपीट करके मेरे खिलाफ लिखवाया गया। कोई भी सबूत पुलिस के पास नहीं है। जिस दरोगा व ड्राइवर को नामजद किया गया, वह ड्यूटी पर ही नहीं थे। पुलिस ने शक के आधार पर मुकदमा बनाया। इसके अलावा गाजियाबाद जिले में पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाए हैं। एक इंस्पेक्टर का नाम लिया, जिस पर एक करोड़ की रिश्वत लेने का आरोप बताया।

 

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