चुनाव आयोग को ताकत में बदल देने वाले पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त टीएन शेषन का निधन
खास बातें
- बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव कराने वाले पहले चुनाव आयुक्त
- मात्र 21 साल की आयु में आईएएस परीक्षा में टॉप किया था
- छह-भाई बहनों में सबसे छोटे थे शेषन, केरल में हुआ था जन्म
- भारत के 10वें मुख्य निर्वाचन अधिकारी थे टीएन शेषन
बाहुबल, धनबल और सत्ताबल के खिलाफ सीना तानकर खड़े चुनाव आयोग को मौजूदा रुतबा दिलाने वाले टीएन शेषन का रविवार को निधन हो गया। 86 वर्षीय शेषन पिछले कई सालों से बीमार चल रहे थे और चेन्नई में रह रहे थे। देश में चुनाव व्यवस्था में शुचिता, पारदर्शिता लाने का श्रेय उन्हें ही दिया जाता है।
तिरुनेल्लई नारायण अय्यर शेषन 1990 से 1996 तक मुख्य चुनाव आयुक्त रहे थे। तमिलनाडु कैडर के 1955 बैच के आईएएस अधिकारी शेषन ने 10वें चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी सेवाएं दी थीं। 15 दिसंबर 1932 को केरल के पलक्कड़ जिले के तिरुनेल्लई में जन्मे शेषन ने चुनाव आयुक्त के तौर पर मतदाता पहचान पत्र की शुरुआत की थी। उनके चुनाव आयुक्त रहते यह कहावत प्रसिद्ध थी कि राजनेता सिर्फ दो लोगों से डरते हैं एक भगवान से और दूसरे शेषन से। उन्हें 1996 में रैमन मैगसेसे सम्मान से भी सम्मानित किया गया था।
एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि चुनाव आयोग की स्वायत्तता का अंदाजा आप इससे लगा सकते हैं कि मेरे एक पूर्ववर्ती ने सरकार को खत लिखकर किताब खरीदने के लिए 30 रुपये की मंजूरी देने की मांग की थी। उन दिनों आयोग के साथ सरकार के पिछलग्गू की तरह व्यवहार किया जाता था। मुझसे पहले के मुख्य चुनाव आयुक्त कानून मंत्री के कार्यालय के बाहर बैठ कर इंतजार करते रहे थे कि कब उन्हें बुलाया जाए। मैंने तय किया कि मैं कभी ऐसा नहीं करूंगा। हमारे कार्यालय में पहले सभी लिफाफों में लिखकर आता था, चुनाव आयोग भारत सरकार। मैंने उन्हें साफ कर दिया कि मैं भारत सरकार का हिस्सा नहीं हूं।
मुख्य चुनाव आयुक्त बनने के पहले ही दिन उन्होंने अपने से पहले रहे मुख्य चुनाव आयुक्त के कमरे सभी देवी देवताओं की मूर्तियों और कैलेंडर हटवा दिए थे जबकि वह खुद बहुत धार्मिक व्यक्ति थे। उनकी आजाद प्रवृत्ति का सबसे पहला उदाहरण तब देखने को मिला जब उन्होंने राजीव गांधी की हत्या के बाद तत्कालीन सरकार से बिना पूछे लोकसभा चुनाव स्थगित करा दिए।
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शक्तियों को लेकर सरकार से भिड़ गए
उन्होंने अपने आदेश में लिखा कि जब तक वर्तमान गतिरोध दूर नहीं होता, जो कि केवल भारत सरकार द्वारा बनाया गया है, चुनाव आयोग अपने आप को अपने सांविधानिक कर्तव्य निभा पाने में असमर्थ पाता है। उसने तय किया है कि उसके नियंत्रण में होने वाले हर चुनाव, जिसमें हर दो साल पर होने वाले राज्यसभा के चुनाव और विधानसभा के उप चुनाव भी, जिनके कराने की घोषणा की जा चुकी है, आगामी आदेश तक स्थगित रहेंगे।
उन्होंने पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इतने नाराज हुए कि उन्होंने उन्हें पागल कुत्ता कह डाला।
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मतदाता पहचान पत्र शुरू कराया
चुनावों में मतदाता पहचान पत्र का इस्तेमाल भी उनकी वजह से ही शुरू हुआ। शुरू में जब नेताओं ने यह कहकर विरोध किया कि देश में इतनी खर्चीली व्यवस्था संभव नहीं है तो उन्होंने कहा था कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए तो 1995 के बाद देश में कोई चुनाव नहीं होगा। कई राज्यों में तो उन्होंने चुनाव इसलिए स्थगित करवा दिए क्योंकि पहचान पत्र तैयार नहीं हुए थे।
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लालू से जमकर लिया लोहा
बिहार के मुख्यमंत्री रहे लालू प्रसाद यादव को सबसे ज्यादा जीवन में किसी ने परेशान किया तो वे शेषन ही थे। बिहार का 1995 का चुनाव ऐतिहासिक रहा। लालू, शेषन को जमकर लानतें भेजते। कहते- शेषनवा को भैंसिया पे चढ़ाकर के गंगाजी में हेला देंगे। बिहार में चार चरणों में चुनाव का एलान हुआ और चार बार ही तारीखें बदली गईं। यहां सबसे लंबे चुनाव हुए।