370 और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या है यह नया ऐंगल?

370 और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे, सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में क्या है यह नया ऐंगल?

नई दिल्ली: आर्टिकल 370 को निरस्त करने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। कोर्ट पहुंचे याचिकाकर्ताओं में एक नाम मोहम्मद अकबर लोन का भी है। उनके साथ पाकिस्तान का ऐंगल सामने आने से सुनवाई में दिलचस्प मोड़ आ गया है। दरअसल, नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता लोन की साख पर कश्मीरी पंडितों के एक समूह ने गंभीर सवाल खड़ा किया है। कश्मीरी संगठन ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि लोन ने 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा के भीतर ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाया था और ऐसा करते हुए अलगाववादी ताकतों का समर्थन किया था। इस एनजीओ का नाम ‘रूट्स इन कश्मीर’ है। इसके मैनेजिंग ट्रस्टी अमित रैना ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए अपनी बात रखी है। आइए जानते हैं पूरा मामला क्या है।

​कौन हैं अकबर लोन, क्या हैं आरोप​

नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन 2002 से 2018 तक जम्मू कश्मीर विधानसभा के सदस्य रहे। उन पर आरोप है कि सदन के भीतर लोन ने ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाए थे। उन्होंने इस पर माफी मांगने से भी इनकार कर दिया था। इसके बारे में मीडिया में खबरें भी आई थीं। 11 फरवरी 2018 के अखबार की कतरन भी सुप्रीम कोर्ट में रखी गई है जिसमें लिखा है जब बीजेपी के सदस्यों ने सदन में पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगाए तो लोन ने पाकिस्तान के सपोर्ट में नारेबाजी की। इस समय वह नेशनल कॉन्फ्रेंस के सांसद हैं।

NGO ने सुप्रीम कोर्ट से क्या कहा

NGO ने कहा, ‘लोन इस समय सांसद हैं और जब भी मीडिया को संबोधित करते हैं तो खुद को भारतीय कहने में हिचकिचाते हैं। अपनी रैलियों में वह पाकिस्तान समर्थित भावनाओं को फैलाने वाले नेता के तौर पर जाने जाते हैं।’ कश्मीरी पंडित युवाओं के समूह ‘रूट्स इन कश्मीर’ ने शीर्ष अदालत से मामले में कुछ अतिरिक्त दस्तावेजों और तथ्यों को रेकॉर्ड पर लाने का आग्रह किया है। कहा गया है कि लोन को जम्मू कश्मीर में सक्रिय अलगाववादी ताकतों के समर्थक के रूप में जाना जाता है, जो पाकिस्तान का समर्थन करते हैं। समूह ने कहा कि नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी के नेता लोन ने अक्सर खुले तौर पर पाकिस्तान के पक्ष में बयान दिए हैं और यह जम्मू-कश्मीर के लोगों को देश के बाकी हिस्सों के बराबर लाने वाले किसी भी कदम को चुनौती देने के उनके विरोध को दिखाता है।

​लोन की तरफ से सिब्बल की दलील​

वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल इस मामले में लोन की ओर से पैरवी कर रहे हैं। उन्होंने चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि आर्टिकल 370 में कोई भी बदलाव केवल जम्मू-कश्मीर विधानसभा द्वारा ही किया जा सकता था। इधर, शीर्ष अदालत ने केंद्र के 5 अगस्त 2019 को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले का बचाव कर रहे प्रतिवादियों से आज ही अपनी दलीलें समाप्त करने को कहा है। अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को 2019 में एक संविधान पीठ को भेजा गया था। राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों- जम्मू कश्मीर और लद्दाख में विभाजित कर दिया गया है।
जम्मू कश्मीर की दो बड़ी पार्टियां- मोहम्मद अकबर लोन की नेशनल कॉन्फ्रेंस और महबूबा मुफ्ती की PDP है, जिन्होंने पूर्ववर्ती राज्य को विशेष दर्जा देने वाले प्रावधान को निरस्त करने को चुनौती दी है।

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