नई दिल्ली । राजधानी में इन दिनों नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन बेचने वाला गिरोह सक्रिय है। गिरोह के सदस्य लोगों को रेमडेसिविर के नाम पर नकली इंजेक्शन महंगे दामों में बेच रहे हैं और परेशान तीमारदार इसे खरीदने को मजबूर हैं। नकली इंजेक्शन से संक्रमितों की जान तक चली जा रही है। इसे देखते हुए दिल्ली पुलिस भी सतर्क हैं। वह लगातार लोगों को इंटरनेट मीडिया सहित अन्य माध्यमों के जरिये जागरूक कर रही है। ऐसा ही एक मामला लक्ष्मी नगर क्षेत्र में सामने आया है।
यहां रहने वाले एएस राठौर ने पत्नी के इलाज के लिए एक व्यक्ति से चार रेमडेसिविर इंजेक्शन एक लाख दो हजार में खरीदे थे और अपने साथी को भी 1.40 लाख में पांच इंजेक्शन दिलवाए थे। उनकी पत्नी को इंजेक्शन लगने के बाद उनकी मौत हो गई। इसी बीच डीसीपी के ट्वीट से उन्हें जानकारी मिली कि वह इंजेक्शन नकली थे। इसके बाद उन्होंने पुलिस से मामले की शिकायत की। पुलिस ने मामले में एक आरोपित को गिरफ्तार किया है।
पुलिस ने मामले में कार्रवाई करते हुए आरोपित ललित गुप्ता को 11 मई को रोहिणी से दबोच लिया। पुलिस पूछताछ में आरोपित ने बताया कि उसने भी कम कीमत पर किसी से इंजेक्शन खरीदे थे और ज्यादा कीमत पर उन्हें बेच दिया। एएस राठौर ने बताया कि ललित ने संपर्क करने पर एक इंजेक्शन की कीमत 25 हजार रुपये बताई थी। आरोपित ने रोहिणी में एक जगह उन्हें इंजेक्शन लेने के लिए बुलाया था।
यहां उन्होंने 50 हजार रुपये देकर दो इंजेक्शन उससे खरीद लिए और अस्पताल जाकर पत्नी को लगवा दिए। उन्हें दो और इंजेक्शन की जरूरत थी। इस बार आरोपित ने उनसे इंजेक्शन एवज में 26 हजार रुपये लिए और अक्षरधाम मंदिर के पास आकर इंजेक्शन दिए। इसके बाद उनके एक परिचित को भी इंजेक्शन की जरूरत थी तो आरोपित ने 28 हजार रुपये के हिसाब से एक लाख 40 हजार रुपये में उनको पांच इंजेक्शन दिए थे। उन्होंने बाताया कि इंजेक्शन की डील वाट्सएप काल पर आरोपित की पत्नी करती थी। 2.42 लाख रुपये में ललित से कुल नौ इंजेक्शन लिए थे।
नकली और असली का फर्क नहीं कर पा रहे डाक्टर
पीड़ित का कहना है कि उन्हें मालूम नहीं था असली और नकली इंजेक्शन में क्या फर्क है। वह इंजेक्शन खरीदकर लाए और डाक्टर को दे दिया और उन्होंने इंजेक्शन उनकी पत्नी को लगा दिया। वहीं, स्वामी दयानंद अस्पताल के सीएमओ डा. ग्लैडबिन त्यागी का कहना है कि डिब्बे को देखकर नकली और असली इंजेक्शन का फर्क नहीं किया जा सकता। कोविड सेंटर में इंजेक्शन नहीं थे, तीमारदार खुद इंजेक्शन बाहर से लेकर आए थे। इंजेक्शन को मरीज को लगाया गया था।