“सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार”, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को इस राज्य ने किया लागू

“सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार”, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को इस राज्य ने किया लागू

कर्नाटक सरकार ने एक ऐतिहासिक फैसला लिया है। राज्य सरकार मरीजों को “सम्मानजनक मृत्यु का अधिकार” प्रदान कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लागू करने वाला कर्नाटक पहला राज्य बन गया है। 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में बीमार रोगियों के लिए सम्मान के साथ मरने का अधिकार की इजाजत दी थी, जिनके ठीक होने की कोई उम्मीद नहीं या अब जीवन-निर्वाह इलाज से लाभ नहीं हो रहा है। यह आदेश राज्य के सभी सरकारी और निजी चिकित्सा संस्थानों में लागू होगा, जहां ऐसे मरीज भर्ती हैं।

किन परिस्थिति में मिलेगी अनुमति?

कर्नाटक के स्वास्थ्य मंत्री दिनेश गुंडू राव ने ऐलान किया कि राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने ‘मरीजों को सम्मान के साथ मौत का अधिकार’ संबंधी सुप्रीम कोर्ट के निर्देश को लागू करने के लिए ऐतिहासिक आदेश जारी किया है। स्वास्थ्य मंत्री ने ‘X’ पर एक पोस्ट में कहा कि विभाग ने एक अग्रिम मेडिकल निर्देश (AMD) या ‘लिविंग विल’ (जीवनकालीन वसीयत) जारी किया है, जिसमें मरीज भविष्य में अपने इलाज के बारे में अपनी इच्छा दर्ज करा सकते हैं।

मंत्री दिनेश गुंडू राव ने कहा कि यह निर्णय “चिकित्सकों और उन मरीजों के परिवारों के लिए फायदेमंद होगा, जिनकी कोई उम्मीद नहीं है।” मंत्री ने यह स्पष्ट किया कि यह निर्णय आत्महत्या से भ्रमित नहीं होना चाहिए और यह केवल उन मरीजों पर लागू होता है जो जीवन समर्थन प्रणाली पर हैं और जीवन रक्षक उपचार से प्रतिक्रिया नहीं कर रहे हैं।

मंत्री ने यह भी बताया कि कर्नाटक ने एक “पूर्व चिकित्सा निर्देश” (Advance Medical Directive – AMD) पेश किया है, जो एक प्रकार का जीवित वसीयत है, जिसमें मरीज भविष्य में अपनी चिकित्सा उपचार संबंधी इच्छाओं को रिकॉर्ड कर सकता है। “पूर्व चिकित्सा निर्देश के तहत मरीज को दो व्यक्तियों को नामांकित करने की आवश्यकता होगी, यदि वह अपना निर्णय लेने की क्षमता खो देता है तो उसकी ओर से स्वास्थ्य संबंधी निर्णय लेंगे। यह दस्तावेज चिकित्सा पेशेवरों को यह निर्णय लेने में सहायक होगा कि मरीज को किस प्रकार का चिकित्सा उपचार चाहिए या नहीं।

क्या है राज्य सरकार का आदेश?

गुरुवार को जारी किए गए एक औपचारिक आदेश में राज्य सरकार ने कहा कि कोई भी न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, सर्जन, एनेस्थेटिस्ट या इंटेंसिविस्ट, जिसे मानव अंग और ट्रांसप्लांट अधिनियम, 1994 के तहत उपयुक्त प्राधिकारी ने अनुमोदित किया गया है, उसे जिला स्वास्थ्य अधिकारी (DHO) ऐसी मौतों को प्रमाणित करने के लिए चिकित्सा विशेषज्ञों के द्वितीयक बोर्ड के सदस्य के रूप में नामित करेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश दिया था कि इस तरह के मामलों की निगरानी के लिए दो बोर्ड होंगे-

  1. एक प्राथमिक बोर्ड अस्पताल स्तर पर
  2. दूसरा द्वितीयक बोर्ड जिला स्तर पर, जिसमें DHO या उनका नामित व्यक्ति जिला स्तर के बोर्ड का हिस्सा होगा।

मुंबई के पीडी हिंदुजा नेशनल अस्पताल और मेडिकल रिसर्च सेंटर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. रूप गुर्साहनी  सम्मानजनक मृत्यु के अधिकार के आंदोलन से जुड़े हुए हैं। उन्होंने बताया कि कर्नाटक देश का पहला राज्य बन गया है, जो असाध्य रोगियों के लिए सम्मानजनक मृत्यु की अनुमति दे रहा है। उन्होंने कहा कि गोवा, महाराष्ट्र और केरल ने कुछ नियम और निर्देश पारित किए हैं, लेकिन उनके प्रयास अधूरे रहे हैं।


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