रावण के हृदय पर इसलिए भगवान राम ने नहीं चलाया बाण, बार-बार काटते रहे सिर

आइए जानते हैं इसके पीछे की वजह

कोरोना वायरस के कारण हुए लॉकडाउन में दूरदर्शन ने फिर से रामायण प्रसारण शुरू कर दिया है। आज भी भारी संख्या में जनता ने रामायण को पसंद किया है। रामायण में अब तक कई प्रसंग दिखाए जा चुके हैं लेकिन राम-रावण का युद्ध बहुत अहम भाग है। क्योंकि राम-रावण का यह युद्ध केवल माता सीता को रावण की चुंगल से मुक्ति के लिए ही नहीं था बल्कि यह युद्ध असत्य पर सत्य की जीत के लिए भी था। राम और रावण के बीच भयंकर युद्ध हुआ लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान राम ने रावण के हृदय पर एक भी तीर नहीं चलाया था। आइए जानते हैं आखिर इसके पीछे क्या वजह थी…

भयंकर और विध्वंसक था राम-रावण युद्ध

भगवान राम और रावण के बीच घमासान युद्ध चल रहा था राम जैसे ही रावण के शीश काटते एक और शीश रावण के सर पर आ जाता। राम ने रावण के दस सिरों और भुजाओं में दस-दस बाण मारे लेकिन वे फिर नए हो गए। ऐसा उन्होंने कई बार किया लेकिन रावण को मारने पाने की कोशिश हर बार नाकाम हो जाती। दोनों के बीच भयंकर, विध्वंसक और तीनों लोकों को हिला देने वाला युद्ध हुआ।

देवताओं ने ब्रह्माजी से पूछा सवाल

तभी सभी के मन में सवाल आया कि भगवान राम ने रावण के कई सिर और हाथों को काटकर फेंक दिया लेकिन उन्होंने रावण के हृदय पर तीर क्यों नहीं चला रहे। यही सवाल देवताओं ने भी ब्रह्माजी से पूछा। तब भगवान ब्रह्माजी ने देवताओं के बताया कि रावण की हृद्य में सीता का वास है और सीता के हृदय में राम का और उनके हृदय में सारी सृष्टि है। अगर राम रावण के हृदय पर तीर चलाते तो सारी सृष्टि नष्ट हो जाएगी।

विभीषण ने बताया वरदान के बारे में

ब्रह्माजी ने बताया कि जैसे ही रावण के हृदय से सीता का ध्यान हटेगा वैसे ही राम रावण का संहार करेंगे। इस बात की जानकारी जब विभीषण को मिली तब उन्होंने रावण के नाभि में मौजूद अमृत के बारे में बताया और उस पर प्रहार करने को कहा। फिर भगवान राम ने आतातायी राक्षस रावण की नाभि पर तीर चलाकर उसका अमृत को सुखा दिया।

इस तरह हुआ रावण का अंत

नाभि में मौजूद अमृत सुखाने के बाद रावण का मन विचिलित हो गया और उसके हृदय से पलभर के लिए सीताजी से मन हट गया। तभी भगवान राम ने अगस्त्य मुनि द्वारा दिए गए ब्रह्मास्त्र से उसके हृदय पर प्रहारकर उसका अंत कर दिया और युद्ध जीतकर सीताजी को मुक्त करवाया। रावण वध का यही दिन दशहरा या विजयादशमी कहलाया।

सीताजी का उपासक था रावण

लंकापति रावण त्रेता युग का सबसे हीन प्राणी के साथ-साथ एक ब्रह्मज्ञानी, कुशल राजनीतिज्ञ और बहु विधाओं का भी जानकार था। भगावन राम के साथ युद्ध में उसकी मौत हुई और मोक्ष की प्राप्ति की। रावण जानता था कि माता सीता, लक्ष्मी स्वरूपा हैं। रावण सीताजी को हरण इसलिए करके लाया था ताकि भगवान राम द्वारा उसकी मुक्ति हो जाए और पापों का अंत हो। रावण सीताजी का उपासक था और अपने हृदय में सीताजी को रखा, जिससे उसको काफी बल भी मिला।