आखिर दुनिया के सामने आ रही है पाकिस्तानी लोकतंत्र की सच्चाई
खबरों में सुना है कि कोई फट पड़ा, कोई रो पड़ा, किसी ने दुहाई दी, किसी ने नैब की शिकायत की, तो किसी ने अपनी नाकद्री का रोना रोया, किसी ने जिंदगी के फना होने की शिकायत की। पाकिस्तान के सबसे बड़े सेठों ने सिपाहसालार जनरल बाजवा से मुलाकात में ‘ये जीना भी कोई जीना है’ टाइप का माहौल बना दिया।
ये सिपाहसालार का ही कमाल है कि वो सुबह लाइन ऑफ कंट्रोल पर पहरा देते हैं, दोपहर को एक नए डीएचए का उद्घाटन करते हैं और रात को पांच घंटे बैठ कर पाकिस्तान के सबसे बड़े सेठों के दुखी दिलों का इलाज भी करते हैं। लेकिन सर बाजवा सेठों से जरा बचके।
सेठ की दौलत का अंदाजा लगाइए
खबरों में रिपोर्ट नहीं हुआ लेकिन सर बाजवा ने हलकी सी डांट तो पिलाई होगी कि इस देश से इतना पैसा बना लिया फिर भी रो रहे हो, फट रहे हो। अगर फटना ही है तो जरा दूर जा कर फटो। मेरी ट्रेनिंग फौजी है और मैं फटने वाली चीजों से निबटना जानता हूं।
राजनेताओं से आपका असली मुकाबला नहीं है, इन सेठों से है। राजनेताओं का बंदोबस्त कुछ आपने कर दिया, कुछ सर से पांव तक हिसाब करने वाली नैब ने और कुछ जनता ने लेकिन इन सेठों को कब तक गले लगाए रखना है।
रोटी मांगो तो सेठ कहता है खरीद कर खाओ’
एक बार जाने का मौका मिला तो लगा कि मेरी गाड़ी में पेट्रोल खत्म हो सकता है। एक और सेठ के ड्राइवर ने बताया कि 18 घंटे लैंड क्रूजर पर ड्यूटी करता हूं लेकिन खाने के वक्त दो के बाद तीसरी रोटी मांगो तो सेठ कहता है कि जाओ अपनी खरीद कर खाओ।
कहीं पर ये पढ़ा है कि फौजी फाउंडेशन जो कि रिटार्यड फौजियों की भलाई के लिए काम करने वाला संगठन है, देश का दूसरा सबसे बड़ा बिजनेस ग्रुप है। ये इन सेठों की ही कारसतानी है कि दुनिया की एक नंबर फौज कारोबार के मैदान में अभी तक दूसरे नंबर पर है।
इतना पैसा आया कहां से?
हमारी नौसेना ने अपना नाम वापस लेने की कितनी कोशिश की लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। ये पाकिस्तानी फौज के घर से चोरी करके भागने वाला सेठ अब पाकिस्तानी फौज से मुकाबला करता है और रोता भी है। (मलिक रियाज पाकिस्तान की रियल एस्टेट डिवलवमेंट कंपनी बहरिया टाउन के संस्थापक हैं। उर्दू में नौसेना को बहरिया ही कहते हैं।)
जहां डीएचए पहुंचती है उससे बड़ा प्रोजेक्ट उसके सामने ला कर खड़ा कर देता है लेकिन जहां तक मुझे पता है क्वेटा में जीएचएए बना कर हमने उसे एक छोटी सी शिकस्त फाश दी है।
लेकिन सिपाहसालार एक सकारात्मक सोच के हामी हैं और मसलों के हल पर यकीन रखते हैं इसलिए उन्होंने सेठों के मसलों के हल के लिए सैन्य अफसरों की एक कमेटी बनाने का भी ऐलान किया है।
आमतौर पर सैन्य अधिकारी रिटायर्ड होने के बाद इन सेठों के पास नौकरी की तलाश में जाते हैं। उस वक्त तक देर हो चुकी होती है अब सेवा रत अफसर सेठों के साथ बैठेंगे तो जाहिर है कुछ सीखेंगे और सिखाएंगे।
लेकिन दिल में शक सा है कि हमारे अफसर बहादुर हैं लेकिन सादा दिल भी हैं। अगर हमारा कर्नल चार एमबीए भी कर ले तो समझ नहीं पाएगा कि आखिर अकीस करीम ढेढी का धंधा क्या है।
चूंकि सब सिपाहसालार मुंसिफ मिजाज भी हैं तो अब उन्हें चाहिए कि 30-35 मजदूर, मेहनतकश लोगों को बुला कर उनसे भी एक मीटिंग करें, थोड़ी तसल्ली दें। ग़रीबों की दुआओं में ज्यादा असर होता है और ये दुआएं एक्सटेंशन के तीन सालों में काम आएंगी।