अंतरिक्ष से अरब सागर में दिखी ‘समुद्री चमक’, दक्षिण एशिया पर मंडराने लगा बड़ा खतरा

अंतरिक्ष से अरब सागर में दिखी ‘समुद्री चमक’, दक्षिण एशिया पर मंडराने लगा बड़ा खतरा

नई दिल्ली  दक्षिण एशिया के करोड़ों इंसानों के लिए भोजन का साधन अरब सागर इन दिनों संकट के दौर से गुजर रहा है। अंतरिक्ष से द‍िख रही अरब सागर की जहरीली ‘समुद्री चमक’, दक्षिण एशिया के 15 करोड़ लोगों के लिए बड़ा संकट है। हिमालय का ग्‍लेशियर जिसे  ‘बर्फ का खजाना’ भी कहा जाता है, के पिघलने का बेहद गंभीर असर अब समुद्र पर भी दिखाई देने लगा है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के ताजा शोध से पता चला है कि हिमालय की बर्फ पिघलने से अरब सागर में बड़े पैमाने पर जहरीला हरा शैवाल (‘समुद्री चमक’) फैल रहा है।

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भारत, पाकिस्‍तान और खाड़ी देशों के तटों पर फैल यह शैवाल इतना विशाल है कि उसे अंतरिक्ष से भी असानी से देखा जा सकता है। नासा की ओर से जारी की गई तस्‍वीरों से पता चलता है कि समुद्र में पाया जाने वाला शैवाल Noctiluca scintillans अरब सागर के तटीय इलाके में बहुत तेजी से पैर पसार रहा है। Noctiluca scintillans को ‘समुद्री चमक’ भी कहा जाता है। रात में यह शैवाल रात में काफी चमकता है। यह एक मिलीमीटर का होता है और यह तटीय इलाके के पानी में आसानी से जिंदा रह सकता है। यह हरा शैवाल समुद्र में अपना मोटा छल्‍ला बना रहा है जिसकी वजह से यह अंतरिक्ष से भी दिखाई देता है। समुद्र की चमक कहा जाने वाले इस शैवाल के बारे में 20 साल पहले तक सुना नहीं गया था।

हालांकि अब यह शैवाल अब बहुत तेजी से भारत, पाकिस्‍तान और अन्‍य खाड़ी देशों के तटों पर  पैर पसार रहा है। इस शैवाल की वजह से प्‍लवकों के लिए संकट पैदा हो गया है जो अरब सागर में फूड चेन में काफी अहम भूमिका निभाते हैं। इस जहरीले शैवाल की वजह से अरब सागर में मछलियों के अस्तित्‍व पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। दक्षिण एशिया में इन्‍हीं मछलियों पर 15 करोड़ लोग भोजन के लिए निर्भर हैं। शोधकर्ताओं ने कहा है कि हिमालय और तिब्‍बत के पठार पर लगातार कम होती बर्फ से अरब सागर में समुद्र की सतह लगतार गरम हो रही है। इसकी वजह से यह शैवाल बहुत आसानी से अब तटीय इलाकों में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है।

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नासा के सैटलाइट से ली गई तस्‍वीरों से पता चला है कि Noctiluca scintillans का सीधा संबंध ग्‍लेशियर के पिघलने और कमजोर मानसून से है। आमतौर पर हिमालय से आने वाली ठंडी हवाओं की वजह से अरब सागर की सतह ठंडी हो जाती थी लेकिन बर्फ के प‍िघलने से यह कम हो रहा है। नासा से जुड़े कोलंबिया विश्‍वविद्यालय के जोअक्‍यूइम गोज ने इस बदलाव पर कहा, ‘जलवायु परिवर्तन से जुड़ा हमने यह संभवत: सबसे नाटकीय बदलाव देखा है। हम Noctiluca scintillans को दक्षिण पूर्व एशिया के देशों थाइलैंड और वियतनाम और अफ्रीका के पास स्थित सेशेल्‍स में देखा गया है और यह बड़ी समस्‍या बनकर उभर रहा है।’ 1990 के दशक में पहली बार इस शैवाल को देखा गया था।

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इस शैवाल से न केवल फूड चेन बल्कि पानी की गुणवत्‍ता खराब हो रही है और मछलियों की मौत हो रही है। समुद्र में मछलियां प्‍लवकों को खाकर जिंदा रहती हैं लेकिन शैवाल की वजह से प्‍लवकों पर ही संकट आ गया है। यह प्‍लवक समुद्र की ऊपर सतह पर पाए जाते हैं। उधर, Noctiluca scintillans को सूरज के रोशनी और पोषक पदार्थों की जरूरत नहीं होती है। यह शैवाल अन्‍य जीवों का खाकर जिंदा रहता है। Noctiluca scintillans खुद को दो और फ्लजेलम से खुद को आगे बढ़ाता है। इस शैवाल को केवल जेलीफ‍िश और साल्‍प्‍स खाना पसंद करते हैं। इसके प्रसार की हालत यह है कि ओमान में तो इस शैवाल की वजह से तेल रिफाइनरी को अपना काम कम करना पड़ा।