शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है।: शिवम शर्मा

शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है।: शिवम शर्मा
  • नवरात्र के चौथे दिन माॅ कुष्माण्डा पूजा अर्चना की गई।
  • नगर के मन्दिरो में श्रद्धालुओं की रही भारी भीड़

देवबंद [24CN]: नवरात्र के चौथे दिन माॅ चन्द्रघंटा के स्वरूप की पूजा अर्चना की गई तथा माॅ के भक्तों ने माॅ को भोग लगाकर मनोमनाएं पूर्ण की कामना की। सोमवार को देवबंद स्थित श्री त्रिपुर माॅ बाला सुन्दरी देवी मन्दिर पहुंची एडीएमइ अर्चना द्विवेदी ने भी माॅ की पूजा अर्चना की।

श्री त्रिपुर माॅ बाला सुन्दरी देवी मन्दिर ट्रस्ट के अध्यक्ष व मन्दिर पुजारी सतेन्द्र शर्मा ने बताया कि नवरात्र के चैथे दिन माॅ कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन अदाहत चक्र में अवस्थित होता है। अतः इस दिन उसे अत्यंत पवित्र और अचंचलन मन से कुष्माण्डा देवी के स्वरूप को ध्यान में रखकर पूजा उपासना के कार्य में लगना चाहिए। उन्होने बताया कि जब सृष्टि का अस्तित्व नही था, तब इन्ही देवी ने ब्रहमाण्ड की रचना की थी। अतः ये ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति है इनका निवासी सूर्य मण्डल के भीतर लोक में है वहंा निवास कर सकने की क्षमता केवल इन्ही में है। इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही दैदीप्यमान है। इनके तेज और प्रकाष से दसों दिशाये प्रकाशित हो रही है ब्रहमाण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में अवस्थित तेज इन्ही की छाया है।

उन्होने बताया कि माॅ कुष्माण्डा की आठ भुजाऐं और ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात है इनके सात हाथों में कमण्डल, धूनष, बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र और गदा है आठंवे हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है इनका वाहन सिंह है। श्री शर्मा ने बताया कि माॅ कुष्माण्डा की उपासना से भक्तों के समस्त रोग-शोक मिट जाते है इनकी भक्ति से आयु, यश, बल और आरोग्य की वृद्धि होती है। माॅ की उपासना मनुष्य को सहज भव से भवसागर से पार उतारने के लिये सर्वाधिक सुगम और श्रेयस्कर मार्ग है।