श्रीकान्त प्रकरण: नेताओ की हठधर्मिता ने किया बड़ा नुकसान

श्रीकान्त प्रकरण: नेताओ की हठधर्मिता ने किया बड़ा नुकसान

[एडिटर डेस्क] श्रीकान्त प्रकरण में भाजपा से गौतम बुद्धनगर सांसद महेश शर्मा ने जरूरत से ज्यादा तत्परता दिखाई है। महेश शर्मा ने सत्ता का दुरुपयोग कर मामूली सी घटना को देश का सबसे संगीन अपराध बना दिया। गाजियाबाद, नोएडा एनसीआर की ऐसी कोई सोसाइटी नहीं होगी जिसमें इस तरह की घटनाएं प्रतिदिन नहीं होती हो। महिला द्वारा श्रीकांत को उकसाना व श्रीकान्त द्वारा आवेश में आ कर महिला के साथ गाली गलोच करना इतना बड़ा अपराध नहीं था कि प्रशासन 25,000 रुपये का इनामी बदमाश उसे घोषित कर दे। श्रीकांत की पत्नी व मामी को पुलिस तीन-तीन दिन प्रताड़ीत करे। घर का बिजली-पानी काट दिया जाए। बुलडोजर चला दिया जाए। बच्चों का हाल जानने के लिए श्रीकान्त के घर पर गए कुछ लोगों पर गुंडा ऐक्ट लगाकर जैल भेज दिया जाए। इस मामले में सत्ता का बेजा दूरउपयोग किया गया। त्यागी समाज के एक सम्मानित व्यक्ति के साथ सांसद महेश शर्मा का एक ऑडियों वायरल हो रहा है जिसमें महेश शर्मा खुद यह कह रहे है कि जो धारायें लगी है वो कोर्ट में कहीं नहीं ठहरेंगी। यक्ष प्रश्न यह है फिर ऐसा किया क्यों गया?

वास्तव में श्रीकान्त ने महिला के साथ अभद्रता की, मारपीट भी नहीं की। अभद्रता करने का जो अपराध श्रीकांत ने किया उसी अपराध की उसको सजा मिलनी चाहिए थी। यदि ऐसा होता तो देश का प्रत्येक नागरिक सांसद व सरकार के साथ खड़ा होता।

कहा तो यंहा तक जाता है कि इस मामूली से अपराध में दो सांसद, क्षेत्रीय विधायक, प्रदेश के गृह मंत्रालय से लेकर देश के गृह मंत्रालय तक इनवॉल्व हो गए। तीन दिन तक देश की मैन स्ट्रीम मीडिया के पास इस समाचार के अतिरिक्त कोई अन्य समाचार ही नहीं था। अति विचित्र मामला बना दिया गया। श्रीकान्त को एक आतंकवादी से भी बड़ा अपराधी फेब्रिकेटिड किया गया। लेकिन यह न तो सरकारों को भूलना चाहिए और न ही फेब्रिकेटिड मामला बनाने वाली मीडिया को कि अब देश बदल चुका है। क्या सही है और क्या गलत है? देश का प्रत्येक नागरिक यह समझने में सक्षम है। शहर ही नहीं गाँव-गाँव में सभी जरूरी सूचनाएं नागरिकों के फिंगर टिप्स पर रहती है। खेत में हल चलाने वाला किसान और खेत में उसके साथ काम करने वाला मजदूर भी दोपहर को घर पर आराम करते हुए स्मार्ट फोन पर देश व दुनिया की हर छोटी बड़ी घटना पर नजर रखता है।

खतरे की घंटी
इस घटना ने पश्चिम में भाजपा के लिए खतरे की घंटी बजा दी। घटना के पश्चात त्यागी समाज में भारी आक्रोश है। किसान आंदोलन के चलते जाट समाज पहले से पार्टी से खफा है। यह नहीं भूलना चाहिए कि ये दोनों समाज पार्टी की पश्चिम से विदाई करने में सक्षम है।

भाजपा सरकारो के साथ संगठन ने भी नहीं दिया समझदारी का परिचय
सत्ता का दुरुपयोग होता देखने के बाद भी भाजपा संगठन सक्रिय नहीं हुआ। संगठन ने इस प्रकरण से होने वाले नुकसान का सही फ़ीडबैक सरकार में बैठे लोगों तक नहीं पँहुचाया। भाजपा संगठन के जिम्मेदार स्थानीय नेता भी तमाशबीन रहे। इतना ही नहीं त्यागी समाज की बडी नाराजगी के बाद भी सरकार और संगठन में अच्छी पैठ रखने वाले त्यागी समुदाय के नेता भी चुप रहे। संगठन नुकसान को आँकने में अभी तक पूरी तरह विफल रहा। संगठनात्मक स्तर पर डेमेज कंट्रोल करने को कोई प्रयास नहीं किया गया।

भाजपा नेताओ की हठधर्मिता ने भी किया नुकसान
त्यागी बाहुल्य गाँव में भाजपा नेताओ का गाँव में प्रवेश निषेध के पोस्टर लगाए गए। हालाँकि यह सांकेतिक विरोध है या बड़ा आक्रोश यह तो आने वाला वक्त ही तय करेगा लेकिन बावजूद इसके कुछ भाजपा नेता त्यागी बाहुल्य इन गाँव में जानबूझकर गए या जाने का प्रयास किया। अनेक ऐसी घटनाएं हुई जिसमें पार्टी की फजीहत हुई। मुजफ्फरनगर के खाईखेड़ी गाँव में पूर्व विधायक प्रमोद उटवाल का जाना और विरोध होना इस बात का साक्षी है कि इन नेताओं ने पार्टी की फजीहत कराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इसी तरह का मामला सहारनपुर जिले के अध्याना गाँव से भी आया जहां पर संगठन ने नासमझी का परिचय दिया और एक बड़ा विवाद होते-होते बचा। हालांकि बाद में इस विवाद का पटाक्षेप हो गया लेकिन जिन बच्चों का नाम इस विवाद में आया क्या वो बच्चे या उनका परिवार कभी भारतीय जनता पार्टी को भविष्य में अपना पाएगा? शायद कभी नहीं। बड़ी नासमझी की गई।

संगठन को संभालनी होगी कमान
सरकार में बैठे लोगों के द्वारा सत्ता का दूरउपयोग रोकने के लिए संगठन को सक्रिय होना होगा। क्या सही है क्या गलत यह फ़ीडबैक सरकार में उच्च स्तर तक पँहुचाना होगा। त्यागी समाज द्वारा आंदोलन की रूपरेखा तैयार की जा रही है। 16 अगस्त को दिल्ली जंतर-मंतर पर इकट्ठा होकर आगे की रणनीति का इरादा जाता दिया गया। त्यागी समाज द्वारा एक बड़ी रैली का आयोजन 21 अगस्त को नोएडा के गाँव गेझा में किया जा रहा है। अब संगठन की जिम्मेदारी बनती है कि इस मामले के संबंध में सरकार को सही जानकारी उपलब्ध कराए। सरकार समझदारी का परिचय देते हुए त्यागी समाज की उचित मांगों को मानकर इस आंदोलन को जनआंदोलन बनने से रोके। इसी में सरकार व संगठन दोनों का हित निहित है।

लेखक 24 सिटी न्यूज में प्रधान संपादक है।