केदारनाथ आपदा से भी नहीं लिया सबक, ऋषिगंगा आपदा ने याद कराया मंजर

केदारनाथ आपदा से भी नहीं लिया सबक, ऋषिगंगा आपदा ने याद कराया मंजर

देहरादून। आज रविवार को ऋषिगंगा-तपोवन में हुई तबाही ने केदारनाथ आपदा की याद दिला दी। नदियों ने रौद्र रूप धारण कर अपने रास्ते में आई हर चीज को कागज की तरह बहा दिया। लेकिन, यह किसकी लापरवाही है। क्यों केदारनाथ आपदा से सबक नहीं लिया गया। वर्ष 2013 में आई उस महाआपदा के जख्म अभी पूरी तरह भरे भी नहीं कि कुदरत ने एक बार फिर आंखें तरेर दीं। ग्लेशियर का अध्ययन तो दूर उनके मुंह पर बांध बनाकर कुदरत के साथ खिलवाड़ नहीं तो और क्या है।

उत्‍तराखंड के रुद्रप्रयाग जनपद में स्थिति केदारनाथ में 16 जून 2103 की आपदा पूरी मानव जाति को झकझोर गई थी। उस आपदा में साढ़े चार हजार से अधिक लोगों की मौत हुई या लापता हो गए थे। चार हजार से अधिक गांवों का संपर्क टूट गया। कई ग्रामीण तो अपने घर के भीतर ही मारे गए। करीब 11 हजार मवेशी भी बाढ़ और मलबे की भेंट चढ़ गए। सैकड़ों हेक्टेयर कृषि भूमि बाढ़ में बह गई। सैकड़ों घर, होटल, दुकानें वाहन नदी में समा गए। यही नहीं तब सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और आइटीबीपी की टीमों ने महा अभियान चलाकर यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को, जबकि स्थानीय पुलिस ने 30 हजार यात्रियों को सकुशल रेस्क्यू किया।

इस आपदा में हाईवे, संपर्क मार्ग और पुलों का भी नामो-निशान मिट गया था। गौरीकुंड से केदारनाथ जाने वाला पैदल मार्ग रामबाड़ा और गरुड़चट्टी पड़ाव से निकलता था, लेकिन मंदाकिनी नदी के विकराल रूप ने रामबाड़ा को नक्शे से ही मिटा दिया। इस तबाही के बाद सरकारी मशीनरी को सालों यहां पुनर्निर्माण और बसागत में लग गए। हजारों करोड़ के नुकसान की भरपाई अभी तक नहीं हो सकी। लेकिन, सिस्टम और मानव प्रवृत्ति की हठधर्मिता देखिए कि सबक लेने की बजाय संवेदनशील इलाकों में निर्माण कार्य, नदियों पर बांध बनाने का कार्य नहीं थमा। सबसे बड़ी बात कि इसमें ग्लेशियरों को लेकर कोई अध्ययन नहीं किया गया।

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