राजकोषीय घाटा भूल नए नोट की छपाई करे RBI, रघुराम राजन भी समर्थन में आए

राजकोषीय घाटा भूल नए नोट की छपाई करे RBI, रघुराम राजन भी समर्थन में आए

 

  • आर्थिक जानकारों ने कहा- सरकार की पूरी कोशिश खर्च बढ़ाने पर हो
  • इसके लिए सरकार को अभी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य भूल जाना चाहिए
  • राजन समेत कई अर्थशास्त्रियों ने आरबीआई द्वारा नए नोटों की छपाई का समर्थन किया
  • सरकार ने इस वित्त वर्ष कर्ज का लक्ष्य बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया है
  • जानकारों का कहना है कि ज्यादा कर्ज का मतलब ज्यादा ब्याज जिसके परिणाम गंभीर हो सकते हैं

मुंबई
कोरोना संकट के बीच सरकार ने चालू वित्त वर्ष के लिए कर्ज का लक्ष्य 54 फीसदी बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दिया है। सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम के बाद कई आर्थिक जानकार रिजर्व बैंक द्वारा नए नोटों की छपाई का समर्थन कर रहे हैं। इनका कहना है कि अभी इकॉनमी को बचाने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है खर्च को बढ़ावा देना, और समय रहते अगर ऐसा नहीं किया गया तो नुकसान इतना भयंकर होगा, जिसकी भरपाई संभव नहीं हो पाएगी।

आरबीआई से पैसे लेने का राजन ने किया समर्थन

भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कर्ज के लिए रिजर्व बैंक से नोट निकाले जाने के विचार का समर्थन किया था। उन्होंने इस असाधारण समय में गरीबों व प्रभावितों तथा अर्थव्यवस्था की सुरक्षा के लिये सरकारी कर्ज के लिए रिजर्व बैंक द्वारा अतिरिक्त नोट जारी किए जाने और राजकोषीय घाटे की सीमा बढ़ाने की वकालत की।

थॉमस इसाक ने 9 फीसदी रेट पर रोष जाहिर किया था
इस तरह की पहली मांग अप्रैल की शुरुआत में आयी थी। उस समय केरल के वित्त मंत्री थॉमस इसाक ने राज्य को महामारी की परिस्थितियों से निपटने के लिये 6,000 करोड़ रुपये के बॉन्ड बेचने के लिये करीब नौ प्रतिशत की कूपन (ब्याज दर) की पेशकश करने की मजबूरी पर रोष जाहिर किया था। कोरोना वायरस महामारी के कारण देश भर में अब तक 2,100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है तथा 63 हजार से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं। वैश्विक स्तर पर, इससे मरने वालों की संख्या 2.79 लाख से अधिक हो चुकी है और 40 लाख से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं।

कोविड बॉन्ड जारी करने का मिला था सुझाव
इसाक ने उस समय सुझाव दिया था कि केंद्र सरकार पांच प्रतिशत कूपन पर कोविड बॉन्ड जारी कर पैसा जुटाए और उसमें से राज्यों को मदद दे। इसाक ने कहा था कि आरबीआई को खुद केंद्र सरकार से ऐसे बॉन्ड खरीदने चाहिए। कई अन्य अर्थशास्त्रियों ने भी गरीबों की मदद करने और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये लीक से हट कर संसाधनों का प्रबंध करने का सुझाव दिया है।

मौद्रीकरण में आरबीआई नए नोटों की छपाई करता है
मौद्रीकरण के तहत आमतौर पर केंद्रीय बैंक अधिक मुद्रा की छपायी कर अपनी बैलेंस शीट (सम्त्ति और देनदारी) का विस्तार करते हैं। राजन ने कहा कि सार्वजनिक खर्च की राह में मौद्रीकरण कोई अड़चन नहीं होना चाहिये। उन्होंने कहा, “सरकार को अर्थव्यवस्था की रक्षा के बारे में चिंतित होना चाहिये और जहां आवश्यक है वहां उसे खर्च करना चाहिये।”

खर्च नहीं करने पर होंगे गंभीर परिणाम

इंडिया रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र कुमार पंत ने भी सरकार के द्वारा अधिक उधार लेने और राजकोषीय घाटे की कीमत पर अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के विचार का पक्ष लिया। उन्होंने कहा कि गरीबों और अर्थव्यवस्था का समर्थन करने के लिये इस समय खर्च नहीं करने के नतीजे बहुत गंभीर और अपूरणीय होंगे। पंत ने नये नोट छापकर पैसे जुटाने का सीधा पक्ष लिये बिना कहा, “इस समय आवश्यकता धन की है। केंद्र सरकार को सबसे अच्छा और सबसे बड़ा कर्जदार होने के नाते, इस असाधारण समय में भारी कर्ज उठाने की जरूरत है और राजकोषीय घाटे व अन्य चीजों को लेकर चिंतित नहीं होना चाहिये। अभी सिर्फ पैसे की जरूरत है।”

केंद्र का फोकस पैसा इकट्ठा होने पर होना चाहिए
उनके अनुसार, केंद्र को जहां से भी संभव हो, वहां से पैसा लाना चाहिये और राज्यों को उस दर से कम ब्याज दर पर ऋण देना चाहिये, जिस दर पर वे अभी पैसे उठाने के लिये मजबूर हो रहे हैं। पंत ने कहा कि केरल को कोविड-19 की लड़ाई में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला बड़ा राज्य होने के बावजूद 8.96 प्रतिशत की दर से ब्याज का भुगतान करना पड़ा है। यह ऐसा मुद्दा है, जिसकी अनदेखी केंद्र सरकार को नहीं करना चाहिये।

फिस्कल डेफिसिट भूल जाए सरकार
उन्होंने कहा कि राजकोषीय विवेक के बारे में बात करना अब आत्मघाती हो जायेगा क्योंकि “अब खर्च नहीं करने के नतीजे इतने गंभीर होंगे कि सामान्य स्थिति में लौटने में वर्षों लग जायेंगे”। सिंगापुर के डीबीएस बैंक की अर्थशास्त्री राधिका राव भी अधिक खर्च और एफआरबीएम (राजकोषीय जिम्मेदारी और बजट प्रबंधन अधिनियम) के लक्ष्य को टालने के पक्ष में हैं। उन्होंने कहा कि अभी 1.7 लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज दिया गया है, जो जीडीपी का महज 0.8 प्रतिशत है। उन्होंने इसे अपर्याप्त बताते हुए दूसरे राहत पैकेज की उम्मीद जाहिर की।

व्हाट्सएप पर समाचार प्राप्त करने के लिए यंहा टैप/क्लिक करे वीडियो समाचारों के लिए हमारा यूट्यूब चैनल सबस्क्राईब करे