पाकिस्तान: मंदिर निर्माण पर राजनीतिक और कानूनी जंग, सरकार के सहयोगी भी विरोध में
- इस्लामाबाद में पहले हिंदू मंदिर को लेकर विरोध
- कैपिटल डिवेलपमेंट डिपार्टमेंट की आलोचना
- मंदिर को शहर के मास्टर प्लान के बाहर बताया
- सरकार के सहयोगी ने बताया इस्लाम विरोधी
इस्लामाबाद
इस्लामाबाद में पहला मंदिर बनाए जाने के फैसले पर अभी तक सामाजिक विरोध के बाद अब राजनीतिक और कानूनी बहस भी छिड़ गई है। पाकिस्तानी सरकार के सहयोगी परवेज इलाही ने मंदिर निर्माण को इस्लाम विरोधी बताया है। वहीं, एक वकील ने इस्लामाबाद हाई कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर दी है। इस पर याचिका के दौरान कोर्ट ने कहा है कि अल्पसंख्यकों के भी अधिकार हैं और सरकार को उनका ख्याल भी रखना है।
इस्लाम के खिलाफ मंदिर निर्माण
इलाही ने मंदिर निर्माण का विरोध करते हुए कहा कि पाकिस्तान इस्लाम के नाम पर वजूद में आया था। अब इस्लामाबाद में नया मंदिर बनाना इस्लाम के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि पहले से जो मंदिर मौजूद हैं उनकी मरम्मत कराई जाए। उधर, इस्लामाबाद के हाई कोर्ट में ऐडवोकेट चौधरी तनवीर अख्तर ने याचिका दाखिल कर कहा है कि जो जमीन हिंदू मंदिर के लिए जो जमीन दी गई है, उसे वापस लेना चाहिए और प्रॉजेक्ट के लिए जो फंड दिया गया है उसे भी वापस लेना चाहिए।
‘सरकार को रखना है अल्पसंख्यकों का ख्याल’
चौधरी का कहना है कि जो मंदिर पहले से सैदपुर गांव में है, उसकी मरम्मत की जानी चाहिए। उन्होंने दावा किया है कि मंदिर निर्माण के लिए जमीन दिया जाना इस्लामाबाद के मास्टर प्लान का उल्लंघन है। याचिका की सुनवाई के दौरान जस्टिस आमिर फारूक ने कैपिटल डिवेलपमेंट अथॉरिटी से जवाब मांगा है कि क्या मंदिर का निर्माण इस्लामाबाद के मास्टर प्लान का हिस्सा था या नहीं। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा है कि अल्पसंख्यकों के पास भी सारे अधिकार हैं और सरकार को भी उनका ख्याल रखना है।
पहले से प्रस्तावित है मंदिर
भगवान कृष्ण के इस मंदिर को इस्लामाबाद के H-9 इलाके में 20 हजार वर्गफुट के इलाके में बनाया जा रहा है। मंगलवार को पाकिस्तान के मानवाधिकारों के संसदीय सचिव लाल चंद्र माल्ही ने इस मंदिर की आधारशिला रखी। इस दौरान मौजूद लोगों को संबोधित करते हुए माल्ही ने बताया कि वर्ष 1947 से पहले इस्लामाबाद और उससे सटे हुए इलाकों में कई हिंदू मंदिर थे।
इस मंदिर के लिए वर्ष 2017 में जमीन दी गई थी लेकिन कुछ औपचारिकताओं की वजह से 3 साल लटक गया था। इस मंदिर परिसर में एक अंतिम संस्कार स्थल भी होगा। इसके अलावा अन्य हिंदू मान्यताओं के लिए अलग जगह बनाई जाएगी।