थाईलैंड से लौटे पीएम मोदी, चीन को करारा झटका, इस वजह से भारत नहीं बना आरसीईपी का हिस्सा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी तीन दिवसीय थाईलैंड यात्रा के समापन के बाद सोमवार देर रात भारत लौट आए हैं। थाईलैंड में पीएम ने 16वें आसियान-भारत शिखर सम्मेलन, 14वें पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन और तीसरे आरसीईपी शिखर सम्मेलन और संबंधित कार्यक्रमों में भाग लिया।
इससे पहले भारत ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) का हिस्सा बनने से सोमवार को इनकार कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई मुद्दों का सही समाधान नहीं दिखने पर इस समझौते से बाहर रहना ही बेहतर समझा। इस समझौते में चीन की प्रधानता भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता है। अगर भारत की मांगों को नहीं माना जाता है, तो 16 देशों के बीच होने वाले इस समझौते से हमें फायदा कम और नुकसान ज्यादा होने की आशंका भी बनी हुई है।
क्या है आरसीईपी
आरसीईपी क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी एक व्यापार समझौता है। यह सदस्य देशों को एक दूसरे के साथ व्यापार करने की सहूलियत देता है। समझौते के अनुसार सदस्य देशों को आयात व निर्यात पर लगने वाला टैक्स या तो बिल्कुल नहीं भरना पड़ता है या बहुत ही कम भरना पड़ता है।
इन देशों को करने थे हस्ताक्षर
आरसीईपी समझौते पर 10 आसियान देशों के अलावा भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड को हस्ताक्षर करने थे। इस समझौते का लक्ष्य 16 देशों के बीच दुनिया में सबसे बड़ा मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाना है।
भारत ने क्यों नहीं किए हस्ताक्षर
- अधिकतर सदस्य देशों के साथ भारत का आयात ज्यादा है और निर्यात कम
- ऐसे में समझौते के मुताबिक आयात टैक्स घटता है, तो भारत का व्यापार घाटा बढ़ेगा
- कई देशों ने अभी भी भारत के लिए बाजार सही अनुपात में नहीं खोला है
- भारत पिछले मुद्दों को हल किए बिना आगे नहीं बढ़ना चाहता
- भारत का 15 सदस्य देशों में से 11 के साथ व्यापार घाटा है
- भारत अपने मूल हितों से समझौता नहीं करेगा
- आरसीईपी समझौता अपने वास्तविक लक्ष्य तक पहुंचेगा, इस पर संशय
- इस समझौते के परिणाम निष्पक्ष या संतुलित नहीं होने की आशंका ज्यादा है
- आयात शुल्क बढ़ने की स्थिति में सुरक्षा की गारंटी मांगी
- चीन के साथ अपर्याप्त अंतर, 2014 को बेस वर्ष मानना
- मूल नियम से छेड़छाड़ की आशंका
- बाजार की पहुंच को लेकर कोई मजबूत भरोसा नहीं मिलना
प्रस्ताव का क्या पड़ता प्रभाव
- चीनी उत्पादों पर 80 फीसदी तक शुल्क घटाने होते भारत को
- ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के उत्पादों पर 86 फीसदी तक शुल्क घटाने होते
- आसियान, जापान व दक्षिण कोरिया से आयात होने वाले उत्पादों पर 90 फीसदी तक शुल्क कम किए जा सकते
उद्योग जगत ने जताई थी चिंता
भारतीय उद्योग जगत ने इस समूह में चीन की मौजूदगी को लेकर चिंता जताई थी। उन्होंने डेयरी, धातु, इलेक्ट्रॉनिक्स और रसायन समेत कई क्षेत्रों में शुल्क कटौती नहीं करने का निवेदन किया था। आयात शुल्क कम होने से स्थानीय उद्योगों पर बुरा असर पड़ने की आशंका है।
चीन की फिर भी बल्ले-बल्ले
भारत की सबसे बड़ी इस समझौते में चीन की प्रधानता है। अमेरिका से विवाद के बाद चीन इस समझौते को जल्द से जल्द लागू करवाना चाहता है क्योंकि इससे उसे अपने सस्ते सामान को निर्यात करने के लिए नई दरवाजे खुल जाएंगे। यही नहीं अगर समझौता नहीं होता है, तो भी उसके लिए घाटे की स्थिति नहीं होगी क्योंकि वह पहले से ही कई सदस्य देशों में अपनी पकड़ बना जा चुका है।