मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ SC में याचिका दाखिल

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ SC में याचिका दाखिल

नई दिल्ली: राम जन्मभूमि की जगह एक दिन दोबारा बाबरी मस्जिद बनाने का बयान जारी करने वाले ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है. याचिका में कहा गया है यह बयान ना सिर्फ सांप्रदायिक नफरत फैलाने वाला है, बल्कि इसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों की ईमानदारी पर भी सवाल उठाए गए हैं. ऐसे में कोर्ट मामले का संज्ञान लेते हुए बोर्ड के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करे.

विनय वत्स नाम के वकील ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भेजी चिट्ठी में यह बताया है कि कोर्ट का वकील होने के नाते उन्होंने जजों की जानकारी में इस बयान को लाना जरूरी समझा. उन्होंने खुद अपनी तरफ से एक अवमानना याचिका भी दाखिल की है. लेकिन उस पर अभी तक सॉलीसीटर जनरल के दफ्तर ने मंजूरी की मुहर नहीं लगाई है. मामले को इस तकनीकी सवाल में उलझाने के बजाय सुप्रीम कोर्ट खुद ही विषय पर संज्ञान ले.

गौरतलब है कि पिछले साल 9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में फैसला दिया था. कोर्ट ने हिंदू पक्ष के दावे को मजबूत मानते हुए पूरी जमीन उसे सौंपने के लिए कहा था. मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही दूसरी जगह पर 5 एकड़ वैकल्पिक जमीन देने के लिए देने का भी आदेश कोर्ट ने दिया था. कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र का नाम के ट्रस्ट का गठन किया. ट्रस्ट ने राम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास का कार्यक्रम 5 अगस्त को रखा. इसमें प्रधानमंत्री भी शामिल हुए. उसी मौके पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने विवादित बयान जारी किया था.

तुर्की के हागिया सोफिया में एक चर्च को दोबारा मस्जिद बना देने का उदाहरण देते हुए पर्सनल लॉ बोर्ड ने बयान में लिखा था, “बाबरी मस्जिद थी और हमेशा रहेगी. हमारे सामने हागिया सोफिया का उदाहरण है. बहुसंख्यकों के दबाव में दिए गए एक शर्मनाक और अन्यायपूर्ण फैसले के जरिए मस्जिद की जमीन पर कब्जा किया गया है. लेकिन मुसलमानों को अपना दिल छोटा करने की जरूरत नहीं है. हालात हमेशा एक समान नहीं होते हैं.“

वकील विनय वत्स ने अपनी याचिका में लिखा है कि यह बयान एक समुदाय को सांप्रदायिक तौर पर भड़काने वाला है. यही नहीं इसमें सुप्रीम कोर्ट के जजों की निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवाल उठाया गया है. यह कहा गया है कि उन्होंने दबाव में फैसला लिया. एक शर्मनाक और अन्याय पूर्ण काम किया. इस तरह से अदालत की गरिमा को ठेस पहुंचाने वाला बयान कंटेंप्ट ऑफ कोर्ट एक्ट 1971 की धारा 2(c)(i) के तहत अदालत की अवमानना है. इसलिए कोर्ट मामले पर संज्ञान लेते हुए पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ कार्रवाई शुरू करे.

यह चिट्ठी आज ही चीफ जस्टिस को भेजी गई है. फिलहाल कोर्ट ने इसके आधार पर कोई भी निर्णय नहीं किया है.