चंडीगढ़। कांग्रेस ने नए पंजाब प्रदेश प्रधान की घोषणा के साथ ही पार्टी ने इस बात के भी संकेत दे दिए कि पार्टी में अब नवजोत सिंह सिद्धू अब केवल एक कार्यकर्ता बनकर रह गए हैं। सिद्धू को सेलिब्रिटी का चोला उतारना रास नहीं आया।
जुलाई 2021 में कांग्रेस पार्टी में हलचल पैदा कर प्रदेश प्रधान बने नवजोत सिंह सिद्धू का सक्रिय राजनेता के रूप में सफर किसी भयानक सपने से कम नहीं रहा। सक्रिय राजनेता के रूप में सिद्धू के करियर पर दो काले धब्बे लगे। पहला कि सिद्धू ने कैप्टन अमरिंदर सिंह की सरकार को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। दूसरा बतौर प्रदेश प्रधान वह पार्टी को विधानसभा चुनाव में जीता नहीं सके। यहां तक की वह अपनी सीट भी नहीं बचा सके।
2004 में भारतीय जनता पार्टी से बतौर सेलीब्रिटी अपना राजनीतिक करियर शुरू करने वाले नवजोत सिंह सिद्धू ने तीन लोक सभा चुनाव (एक उप चुनाव) में विजय हासिल की। 2014 में अमृतसर सीट से उनके राजनीतिक गुरु अरुण जेटली ने चुनाव लड़ा। इस चुनाव के दौरान नवजोत सिंह सिद्धू एक दिन के लिए भी अमृतसर नहीं पहुंचे।
जेटली को कैप्टन अमरिंदर सिंह के हाथों हार का सामना करना पड़ा। इसके बावजूद भाजपा ने सिद्धू को राज्यसभा भेजा। सिद्धू ने भाजपा से इस्तीफा देकर 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस ज्वाइन की। कैप्टन की सरकार में सिद्धू कैबिनेट में नंबर 3 की पोजीशन में थे।
2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान सिद्धू और कैप्टन के संबंध बिगड़ गए। कैप्टन ने 15 मंत्रियों के विभागों में बदलाव किया, जिसमें सिद्धू भी शामिल थे। यह बात सिद्धू को नागवार गुजरी और उन्होंने कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया। 2019 से लेकर 2021 के शुरुआत तक सिद्धू कांग्रेस में हाशिये पर रहे।
मार्च 2021 के करीब सिद्धू ने बेअदबी और ड्रग्स मामले को लेकर कैप्टन के खिलाफ मोर्चा खोला। मामला इतना बढ़ा कि कैप्टन के खिलाफ विद्रोह हो गया। इससे पहले जुलाई 2021 में कैप्टन की मर्जी के बगैर पार्टी ने प्रदेश प्रधान की कमान नवजोत सिंह सिद्धू को सौंप दी।
प्रदेश प्रधान की कमान हाथ में आते ही सिद्धू का सक्रिय राजनेता के रूप में सफर तो शुरू हुआ, लेकिन वह लंबा नहीं चला। कभी अपनी ही पार्टी की ईंट से ईंट बजाने की बात करते तो कभी दर्शनी घोड़ा नहीं बनूंगा का बयान देते। तत्कालीन मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी द्वारा एजी और डीजीपी लगाने के विरोध में सिद्धू ने प्रदेश प्रधान पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बावजूद कांग्रेस सिद्धू को साथ में जोड़ कर रखती रही।
विधान सभा चुनाव में मिली हार के बाद सोनिया गांधी ने सिद्धू से इस्तीफा मांग लिया। सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया और हार का सारा ठीकरा चरणजीत सिंह चन्नी पर फोड़ा। इस्तीफा देने के बाद सिद्धू ने कार्यकर्ताओं के बाद में पुन: प्रदेश प्रधान की कुर्सी पानी तो चाही लेकिन वह सफल नहीं हो पाए, क्योंकि पार्टी का एक बड़ा वर्ग सिद्धू के खिलाफ खड़ा हो गया था।
नवजोत सिंह सिद्धू जब तक बतौर सेलिब्रिटी कांग्रेस के साथ जुड़े रहे, तब तक डर्बी में दौड़ने वाले घोड़े की तरह थे, लेकिन जब से उनके हाथों में पार्टी की कमान आई, पार्टी का ग्राफ गिरता ही चला गया। पार्टी के वरिष्ठ नेता भी मानते हैं कि प्रदेश की कमान सिद्धू के हाथों में देना पार्टी की एक गलती रही, क्योंकि चुनाव के दौरान भी सिद्धू केवल अपने पंजाब माडल की रट लगाते रहे कांग्रेस का माडल तो था ही नहीं।